* पाठ :- बसंत की
सच्चाई
१.बसंत ईमानदार लडका है । कैसे ?
उत्तर :- एक बडे शहर के बाजार में बसंत छलनी, बटन, दियासलाई
आदि चीजें बेचता है । पं. राजकिशोर बिना कोई वस्तु बसंत को पैसे देने आये तो
ईमानदार बसंत ने पैसे नहीं लिए ।
राजकिशोर
छलनी लेने को तैयार हो गए, पर पैसे नहीं थे, नोट था । तब बसंत उस नोट को भुना लाने
को बजार में गया । अचानक एक मोटर उसके ऊपर से निकल गई । पैर तूट गए, बसंत घर में
पडा रहा और राजकिशोर जी के पैसे वापिस देने के लिए अपने भाई प्रताप को भेज दिया ।
ऐसी थी बसंत की ईमानदारी । सचमें बसंत ईमानदार लडक है ।
२. राजकिशोर के मानवीय व्यवहार का परिचय दीजिए ।
उत्तर :- सुबह से बसंत के एक भी सामान
नहीं बिके, आवश्यकता न होते हुए भी पंडित राजकिशोर एक छलनी लेने को तैयार हुए ।
पहले तो बसंत की बातें सुनकर कोई भी सामान लिए बगैर ही बसंत को पैसे देने को तैयार
थे ।
पंडित
राजकिशोर को प्रताप से पता चला कि बसंत मोटर के नीचे आ गया, उसके पैर कुचले गये ।
तब पंडित राजकिशोर प्रताप के साथ बसंत को देखने भीखू अहीर के घर आये । डॉक्टर को
भी बुलाया और एम्बुलंस के लिए फोन कर आते हैं । इस पंडित राजकिशोर बसंत की मदद
करते हैं । ऐसा था राजकिशोर जी का मानवीय व्यवहार ।
अथवा
पाठ :- कर्नाटक संपदा
१. कर्नाटक की शिल्पकला का परिचय दीजिए :-
उत्तर :- कर्नाटक राज्य की शिल्पकला अनोखी है ।
बादामी, ऐहोले, पट्टदकल्लु में जो मंदिर हैं, उनकी शिल्पकला और वास्तुकला अद्भुत
है । बेलूर, हलेबीडु, सोमनाथपुर के मंदिरों में पत्थर की जो मूर्तियाँ हैं, वे
सजीव लगती हैं । ये सुंदर मूर्तियाँ हमे रामायण, महाभारत, पुराणों की कहानियाँ
सुनाती हैं । श्रवणबेलगोल में ५७ फूट ऊँची गोमटेश्वर की एकशिला प्रतिमा है ।
बिजापुर नगर का प्रमुख आकर्षक स्थान गोलगुंबज है । मैसूर का राजमहल कर्नाटक के
वैभव का प्रतीक है । प्राचीन सेंट फिलोमिना चर्च, जगमोहन राजमहल पुरातत्व वस्तु
संग्रहालय हैं ।
२. कर्नाटक के साहित्यकारों की कन्नड भाषा तथा
संस्कृति को क्या देन है ?
उत्तर :- कर्नाटक के साहित्यकारों की कन्नड भाषा तथा
संस्कृति को देन अपूर्व है । वचनकार बसवण्णा क्रांतिकारी समाज सुधारक थे ।
अक्कमहादेवी, अल्लमप्रभु, सर्वज्ञ जैसे अनेक संतों ने अपने अनमोल ’वचनों’ द्वारा
प्रेम, दया और धर्म की सीख दी है । पुरंदरदास, कनकदास आदि भक्त कवियों ने भक्ति,
नीति, सदाचार के गीत गाये हैं । पंप, रन्न, पोन्न कुमारव्यास, हरिहर, राघवांक आदि
ने महान काव्यों की रचना कर कन्नड साहित्य को समृध्द बनाया है । अभी तक आठ कन्नड
साहित्यकारों को ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त है ।
No comments:
Post a Comment