हिन्दी के साहित्यकार
1. तुलसीदास
गोस्वामी तुलसीदासजी हिन्दी साहित्य के इतिहास में भक्तिकाल के सगुण भक्ति मार्ग के
कवि तथा संत माने जाते हैं। ये राम भक्तिशाखा के कवि हैं।
जन्म: सं१५८९(ई. सन १५३२) राजापुर में हुआ था।
इनके पिता का नाम आत्माराम और माता का नाम हुलसी था।
रचनाएँ: रामचरित मानस, विनय पत्रिका, पार्वती मंगल, जानकी मंगल, कवितावली, गीतावली, बरवै रामायण, कृष्ण गीतावली, दोहावली, वैराग्य संदीपनी, रामाज प्रश्न, रामलला, नहुष।
विशेषताएँ: इनका आराध्य दैव राम था। इनकी रचनाओं में सभी प्रकार रस दृष्टी गोचर होते हैं।
तुलसीजी रामानंद संप्रदाय के थे। इनके काव्य में प्रकृति सौंदर्य का वर्णन भी है। पत्नी रत्नावली के उपदेश से प्रेरित होकर तुलसी ने सांसारिकता से दूर गये थे।
मृत्यु: सं १६६० (ई सन १६२३) में हुई।
2. कबीरदास
कबीरदास हिन्दी साहित्य में भक्तिकाल के जानमार्गी शाखा के प्रवर्तक माना जाता है। ये ईश्वर के परम भक्त थे। जानी थे। समाज सुधारक थे।
जन्म: इनका जन्म स्थान के बारे में तीन मत प्रचलित है: एक: काशी कहा जाता है।
दूसरा: मगहर मानते हैं। तीसरा: अजमगढ जिले के बलहरा गाँव में हुआ मानते हैं।
जन्म तिथि के बारे में मतभेद है। कई आधार पर जन्म तिथि १४५६ मानते हैं।
राचनाएँ: इन्होंने कई दोहे और कई पद रचना की है। इनका "कबीर बीजक" ग्रंथ प्रसिद्ध है।
विशेषताएँ: कबीर निर्गुण भक्तिमार्ग के थे। पूजा का खण्डन करते थे। इनके पोषक माता-पिता जुलाहा दंपति नीरू-नीमा माना जाता है। कुछ आलोचक अविवाहित मानते तो डा. रामकुमार वर्मा जी इनके दो स्र्ती मानते है। लोई और धनिया। जिसे राम जनिया भी कहा जाता है।
मृत्यु: मगहर में १५७५ में हुई।
3. सूरदास
सूरदास हिन्दी साहित्य के इतिहास में भक्तिकाल में सगुण भक्ति धारा के कृष्ण भक्ति शाखा के कवि हैं।
जन्म: सूर के जन्म के बारे में मतभेद हैं। चार स्थान बताये जाते हैं। सं १५३५(सन १४७८)
एक: गोपाचल(आज का ग्वालियर), दूसरा: मथुरा में कोई ग्राम, तीसरा: रुनकता, चौता:सीही।
रचनाएँ: सूरजी कई पद, कई दोहे रचना की है, पर इनका नाम उजागर करने के लिए "सूर सागर" काफी समझा जाता है।
सम्मान: हिन्दी साहित्य में ऐसा माना जाता है कि "सूर सूर तुलसी ससि उडुगण केशवदास"।
विशेषताएँ: सूर की रचनाओं में शृंगार और भक्ति तथा वात्सल्य रसों का प्रयोग हुआ है। सूर जन्मान्ध थे। ये प्रकांड पण्डित तथा संगीतज थे। ये वैष्णव ब्राह्मण थे। अष्टछाप के कवियों में एक थे। वल्लभाचार्य संप्रदाय के थे।
मृत्यु: सं १६४० (सन १५८३) में हुई।
4. मीराबाई
मीरा मेडता के राजा रत्न सिंह की पुत्री थी। मीरा साहित्य का इतिहास में सगुण भक्ति धारा में कृष्ण भक्ति शाखा की कवयित्री मानी जाती हैं।
जन्म:राठौर दुर्ग के एक ग्राम कुडकी में सं १५५५(सन १४९५) में हुई।
महाराणा सांगा के जेष्ट पुत्र भोज राजा से विवाह हुआ। पर मीरा बाल्य से ही अपने को गोपाल से अर्पित कर दी थी। इस तरह गृहस्थी से वैराग्य प्राप्त की थी।
रचनाएँ: मुंशी देवी प्रसाद के अनुसार मीरा के चार रचनाएँ माने जाते हैं।
१) गीत गोविन्द की टीका २) नरसी जी री माहेरी ३) राम-सोरठ पद संग्रह ४) फुट कर पद।
विशेषताएँ: मीरा की कविताओं में शृंगार रस की प्रधानता दिखाई देती है तथा गीति काव्य की उत्कृष्टता पाई जाती है। मीरा वस्तु वर्णन में भी पूर्ण सफल रही।
मृत्यु: सं १६०३ (सन १५४६) में हुई।
5. वृंद
वृंदजी हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल के संत कवि माने जाते हैं।
जन्म: ई. स. १६४३ के आस पास मथुरा के नजदीक गाँव मेडता (जोधपुर) में हुआ था।
इनकी शिक्षा काशी में हुई।
कहा जाता है कि ये कृष्णगढ के महाराज मानसिंह के दरबारी कवि थे।
इनकी प्रमुख रचना है "वृंद सतसई"।
इन्होंने नीती के साथ दोहे की रचना भी की है। इनकी भाषा सरल-सरस एवं सुबोध है।
6. रहीम
रहीम हिन्दी साहित्य के बडे कवि थे। दिल्ली के राजा अकबर के दरबार के नवरत्नों मे रहीम एक थे।
इनका पूरा नाम ’अब्दुरहीम खान खाना’ था।
जन्म: लाहोर में सं १६१३(ई सन १५५६) में हुआ।
रचनाएँ: रहीम दोहावली, नगर शोभा, बरवै नायिका भेद, बरवै, मदनाष्टक, शृंगार, सोरठा, रहीम काव्य, रास पंचाध्यायी, दीवाने फारसी।
सम्मान: ’ मिर्जा खाँ ’ उपाधी से सम्मानित थे।
विशेषताएँ: रहीम फारसी, अरबी, तुर्की, संस्कृत, हिन्दी भाषा के प्रकाण्ड पंडित थे। रहीम के काव्य बहुमुखी हैं। नीति संबंध दोहे, पदों की रचना की है। रहीम मुसलमान जाती के होने पर भी कृषण के अनन्य भक्त थे। रहीम अत्यंत कोमल स्वभाव के थे। इनकी शैली अत्यंत सरल थी।
मृत्यु: सं१६८३ (ई सन १६२६)
7. केशवदास
केशवदास हिन्दी साहित्य चरित्र में रीतिकाल के कवि माने जाते हैं।
जन्म: बुन्देल खण्ड के ओडछा नगरी के एक ब्राह्मण परिवार में सं १६१८ (सन १५६१) में हुआ।
इनके पितामह कृष्णदास इनके पिता काशी नाथ मिश्र थे। इनके कुल के सभी लोग संस्कृत भाषा की विद्वान थे। केशवदास पर इनका प्रभाव रहा।
रचनाएँ:रामचन्द्र चंद्रिका, रसिक प्रिया, कवि प्रिया, विजान गीता, रतनबावनी, वीरसिंह, देव चरित, नख-शिख, छ्न्दमाला और जहाँगीर जस चंद्रिका।
विशेषताएँ:रीति काव्यों का प्रयोग करनेवाले सर्व प्रथम केशवदास ही हैं। इनके काव्यों में जटिलता व क्लिष्टता है पर मधुरता दीख पडती है। इनके काव्यों में उपमा, उत्प्रेक्षा, संदेहालंकार के प्रयोग देखा जाता है। श्लेष, विरोधाभास और परिसंख्या अलंकारों का प्रयोग अधिक मात्रा में किया गया है। इनका वर्णन शैली प्रशंसनीय है। ये ओडछा के राजा इन्द्र्जीत सिंह के यहाँ रहते थे।
मृत्यु: सं १६७८ (सन १६२७) में हुई।
8. बिहारीलाल
बिहारी हिन्दी साहित्य के इतिहास में रीतिकाल के कवि माने जाते हैं।
जन्म: ग्वालियर में सं १६५२ (सन १५९५) में हुई।
रचनाएँ:बिहारी सतसई
इनके पिता केशवदास, गुरु-नरहरिदास।
विशेषताएँ: बिहारी का लौकिक जान तथा काव्य जान बढा-चढा था। इसी से उनका एक ही काव्य "सतसई" लोक प्रिय बना। बिहारी के काव्यों में शृंगार वर्णन, कुछ दोहों में भक्ति का वर्णन, प्रकृति का स्वाभाविक वर्णन तथा हाव-भाव का और अनुभवों का सुन्दर वर्णन मिलता है।
बिहारी काव्य जैसी सामाजिकता, कसावट और कल्पना शक्ति का समाहार शक्ति अन्यत्र नहीं मिलती।
बिहारी का काव्य मुक्तक काव्य है।
मृत्यु: आमेर में सं १७२० (सन १६६३) में हुई।
9. भूषण
भूषण हिन्दी साहित्य चरित्र में रीतिकाल के कवि माने जाते हैं। हिन्दी साहित्य के प्रथम राष्ट्रीय कवि हैं।
जन्म: यमुना नदी के किनारे त्रिविक्रमपुर, आज का तिकवाँपुर जो कानपुर के पास है, सं १६७० में हुआ। इनके पिता रत्नाकर त्रिपाठी थे। चिंतामणि, मतिराम और नील कण्ठ(उपनाम-जटाशंकर) भूषण के भाई थें।
रचनाएँ:शिवराज भूषण, शिवा-बावनी और छत्रसाल शतक प्रसिद्ध है।
विशेषताएँ: भूषण छत्रपति शिवाजी के यहाँ रहे तथा बूंदी नरेश छत्रसाल के पास भी रहते थे। ये दोनों राजाओं ने भूषण को बहुत सम्मान करते थे। इनके काव्यों में वीर रस का ही प्रयोग हुआ है तथा युद्ध वीर का वर्णन है। इनकी भाषा ब्रज भाषा है। शैली वीरोचित है।
मृत्यु: १७७२ में हुई।
10. मैथिलीशरण गुप्त
मैथिलीशरण गुप्तजी हिन्दी साहित्य के राष्ट्र कवि माने जाते हैं।
जन्म: झाँसी जिले के चिरगाँव में सन १८३३ में हुआ।
इनके पिता रामचरण बडे वैश्य धनी थे। गुप्तजी को अपने पिता का आशीर्वाद था कि "तू आगे चल कर इससे हजार गुनी अच्छी कवित करेगा। यह आशीर्वाद अक्षरश: सत्य हुआ। अपने पिता को काव्य गुरू मानते थे।
रचनाएँ:गुप्तजी की कृतियों में आज तक बावन से अधिक प्रकाशित हो चुकी हैं। उनमें साकेत, यशोधरा, जयद्रथ वध, भारत-भारती, द्वापर और जय भारत विशेष प्रसिद्ध हैं।
भाषा: गुप्तजी की भाषा खडी बोली है।
विशेषताएँ: गुप्त की रचनाओं में राष्ट्रीयता, मानवता, नाटकीयता, प्रबंध और मुक्तक काव्य भी लिखा है। भारतीय संसद भी रहे। राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने से कई बार जेल भी गये। ये गाँधीवादी थे।
मृत्यु: १९६४ में स्वर्ग सिधारे।
11. रामचंद्र शुक्ल
आचार्य रामचंद्र शुक्ल आधुनिक हिन्दी साहित्य के श्रेष्ट लेखक हैं। हिन्दी साहित्य में शुक्ल जी की प्रतिभा बहुमुखी है।
जन्म: सं १९४१ में बस्ती जिला के अगोनी नामक गाँव में हुआ। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में रहकर शिक्षा विभाग से हिन्दी को ऊँचे स्तर पर लाये। शुक्ल जी हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखा है।
रचनाएँ: इन्होने समीक्षात्माक, दार्शनिक, सांस्कृतिक, निबंध संग्रह, बाल साहित्य, संपादित, हिन्दी साहित्य का इतिहास आदि लिखा है। इनमें चिंतामणि, भ्रमरगीत सार, गोस्वामी तुलसीदास आदि कृतियाँ उल्लेखनीय हैं।
भाषा शैली: शुक्ल जी की भाषा संस्कृत निष्ट तत्सम शब्दावली प्रधान, समास बाहुल, वस्तु विन्यास परक है। इनकी शैली सशक्त है।
विशेषताएँ: हिन्दी में समालोचना शैली के जन्मदाता है।मृत्यु: १९९७ में हुई।
12. सुभद्रा कुमारी चौहान
चौहानजी आधुनिक हिन्दी साहित्य के श्रेष्ट कवयित्री हैं।
जन्म: प्रयाग के निहालपुर में नाग पंचमी के दिन ई १९०४ में हुआ था।
इनके पिता का नाम रामनाथ सिंह था। ये शिक्षा प्रेमी थे।
रचनाएँ:
इनकी कृतियाँ कम होते हुए भी गौरव की वस्तु हैं। मुकुल, बिखरे मोती, झाँसी की रानी, जन्मदिनी, त्रिधारा, सभा के खेल, सीधे साधे चित्र और विवेचनात्मक गल्प विहार(संपादित) प्रसिद्ध है।
विशेषताएँ: शैली मूलत: साहित्यिक खडीबोली है। इनके काव्यों में एक ओर नारी की सहज भावुकता व कोमलता के दर्शन होते हैं, दूसरी ओर समंतयुगीन क्षत्राणियों का तेज भी झलक उठता है।
13. अम्रिता प्रीतम
दसवीं सदी की सुप्रसिद्द पंजाबी कवयित्री निबंधकार और उपन्यासकार। लगभग सौ से भी अधिक रचनाएँ लिखी गईं, जिनका अनुवाद हिन्दी तथा अन्य प्रमुख भाषाओं में हुआ है।
स्वतंत्रता के समय की त्रासदी, देश- विभाजन और महिलाओं की समस्याएँ इनकी रचनाओं की विषय वस्तु है।
जन्म: ३१ अगस्त १९१९ में गुजरनवाला पंजाब में हुआ। अमृता कौर नाम से जाने जाते हैं।
प्रमुख रचनाएँ: पिंजरा, पंजाबी उपन्यास देश विभजन पर आधारित रचना।
सुनेहे लंबी कविता और अन्य रचनाएँ
सम्मान: १९६९ पद्मश्री, १९८२ भारतीय जानपीठ पुरस्कार, २००४ पद्म विभूषण।
मृत्यु: ३१ अक्तूबर २००५
14. गजानन माधव मुक्तिबोध
मुक्तिबोधजी आधुनिक हिन्दी साहित्य के कवि और लेखक माने जाते हैं।
जन्म: सन १९१७ में हुआ।
इनके पिता का नाम माधव राव और माता पार्वती बाई। पुलिस इनाखे में रह कर विश्वत विरोधी होने से रिटायर्ड होने बाद इनका जीवन कष्टमय रहा।
रचनाएँ: काव्य : चाँद का मुँह ठेढा है।
कहानी संग्रह: काठ का सपना। उपन्यास: विपात्र। निबंध: नई कविता का आत्मसंघर्ष तथा अन्य निबंध: कामायनी एक पुनर्विचार।
इनकी भाषा "अनगड" है। संस्कृत के अतिरिक्त अरबी, फारसी, अंग्रेजी तथा ग्राम्य शब्दों का प्रयोग किया है। मृत्यु: सन १९६४ में हुई।
15. राहुल सांकृत्यायन
राहुलजी आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रतिभावान कवि रहे।
जन्म: आजमगड जिला पन्दहा ग्राम में १८९३ ई में अपने ननसाल में हुआ।
ये बचपन से ही प्रभावशाली व्यक्तित्व के रहे। जीवन के सभी क्षेत्रों में राहुलजी अपने काव्यों में स्पर्श किया है। इनका साहित्य बहुमुखी है।
रचनाएँ: यात्रा संबंधी साहित्यिक कृतियाँ: मेरी लद्दाख यात्रा, लंका, तिब्बत में सवा वर्ष, मेरी तिब्बत यात्रा, मेरी यूरोप यात्रा, जापान, ईरान, सोवियत भूमि।
भाषा शैली: इनकी शैली बहुमुखी है। उनकी दूसरी शैली खोजपूर्ण वृत्ति, इनकी भाषा सीधी-साधी और सरल है। उनके अभिव्यक्ति का प्रभाव पाठक के मानस पर डालते हैं।
16. माखनलाल चतुर्वेदी
आधुनिक हिन्दी साहित्य में चतुर्वेदी का महत्वपूर्ण स्थान है।
जन्म: मध्यप्रदेश के बावई में १८८९ ई में हुआ।
इनके पिता का नाम पं. नंदलाल चतुर्वेदी था। इनकी कृतियों को यों विभाजित किया जाता है।
काव्य, नाटक, कहानी, (हास्य प्रधान), निबंध, संस्मरण, भाषण संग्रह।
इन्होने हिन्दी गद्य लिखने का एक नया पद्ध्ति प्रारंभ किया। ये भावुक गद्यकार है। इनकी प्रसिद्धि कवि के रूप में ही अधिक हुई है।
चतुर्वेदीजी कभी धारा शैली, कभी आवेश शैली में लिखते हैं। आपकी कविताओं में स्वतंत्रता-संग्राम की घटती प्रेरणा दी है।
17. हजारी प्रसाद द्विवेदी
आधुनिक हिन्दी साहित्य के कवि, लेखक हैं।
जन्म: बालिया जिले में छपरा नाम्क गाँव में सं १९६४ को हुआ।
इनके पितामह २८ वर्षों तक काशी में रहे। उनका कुल ज्योतिष विद्या में विख्यात था। इसी प्रभाव से हजारी प्रसाद भी आचार्य परीक्षा पास की।
रचनाएँ: इतिहास, निबंध, अनुसंधान एवं आलोचना, उपन्यास धर्म एवं सास्कृतिक विषय का संपादन, अनूदित आदि प्रकार के साहित्य रचना की है।
विशेषताएँ: इनके साहित्य में व्यंग्य शैली, धारा शैली, व्यास शैली दीख पडती है। ये अत्यंत सरल व्यक्ति हैं। इनकी भाषा शुद्ध साहित्यक रूप है। साहित्य में अंग्रेजी भी प्रयोग हुआ है। इनकी शैली सामान्य जनता तक पहुंचती है।
18. फणीश्वरनाथ रेणु
हिन्दी आधुनिक साहित्य के लेखक रेणुजी प्रेमचंदजी के असली वारिश कहे जाते हैं।
जन्म: १९२१ई को बिहार के पूर्णिया जिले के औराही हिंगना गाँव में हुआ।
ये राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेते थे। रेणु की भाषा लोक भाषा है। इनकी रचनाओं में जीवन दर्शन दीख पडती है। रिपोर्तज लेखक के रूप में भी रेणु प्रसिद्ध है। इन्होने कहानियों में ग्रामीण आँचलिक परिवेश के साथ शहरी जीवन के विभिन्न विन्यास भी आपने समेटा है।
रचनाएँ: कहानी, उपन्यास, निबंध और रिपोर्तज आदि। इनमें "मैला आँचल" इनकी बहुत प्रतिष्ठा बढाई।
मृत्यु: १९७७ में हुई।
19. केदारनाथ अगरवाल
अग्रवालजी हिन्दी साहित्य के श्रेष्ट लेखक हैं।
जन्म: १९११ मे मध्यप्रदेश में हुआ।
इन्होने छायावादी और प्रगतिवादी पर बल दिया है। इनकी रचनाओं में प्रकृति सौंदर्य का वर्णन पर बल दिया हुआ विचार दीख पडता है तथा मानव के लिए आशा का ऊँचा और उदात्त स्वर मुखरित हुआ है।
रचनाएँ:काव्य संग्रह: युग की गंगा, नींद के बादल, लोक तथा आलोक, फूल नहीं रंग बोलते हैं।
ये प्रगतिशील विद्रोही कवि हैं।
विशेषताएँ: संक्षेप में कहा जा सकता है कि अग्रवालजी की कविताएँ समृद्ध है। कोमल, कठोर, स्निग्ध, रमणीय आदि समस्त प्रकार की प्रकृति का रूप उनकी कविताओं में उपस्थित हुआ है।
सरलता, सरसता, मधुरता, प्रगतिशीलता और अभिव्यक्ति की उदात्तता की दृष्टी से अग्रवालजी का काव्य धनी है। इनकी भाषा अति सरल है। शब्द चयन अनूठा है। उनमें भावों की गहराई है।
20. रघुवीर सहाय
रघुवीर सहाय आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रभावी लेखक हैं।
जन्म: लखनऊ में १९२९ में हुआ।
इन पर लोहिय का प्रभाव पडा। इन्होने प्रकृति और प्रेम के उपादानों के सहारे कविता की।
रचनाएँ: काव्य संग्रह: सीढियों पर धूप,लोग भूल गये हैं, कुछ पत्ते कुछ चिट्टियाँ।
कहानी संग्रह: जो हम बना रहे हैं।
निबंध: दिल्ली मेरा परदेश, लिखने का कारण, ऊबे हुए सुखी।
इनकी रचनाएँ दूसरा सप्तक द्वारा प्रकाशित हुए।
21. मोहन राकेश
राकेशजी हिन्दी आधुनिक साहित्य के लेखक माने जाते हैं।
जन्म: १९२५ में अमृतसर में हुआ। इनके पिता श्रेष्ट साहित्य एवं संगीत प्रेमी और वकील अमृतचंद गुगवाली थे।
रचनाएँ: नाटक: आषाढ का एक दिन, लहरों का राजहंस, आधे-अधूरे, अंडे के छिलकें,
उपन्यास: अंधेरे बंद कमरें, न आनेवाला कल, अंतराल नीली रोशनी की बाहें।
कहानियाँ: क्वार्टर, पहचान, तीनों संग्रह में ५४ कहानियाँ।
इनकी भाषा शैली बिंब विद्यायनी हैं। भावों के अनुकूल है। सरलता और स्पष्टता उनकी प्रमुख विशेषता है।
22. कमलेश्वर
इनका पूरा नाम कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना।
जन्म: ६ जनवरी १९३२ मैनपुरी (उ.प)
मोहन राकेश, निर्मल वर्मा, भीष्म साहनी मंडल के अग्र लेखकों में एक माने जाते हैं।
रचनाएँ: कितने पाकिस्तान(उपन्यास)
विशेषता: १९५० के लगभग के नयी कहानी आंदोलन के सक्रिय लेखक माने जाते हैं। स्वतंत्रता पूर्व और स्वतंत्रता के बाद की ज्वलंत समस्याओं को अपनी रचनाओं में स्थान दिया है। उपन्यास, कहानी, निबंध और हिन्दी सिनेमा की पटकथा आदि सभी में अपनी बहुमुखी प्रतिभा का परिचय कराया है।
सम्मान: २००३ में साहित्य अकादमी पुरस्कार, २००५ में पद्म भूषण पुरस्कार। इनकी रचनाएँ अंग्रेजी सहित अन्य भाषाओं में अनूदित हैं।
मृत्यु: २७ जनवरी २००७ में हुई।
23. भीष्म साहनी
आधुनिक हिन्दी कथा साहित्य में कलात्मक दे कर साहित्य में वैजानिक समझ दे कर स्थानांतरित का सपना ले कर अवतरित हुए।
जन्म: १९१५ में कट्टर आर्य समाज में रावलपिंदी में पैदा हुए। उस समय राष्ट्रीय आंदोलन का समय था। राजनैतिक, सामाजिक व आर्थिक विषमताओं में गुजरते हुए कथात्मक वातावरण निर्माण किया।
रचनाएँ: कहानी: भाग्यरेखा, पहला पाठ, भटकती राख, पटरिया, शोभायात्रा, निशाचर, पाली,
उपन्यास: झरोखे, कडियाँ, तमस, बसंती, नीलू-नीलिमा, नीलोफर।
नाटक: माधवी, हानूशक, कबीरा खडा बाजार में। निबंध: अपनी बात,
बाल साहित्य: गुलेल का खेल।
मृत्यु: २००३ में हुई।
24. केदारनाथ सिंह
हिन्दी साहित्य के प्रतिष्टित लेखक हैं। ये प्रकृति चित्रण और गाँव का कष्टमय जीवन वर्णन करने में सिद्धहस्थ हैं।
जन्म: १९३४ में उत्तर प्रदेश के ब्लिया जिले के एक गाँव में हुआ।
इनकी भाषा ब्रज भाषा तथा अवधी है। केदारनाथ अपनी जीवन शैली को भारतीय किसान से सीखते हैं।
ये धर्म, पुराण, इतिहास और लोक साहित्य के क्षेत्र में घुसे रहते हैं। इनकी हर कविता अपेक्षाकृत बडे अर्थ को प्राप्त करने का ही प्रतिफल है।
रचनाएँ: काव्य: अभी बिलकुल अभी, यहाँ से देखो, जमीन पक रही है।
संग्रह: अकाल में सारस।
25. डा रामकुमार वर्मा
डा वर्माजी हिन्दी के लेखक और कवि हैं।
जन्म: सन १९०५ में मध्यप्रदेश के सागर जिले में हुआ था। इनके पिता का नाम लक्ष्मीप्रसादजी डिप्टी कमीशनर थे। वर्माजी अध्ययनशील विद्यार्थी रहे।
इनकी रचनाओं को इस प्रकार विभाजित किया जाता है।
काव्य, नाटक, उपन्यास, पद्य काव्य, एकांकी संग्रह, निबंध और आलोचना, संपादित।
विशेषताएँ: वर्माजी बहुमुखी काव्यों की रचना की है।
उपाधि: पी.एच.डी पाये हैं। इनकी भाषा साहित्यिक खडीबोली है। इनकी शैली में वर्णनात्मक, गीतिकाव्य और विश्वबंधुत्व की सुंदर कल्पना है।
26. आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी
महावीर प्रसाद द्विवेदी एक ऐसे रचनाकार हैं जिन्होंने हिन्दी भाषा और साहित्य को तदयुगीन अराजकता से उबारकर निश्चित दिशा प्रदान की। ये लेखक, भाषा शिक्षक, सुधारक, हिन्दी भाषा प्रचारक, संपादक, आलोचक, निबंधकार रहे।
जन्म: द्विवेदीजी का जन्म उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के दौलतपुर गाँव में १८६४ को हुआ था।
रचनाएँ:काव्य: देवी स्तुती शतक, काव्य मंजूषा, सुमन,
अनूदित रचनाएँ: विनय विनोद, विहारवाटिका, स्नेहमाला,
गद्य: नौषध चरित चर्चा, हिन्दी कालीदस की समालोचना, नाट्य शास्त्र।
द्विवेदीजी हिन्दी साहित्य के इतिहास में भारतेंदु के बाद अपना युग प्रारंभ किया। "सरस्वती" पत्रिका के संपादक रहे। पत्रिका द्वारा साहित्य जागृति किया। ये आचार्य रहे इनका मार्ग एक निर्देशक का रूप देता है। मृत्यु:२१ दिसंबर सन १९३८ में हुई।
27. भगवती चरण वर्मा
वर्मा जी आधुनिक हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध लेखक हैं।
इनका जन्म: उन्नाव जिले के शफीपुर तह्शील में ई १९०३ में हुआ।
वर्माजी आकाशवाणी और फिल्मों में काम करते रहे।
रचनाएँ: इनके महत्वपूर्ण कृतियों का विवरण इस प्रकार है:
काव्य: मधुकण, प्रेम संगीत, मानव, एक दिन। उपन्यास: पतन, चित्रलेखा,तीन वर्ष, ठेडे-मेडे रास्ते, भूले बिसरे चित्र, वह फिर नहीं आई, सब ही नचावत राम।
कहानी संग्रह: इन्स्टालमेंट, दो बाँके, राख और चिंगारी,
नाटक: रुपया तुम्हे खा गया, सामर्थ्य और सीमा।
विशेषताएँ: इनके काव्य अहंकारिता, मस्ती, व्यंग्य विनोद, अहंकार-वियतिवाद, प्रकृति सौंदर्य, कला पक्ष, ओत-प्रोत हैं।
28. ना. नागप्पाजी
जन्म: मण्ड्या जिले के अक्किहेब्बाल में ई.स १९१२ में हुआ। इन्होंने काशी हिन्दू विश्व विद्यालय से हिन्दी विषय लेकर एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। पूरे दक्षिण में हिन्दी लेकर एम.ए. करनेवाले ये पहले सज्जन हैं। मैसूर विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग मेम प्रोफेसर और अध्यक्ष रह चुके हैं। आपको हिन्दी साहित्य की सेवा के उपलक्ष्य में कई पुरस्कार प्राप्त हैं। जिनमें उल्लेखनीय है "बाबू राजेन्द्र शिखर सम्मान। इनकी कतिपय कृतियाँ इस प्रकार हैं:
बुआजी, व्यावहारिक हिन्दी, अभिनव हिन्दी व्याकरण, कर्नाटक में हिन्दी प्रचार, हिन्दी साहित्य का अध्ययन इत्यादी।
अनूदित रचनाएँ: श्रवण बेलगोल, मैसूर और पंपायात्रा।
29. कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर
प्रभाकरजी वर्तमान युग के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार हैं।
प्रभाकरजी प्रतिभाशाली पत्रकार हैं।
रचनाएँ: रेखाचित्र, नई परछाई, नए विचार, जिंदगी मुसुकाई, माटी हो गई सोना।
कहानी संग्रह: आकाश के तारे-धरती के फूल,
समरसात्मक निबंध संग्रह: दीप जले शंख बजे। प्रेरणात्मक निबंध संग्रह: बाजे पायलिया के घुंघरु,
भाषा और शैली: प्रभाकर की भाषा शैली पर उनकी पत्रकारित का प्रभाव है। संस्कृत के तत्सम शब्द, अंग्रेजी शब्द, उर्दु के शब्द, देशज शब्द, मुहावरों का प्रयोग भी देख सकते हैं। क्रोध निराशा, आशा के भाव उनके कथन में सजीव हो उठते हैं।
भाषा विशुद्ध हिन्दी है। इनमें निर्भीकता दीख पडती है।
30. नागार्जुन
जीवन में जैसा जिया वैसा ही काव्य में चित्रित करनेवाले नागार्जुन हैं। इन्हे ’यात्री’ नाम से पुकारा जाता है। इनका असली नाम वैद्यनाथ मिश्र था।
जन्म: १९११ में बिहार के मधुबनी जिले के सतलखा गाँव में हुआ।
रचनाएँ: कविताएँ, संस्मरण बाल साहित्य, निबंध, कहानी संग्रह।
राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेते थे। इनके काव्यों में व्यंग्य भी भरा रहता है। ये स्वभाव से विद्रोही थे। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा में संपादकीय विभाग से संबंध था।
इन्होने हिन्दी और मैथिली के अतिरिक्त बंगला और संस्कृत भाषा में भी कविताएँ लिखी।
१९९८ में इनकी मृत्यु हुई।
31. हरिवंशराय बच्चन
आधुनिक हिन्दी काव्य में हालावाद के प्रवर्तकों और उन्नायकों में बच्चनजी का अग्र स्थान है।
जन्म: इलाहाबाद में चक मुहल्ले में १९०७ में हुआ था।
ये स्वतंत्रता आंदोलन में असहकार आंदोलन, सत्याग्रह आंदोलन इन संघर्षों में भाग लेते थे। बच्चन जी काव्य जीवन की बहुमुखी अनुभूतियों को सामने ले कर आता है।
इनके काव्य़ों में शृंगार, निराशा, अवसाद, आदि चित्रण मिलते हैं। राष्ट्रीय आंदोलन, जीवन के संघर्ष सांस्कृतिक क्रांति आदि ने उनके जीवन को प्रभावित किया।
भाषा शैली: बच्चनजी की काव्य भाषा सरल और मुहावरेदार हैं। इनकी शैली यथातत्य चित्रण करने में बहुत सरल है।
32. प्रेमचंद
प्रेमचंदजी आधुनिक हिन्दी साहित्य के श्रेष्ट लेखक हैं।
इन्हे उपन्यास और कहानी सम्राट कहा जाता है।
जन्म: काशी के निकट लमही नामक गाँव में १९३७में हुआ। पहला नाम धनपत राय।
पिता का नाम अजायबराय था, मात का नाम आनंदी। हिन्दी साहित्य भंडार भर देने में प्रेमचंद जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
इनको मुंशी प्रेमचंद भी कहा जाता है।
रचनाएँ: सेवा सदन, गोदान, गबन, इनकी रचनाओं में हम कई रूप देख सकते हैं।
उपन्यास, कहानी संग्रह, नाटक, निबंध संग्रह, जीवनियाँ, संपादित, अनूदित आदि।
विशेषताएँ: प्रेमचंदजी उच्च कोटि के कलाकार थे। उनकी भाषा बहुत सरल और शैली हास्य और व्यंग्य, नाटकीयता के संवाद, मुहावरों का प्रयोग, देखा जाता है। प्रेमचंद जी बहुत कष्ट जीवी, सहृदयी, सरल सज्जन थे। शिक्षा विभाग में डेप्यूटी इन्सपेक्टर रहे। इसे त्याग कर पत्रकर्ता बने।
मॄत्यु: १९९३ को हुई।
33. रामवृक्ष बेनिपुरि
श्री रामवृक्ष बेनिपुरिजी हिन्दी साहित्य के अमर कलाकार हैं।
जन्म: १९०२ में बिहार के बेनिपुरी थाना ग्राम कटरा जिला मुजफ्फरपुर में हुआ था।
इनके पिता का नाम फूलवन्त सिंह था।
नाटक, शब्दचित्र, रेखाचित्र, जीवनी, गल्प, उपन्यास और बाल साहित्य की रचना की है।
शिक्षा ननिहाल में हुआ था। बेनिपुरिजी संगठनात्म्क और प्रचारात्मक कार्यों से हिन्दी की महान सेवा की है।
इनकी भाषा और शैली में जादू थी। संस्कृत, उर्दू, शब्दों का भी प्रयोग की है।
34. रामेश्वर दयाल दुबे
जन्म: उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जनपद के हिन्दुपुर ग्राम में सन १९०८ में हुआ।
आगरा विश्वविद्यालय से हिन्दी विषय लेकर एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के परीक्षा मंत्री के रूप में कार्य करते हुए कुल चालीस वर्ष हिन्दी की सेवा की है। अब तक इनकी साठ से अधिक पुस्तके प्रकाशित हुई है।
रचनाएँ: कोणार्क, चित्रकूट, सौमित्री, नूपुर आदी उल्लेखनीय है।
35. रामनरेश त्रिपाठी
त्रिपाठीजी हिन्दी आधुनिक साहित्य के कवि और लेखक हैं।
जन्म: जौनपुर जिले के कोइरीपुर नामक ग्राम में सन १८८९ (सं १९४६) में हुआ।
इनके पिता का नाम पं. रामदत्त त्रिपाठी था। कई विचारों पर कुछ न कुछ लिखा है। उनकी कृतियों को इस प्रकार किया जा सकता है। काव्य,म उपन्यास और कहानी संग्रह, नाटक, आलोचना जीवन और संस्मरण, बाल साहित्य, संपादित आदि।
त्रिपाठी की भाषा साहित्य खडीबोली है। उन्होने संस्कृत के तत्सम क्लिष्ट दोनों प्रकार के शब्द इस्तेमाल की है। ये स्वच्छंदतावादी थे। ग्राम साहित्य की समृद्धि की है। इनकई रचनाओं में मिलन, पथिक और स्वप्नखंड काव्य उल्लेखनीय है।
मृत्यु: १९६२में हुई।
36. भारतेंदु हरिश्चंद्र
भारतेंदुजी हिन्दी साहित्य के प्रथम गद्यकार माने जाते हैं। इन्होंने कई नाटक, निबंध, उपन्यास, पत्रकार भी हैं।
जन्म: १९०७ (ई. सन १८५०) में हुआ। इनके पिता गोपाल चंद्र ब्रज भाषा के अच्छे कवि थे।
रचनाएँ: इनके कुल दो सौ अडतीस (२३८) रचनाएँ उपलब्द हैं। जो नाटक, नव जागरण, राष्ट्रीयता, भक्ति प्रधान, समाज सुधार प्रकृति चित्रण, शृंगार विषयक कविताएँ आदि।
उपाधि: भारतेंदु ( देश से दिया हुआ उपाधि)
विशेषताएँ: भारतेंदु जी आधुनिक हिन्दी साहित्य के युग निर्माता हैं। इनकी सेवा केवल चौंतीस वर्षों तक चंद्र के समान प्रकाश फैलता रहा।
इनकी भाषा सरल, शुद्ध ब्रज भाषा, वस्तुत: प्राचीन और वर्तमान काल की युग संबंधी काव्य अपनी विशिष्टता रखता है।
मृत्यु:सं१९४१ में हुई।
37. जयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसादजी हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल के लेखक हैं।
जन्म: सं १९४६ (सन ई १८८९) में काशी में वैश्य कुल में हुआ। घर पर ही हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दु और फारसी पढने लगे। पिता का नाम देवि प्रसाद था। प्रसादजी की प्रतिभा बहुमुखी थी।
रचनाएँ: नाटक, उपन्यास, काव्य, निबंध आलोचना सभी विषयों पर उत्कृष्ट रचनाएँ की है। उनकी रचनाओं के वर्गीकरण यों है। चंपू काव्य, गीति नाटक, उपन्यास, नाटक, कहानी संग्रह निबंध और आलोचना, प्रभाव।
विशेषताएँ: इनकी रचनाओं में छायावादी और रह्स्यवादी दीख पडता है। इनकी भाषा खडीबोली है। ये प्रेम और सौंदर्य के वर्णन करनेवाले थे।
मृत्यु: सं १९९४ (ई.सन १९३७) में हुई।
38. सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
निरालाजी आधुनिक हिन्दी साहित्य के छायावादी कवि माने जाते हैं।
जन्म: सं १९५३ (ई१८९७) में हुआ। इनके पिता का नाम राम सहाय त्रिपाठी था। इनका जीवन बडा संघर्षमय रहा।
रचनाएँ: इनकी कृतियों की तालिका इस प्रकार है। काव्य, कहानी संग्रह, उपन्यास, रेखाचित्र, आलोचना और निबंध, जीवनी साहित्य, अनुवाद। इनके काव्यों में छायावाद प्रमुख रूप से देखा जाता है तथा वीर रसपूर्ण काव्य, गीतिकाव्य़, राष्ट्रीय, प्रगति, दार्शनिक व्यंग्य प्रधान रहस्यवादी।
ये विद्रोही कलाकार भी थे।
विशेषताएँ: निरालाजी युग प्रवर्तक कवि हैं।
निरालाजी की भाषा लोक गीतों की भाषा के करीब लाता है।
मृत्यु: १९६१ में हुई।
39. गुलाबराय
गुलाबराय को सरस्वती के वरगुन माने जाते हैं। ये एक आदर्श अद्यापक, समीक्षक, जागरूक संपादक, गंभीर विचारक, प्रिय साहित्यकार थे।
जन्म: इटावा नगर में सन १८८८में हुआ था। इनकी भाषा शुद्ध साहित्यक खडी बोली है।
इनकी कृतियों को इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है। समीक्षात्मक, दार्शनिक, सांस्कृतिक, निबंध संग्रह, बाल साहित्य, संपादित।
विशेषताएँ: गुलाबरायजी दार्शनिक, आलोचक और निबंधक थे। उन्होने इतिहास, साहित्य, राजनीति, धर्म, दर्शन, मनोविजान, समाज, पर्व, त्योहार, सामयिक आंदोलन, घटनाएँ आदि पर उनके
निबंध लिखे हैं।
मृत्यु: सन १९६३ में स्वर्गवास हुआ।
40. विष्णु प्रभाकर
जन्म: मीरापुर में १९२२को हुआ।
स्वतंत्र लेखक के रूप में आप हिन्दी की सेवा कर रहे हैं। आपको दर्जनो पुरस्कार मिले हैं।
इनकी रचनाएँ इस प्रकार हैं।
उपन्यास: निशिकान्त, कोई तो, अर्धनारीश्वर, संकल्प।
कहानी: एक और कुंति, जिंदगी एक रिहर्सल, कर्फ्यू और आदमी।
नाटक: नव प्रभात, डाक्टर बंदिनी, केरल का क्रांतिकारी
एकांकी: प्रकाश और परछाई, तीसरा आदम, मैं भी मानव हूँ।
उपाधी: आपको वर्धमान विश्वविद्यालय से (बंगाल) डी. लिट की उपाधी दी है।
41. धर्मवीर भारती
धर्मवीर भारतीजी आधुनिक हिन्दी साहित्य के जाने माने उदयोन्मुख लेखक हैं। इन्होने अनेक साहित्य विधाओं के क्षेत्र में नये प्रयोग किये हैं। इनकी कला की एक विशेषता यह है कि प्रतीकों के माध्यम से युग सत्य को सजीव साकार रूप में प्रस्तुत कर देते हैं। भारतीजी पीडित हिमायति और रक्षक के रूप में हमारे सामने आते हैं।
भाषा शैली आकर्षक है। व्यावहारिक भाषा के पक्षपाती हैं। यही कारण आप की भाषा में अंग्रेजी, फारसी और अरबी शब्दों का भी प्रयोग है। ये एक अच्छे कलाकार, नाटककार, संपादक और अच्छे कवि हैं।
संक्षेप में हम भारतीजी को एक ऐस साहित्यकार मान सकते हैं जो बौद्धिक चेतना का समर्थन करने में सिद्द हस्थ हैं।
42. आचार्य विनोबाभावे
विनोबाभावे एक ब्राह्मण कुलोत्पन्न कर्मनिष्ट संत हैं। इनके जीवन में इनकी माता का प्रभाव रहा। उनके हाथों में पले भावेजी धर्मनिष्ट, सहृदयता, सहनशीलता, कर्मनिष्टता के भावों को अपनाये थे।
भाषा पर अंग्रेजी का प्रभाव अवश्य दिखाई देता है। भावेजी की भाषा आडंबर और सजावट से रहित है। आपकी विचारधारा सरल, सुबोध प्रभावशील होती है। विनोबाजी महान यात्री रहे। उनमें सत्य, अहिंसा, प्रेम, दया, सेवा-भाव, संतोष एवं विनय-शीलता में भरे हुए थे। इन पर गांधीजी का प्रभाव पडा हुआ था।
ये सर्वोदय के नायक तथा भूदान यज के प्रवर्तक माने जाते हैं।
43. सुमित्रानंदन पंत
पंतजी आधुनिक हिन्दी साहित्य के छायावादी और रहस्यवादी लेखक माने जाते हैं।
जन्म: आल्मोडा जिले के कौसानी में १९०० में हुआ।
रचनाएँ: इनकी रचनाओं को तीन भागों में विभाजित किया जाता है।
१) छायावादी २) रहस्यवादी ३) प्रगतिवादी आध्यात्मवादी।
पंतजी की भाषा विशुद्ध खडीबोली है।
काव्य, उपन्यास, रूपक निबंध, अनुवाद, काव्य संकलन।
विशेषताएँ: प्रकृति की गोद में पैदा होने से प्रकृति चित्रण और मानवतावाद में सिद्दह्स्थ हैं। इन्होने गद्य और पद्य दोनों में सफलता पूर्वक रचना की है। पंतजी के काव्य शृंगार रस प्रधान हैं, गेय पद हैं। मृत्यु १९७७ में हुई।
44. रामधारी सिंह दिनकर
दिनकर जी आधुनिक साहित्य के कवि माने जाते हैं। ये जन चेतना के नायक थे। ब्रिटीश साम्राज्य शाही का विरोध करते थे।
जन्म: बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया घाट नामक ग्राम में सं १९६४ (ई १९०७) में हुआ था।
रचनाएँ: काव्य: रेणुका, रसवंती, सामधेनी, द्वंद्वगीत, बापू, कुरुक्षेत्र,
आलोचना और निबंध:अर्ध नारीश्वर, मिट्टी की ओर, रेती के फूल आदि।
विशेषताएँ: इनकी रचनाओं में क्रांतिकारी भाव देख सकते हैं। विचारों की स्पष्टता इनके काव्यों में दिखाई देती है।
मृत्यु सं २०३० (सन १९७३) में हुई।
45. महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा जी आधुनिक हिन्दी साहित्य में रहस्यवादी कवयित्री हैं। महादेवी का आराध्य महान है। सृष्टी का अपार सौंदर्य और वैभव उनके ऊपर बल देती है।
जन्म: सं१९६४९ई१९०७) में फरूखाबाद में हुआ।
रचनाएँ: गद्य एवं पद्य दोनों में रचनाएँ की है। काव्य ग्रंथ: नीहार, रश्मी, नीरजा, साध्य्गीत, यामा, दीपशिखा, संघिनी।
गद्य: अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ,श्रूंखला की कडिया, महादेवी का विवेचनात्मक गद्य, पथ के साथी, महादेवी जी विशेषकर गीति काव्य का प्रयोग किया है।
विशेषताएँ: महादेवीजी अधिकतर दार्शनिक रूप अपनाया है। अपने काव्यों से हिन्दी साहित्य में नया मार्ग प्रदर्शित किया।
मृत्यु: १९८७ में हुई।
46. सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन "अजेय"
सच्चिदानंदजी आधुनिक हिन्दी साहित्य में एक प्रतिष्टित साहित्यकार हैं। ये एक तत्ववेत्ता हीरानंद शास्त्री के पुत्र थे।
जन्म: १९११ई में कसिया जिला कुसिया देवारिया(उत्तर प्रदेश) में हुआ।
अजेय जी के काव्य बहुमुखी हैं। उन्हे इस प्रकार विभाजित किया जाता है।
उपन्यास, कहानी, मात्रावृत्त, निबंध, संपादन, विविध साहित्य अंग्रेजी रचनाएँ।
ये छायावादी, रहस्यवादी तथा नई कविता के साहित्यकार हैं। इनके काव्यों में प्रकृति चित्रण, व्यंग्य, विद्रोंही भावना, प्रेमानुभूति मिलते हैं।
अजेय जी हिन्दी साहित्य के एक अप्रतिम कलाकार हैं। आधुनिक कविता के सर्वाधिक चर्चित कवि भी है।
47. नरेश मेह्ता
मेहताजी हिन्दी साहित्य के बहुमुखी कलाकार हैं। नरेश की कविता भाव, भाषा कल्पना की दृष्टी से अत्यंत समृद्द है।
जन्म: १९२४ में गुजराति परिवार में हुआ। ये मूलत: दो तरह के आदमी हैं। एक तो हर आदमी से दोस्ती करना। दूसरा हरचीज को पीछे छोड कर आगे और आगे चलते जाना।
ये गंभीर, रसात्मक, क्लासिकल, भांगीमा की रचनाओं के प्रणय्न के साथ उसने प्रकृति के सामान्य मनोरम चित्र भी अंकित किया है।
नई कविता की दुर्बलताओं, वर्तमान असंगतियों और प्रयोग पर अपना स्पष्ट मत प्रदान करते हुए लिखते हैं।
48. निर्मल वर्मा
आधुनिक हिन्दी साहित्य के लेखक माने जाते हैं।
जन्म: १९२९ को शिमला में हुआ। इनकी शिक्षा दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कालेज से इतिहास में एम.ए पास कर चुके हैं।
रचनाएँ: वे दिन, लाल टीन की छत चिथडा सुख, परदे, जलती झाडी पिछली गर्मियों मे।
कहानी संग्रह: बीच बहस में। उपन्यास: रात का रिपोर्टर,
निबंध तथा संस्मरण: चीडों पर चाँदनी, शब्द और स्मृति, कला का जोखिम, ढालान से उतरते हुए भारत और यूरोप, प्रतिशृति के स्तोत्र। नाटक: तीन एकांत
सम्मान: साहित्य अकादमी पुरस्कार, जानपीठ पुरस्कार, पद्मभूषण आदि।
49. कुँवर नारायण
कुँवर नारायण हिन्दी आधुनिक साहित्य के श्रेष्ट लेखक और कवि माने जाते हैं। इनकी ख्याती कवि के रूप में अधिक है। इनकी प्रतिभा बहुमुखी है।
जन्म: १९२७ में उत्तर प्रदेश में हुआ।
पढाई: लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी एम.ए.पास की।
रचनाएँ: काव्य: चक्रव्यूह, परिवेश हम तुम, अपने सामने कोई दूसरा नहीं, इन दिनों,
समीक्षा ग्रंथ: आज और आज से पहले।
कहानी संग्रह: आकारों के आस पास। इनकी भाषा में नाटकीयता देखी जाती है।
कबीर जैसी निर्भीकता नारायण में दीख पडती है।
पुरस्कार:साहित्य अकादमी पुरस्कार, केरल का कुमार्न आशान पुरस्कार, व्यास सम्मान,
हिन्दी संस्थान का विशेष सम्मान, शतदल पुरस्कार, प्रेमचन्द पुरस्कार,
लोहिया आतिविशिष्ट सम्मान, रस्ट्रय कबीर सम्मान, इन्होने कई अनुवाद भी किया है।
"युग चेतना" "नया प्रतीक" तथा "छाया नट" पत्रिकाओं के संपादक भी रहे।
50. श्री लाल शुक्ल
जन्म: ३१ दिसंबर १९२५ को लखनऊ के मोहनला गंजे के पास उत्तरौली गाँव में हुआ।
शिक्षा: १९४७ को इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक डिग्रि पास किया।
रचनाएँ: उपन्यास: सूनी घाटी का सूरज, अजानवास, राग दरबारी, आदमी का जहर, सीमाएँ टूटती है।
कहानी संग्रह: यह घर मेरा नहीं, सुरक्षा तथा अन्य कहानियाँ आदि।
व्यंग्य संग्रह: अंगद का पाँव, यहाँ से वहाँ, मेरी श्रेष्ट व्यंग्य रचनाएँ, खबरों कॊ जुगाली।
आलोचना: अजेय, कुछ राग-कुछ संग, भगवती चरण वर्मा, अमृतलाल नागर।
बाल साहित्य: बब्बर सिंह और उसका साहित्य।
पुरस्कार: साहित्य अकादमी, पद्म भूषण, बिर्ला फाउंडेशन का व्यास सम्मान, साहित्य भूषण,
गोयल साहित्य, लोहिया सम्मान, शरद जोशी सम्मान, मैथिलीशरण गुप्तजी पुरस्कार,
यश भारती और जानपीठ पुरस्कार।
51. अमरकांत
हिन्दी साहित्य के लिए इनका योगदान अपूर्व है।
जन्म: जुलाई१९२५ को उत्तर प्रदेश के बलियाअ जिले के नागरा में हुआ।
शिक्षा: बलिया से मेट्रिक, गोरखपुर और इलहाबाद में इन्टर, इलहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए.।
रचनाएँ: कहानी संग्रह:जिंदगी और जोक, देश के लोग, मौत का नगर-मित्र मिलन और कुहासा।
उपन्यास: सूखा पत्ता, आकाशपत्ती, काले-उजले दिन, सुख जीवी, बीच की दीवार, ग्राम सेविका।
बाल उपन्यास: वानर सेना।
पुरस्कार: जानपीठ पुरस्कार।