Saturday 31 October 2015

विशेषण

जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताता है, उसे विशेषण कहते हैं।
विशेषण के भेदः
विशेषण के चार भेद होते हैं-
1.गुणवाचक विशेषण
2.संख्यावाचक विशेषण
3.परिमाणवाचक विशेषण
4.सार्वनामिक विशेषण
1.गुणवाचक विशेषणः
    संज्ञा या सर्वनामके गुण या दोष का बोध करानेवाले शब्द को गुणवाचक विशेषण कहते हैं।
जैसेः बड़ा,छोटा,काला, लंबा, मोटा, कडुआ,नमकीन-आदि.
2.संख्यावाचक विशेषणः
संज्ञा या सर्वनाम के संख्या का बोध करानेवाले शब्द को संख्यावाचक संज्ञा कहते हैं।
जैसेःएक दो,तीन पौना, डेढ़-आदि।
संख्यावाचक विशेषण के दो भेद हैं-
क.निश्चय संख्यावाचक विशेषण
जैसे- दो लोग,चार हाथी, पाँच लड़के- आदि
ख.अनिश्चय संख्यावाचक विशेषण
जैसेः हजारों लोग,
3.परिमाणवाचक विशेषणः
संज्ञा या सर्वनाम के परिमाण का बोध करानेवाले शब्द को परिमाणवाचक सर्वनाम कहते हैं।
जैसेः चार मीटर कपड़ा,चार सेर दूध, पाँच किलो चावल।
क.निश्चय परिमाणवाचक विशेषण
जैसे- दो लीटर दूध ,चार किलो चावर, पाँच सेर घी- आदि
ख.अनिश्चय परिमाणवाचक विशेषण
जैसेः कुछ पानी, बहुत चावल,
4.सार्वनामिक विशेषण/सेकेतवाचक विशेषण
जो सर्वनाम विशेषण की तरह प्रयुक्त होते हैं, उन्हें सार्वनामिक विशेषण कहते हैं।
जैसेःजो लड़का,कोई चीज़,कुछ फल-आदि।
(सूचनाः यहाँ पहले विशेषण का सामान्य परिचय देने का प्रयास किया गया है। आगे इसके संबंध में विस्तृत जानकारी देने का प्रयास किया जायेगा।)
डॉ.एस.विजी
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"आधी छोड़ सारी को धावे, आधी रहे न सारी पावे- 1"

     नागवाला एक गाँव था, उसमें नागण्णा नामक एक खेतिहर था। उसके पास केवल एक एकड़ ज़मीन थी। कुछ खेती हुई तो ठीक, नहीं तो जंगल में जाकर लकड़ी का सौदा करके जीवनयापन करना पड़ता था।

     एक बार अच्छी वर्षा हुई। सभी खेतिहर अपने-अपने खेत में अपनी-अपनी इच्छानुसार बोआई की। पड़ोसी गाँव के मुखिया ने अपने खेत से बचे बुआई योग्य ईख के टुक़डे दिये। नागण्णा नामक कृषक अपने खेत में ईख के टुकड़े बुआई की । अच्छी तरह फसल निकली। इसे देखकर कृषक ने फूल न समाया।

     एक दिन किसान प्रातःकाल खेत की ओर निकला तो देखा कि फसल के एक कोने में, ईख काटकर कोई खाकर नाश किया था। दूसरे दिन जाकर देखा कि फसल के दूसरे कोने में नाश हुआ था। इसे देखकर खेतिहर को बहुत दुख हुआ। इसको पता लगाने की दृष्टि से उसी रात में खेत के एक कोऩे में बैठकर इंतज़ार करने लगा।

      आधीरात में एक ऐरावत आकर ईख की फसल खाने लगा। जब इसे देखकर क्रोध से उसको मारने के लिए उसकी पूँछ पकड़ लिया तो तब वह आकाश की ओर तुरंत निकला, खेतिहर भी हाथी के साथ स्वर्ग पहुँचा।

      स्वर्ग की संपत्ति देखकर किसान अपने कुर्ता और घुटन्ना के जेब में भरने लगा। लालच से अपनी वल्ली में भी भरकर कमर में बाँध लिया।

      फिर हाथी निकलते देखकर उसकी पूँछ पकड़ लिया। हाथी सीधा भूलोक के खेतिहर के ईख-खेत में उतरा। तुरंत खेतिहर हाथी छोड़कर घर की ओर नौ दो ग्यारह हो गया। किसान की पत्नी लायी हई संपत्ति को देखकर पूछा- कहाँ से लाये हैं ? किसान ने अपनी पत्नी से सारे विचार कहा। सुनते ही पत्नी ने कहा ऐसा अवसर रहे तो जाइये मैं भी आपके साथ आती हूँ थैली में भरकर आयेंगे कहकर पति से शोर मचा दिया। इससे सारे लोग किसान के घर में आ गये । यह समाचार पड़ोसियों को भी पता चला। गाँव के लोग हम भी तुम्हारे पैर पकड़कर आते हैं और कुछ पैसे लाकर आराम से जीवनयापन कर सकते हैं कहने लगे।

      किसान को अपनी पत्नी के व्यवहार से एक ओर शर्म हुआ तो दूसरी ओर लोगों की याचना एक तरह से सिर दर्द का विषय बन गया।

       बिना विधि पूर्वक, आधीरात में गाँव के लोगों के साथ खेत के पास खेतिहर इंतजार करने लगा। ऐरावत आ गया। तुरंत उनमें से एक कंजूस शेट्टी था। वह मैं पहले कहते हुए, घुसकर हाथी की पूँछ पकड़ा। हाथी भी आकाश की ओर जाने लगा। अन्य सभी लोग एक के पैर दूसरे पकड़ने से आकाश से पृथ्वी तक लोगों का ताँता हुआ। उनमें से एक लँघड़ा था। वह बहुत अंत में था। उसने

       शेट्टी जी आप पहले हैं, स्वर्ग कितने धन लाना चाहते हैं ? इसके उत्तर के लिए लालच से इतना कहकर अपने दोनों हाथों को फैलाया। तत्क्षण ही सभी आकाश से भूमि पर पड़कर मिट्टी बन गये।

       इस घटना को देखनेवाले गाँव के अन्य लोग आधी छोड़ सारी को धावे, आधी रहे न सारी पावे। कहकर साँस छोड़ दिया। ऐरावत उस ओर आने की घटना उन्होंने फिर कभी नहीं देखा।

कन्नड में- डॉ.पी.के राजशेखर

हिंदी में- डॉ.एस.विजीचक्केरे

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Thursday 29 October 2015

डॉ. ए. पी. जे. अब्दुलकलाम

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           निधन के अवसर श्रद्धांजली समर्पण के लिए उनका यह छोटा सा परिचयः-

जन्मः अक्तूबर 15 1931 को रामेश्वरम के धनुष्कोटी में हुआ।

पिताःजैनुलाब्दि मरकयार

माताः आशियम्मा

शिक्षाः

         प्राथमिक शिक्षा अपने गाँव के स्कूल में हुई। माद्य़मिक शिक्षा रामनाथपुर के स्वार्ट्ज

हाईस्कूल में हुई। सन् 1950 त्रिची के सेंट जोसेफ कॉलेज में बी.एस्सी की उपाधि प्राप्त की।

सन् 1954 में इंस्ट्यूट ऑफ टैक्नालजी-मद्रास में इंजिनीयरिंग उपाधि प्राप्त की। अब्दुल कलाम

के लिए प्यारे गुरुजन-अयादुरै सोलोमन, टी.एन सेक्यूरिया और रामकृष्ण अय्यर थे।

अब्दुल कलाम की उपलब्धियाँ-

        सन् 1962 में भारतीय वैज्ञानिक संशोधन संस्था में अपनी सेवा आरंभ की। उसी साल केरल के

तुंबा में रॉकेट लॉंचिंग स्टेशन की स्थापना हुई।

सन् 1967 में रोहिणी मिसाइल आकाश की ओर उड़ाने में सफल हुए।

सन् 1980 एस.एल.वी मिसाइल की उड़ान।

सन्-1981 में पद्मभूषण पुरस्कार से पुरस्कृत है।

सन्-1982 में सेना संशोधन विभाग के निदेशक पद पर नियुक्त हुए।

सन् 1983 में मिसाइल निर्माण का आरंभ

सन् 1985 में त्रिशूल मिसाइल की उड़ान।

सन्-1987 में भारत से पद्मविभूषण से पुरस्कार।

सन्-1988 में पृथ्वी मिसाइल की उड़ान।

सन्-1989 अग्नी मिसाइल की उड़ान।

सन्-1990 में जादवपुर विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की मानद उपाधि दी गयी।

सन्-1991 में मुंबई विश्वविद्यालय से मानद डॉक्टरेट उपाधि।

सन्-1997 में भारत रत्न पुरस्कार द्वारा कलाम जी सम्मान

सन्-1998 में भारत-सरकार के वैज्ञानिक मार्गदर्शक के रूप में नियुक्ति।

सन्-2001 में चेन्नै के अन्न विश्वविद्यालय में तकनीकी और सामाजिक परिवर्तन विभाग में प्रेफेसर पद पर नियुक्त हुए।

सन्-2002 में भारत सरकार के राष्ट्रपति पद पर नियुक्त हुए।

सन्-2015 जुलाई 27 को इनका निधन हुआ।

संदर्भ-ग्रंथ-

1.भारत के सपना एपीजे अब्दुलकलाम

2.अग्नि की उड़ान

3.टर्निंग पाइंट

4.कलाम-कमाल

  डॉ.एस विजीचक्केरे

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कन्नड साहित्य मनीषि डॉ.पी.के.राजशेखर

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       कन्नड भाषा साहित्यकारों को हिंदी भाषा-भाषियों को परिचय कराना मेरी पहले से ही रुचि रही है। इसे साकर करने का अवसर अभी मिला है। इसके तहत कन्नड भाषा के लोकसाहित्यकारों में अग्रणी डॉ.पी.के.रजशेखर का एक छोटा सा परिचय देने के प्रयास आपके लोगों के सम्मुख है। इनका अभिरुचि विषय है कि बचपन से लोकसाहित्य सुनना-सुनाना,लोकसाहित्य को लिखित स्वरूप देना। इन्होंने कन्नड लोकसाहित्य को समृद्ध बनाने में अपूर्व सेवा की है। इसके अलावा साहित्य के विविध प्रकारों पर भी अपनी लेखनी चलायी है। ऐसे महान लोक साहित्यकार का परिचय कन्नड प्रेमी हदी अध्यापक मेरा सौभाग्य है।

        साहित्य की एक विधा लोकसाहित्य है। लोकसाहित्य के विद्वानों में डॉ.पी.के राजशेखर अग्रणी है। इनका जन्म मैसूर जिले के पिरियापट्टण तालुक में हुआ। इनके माता-पिता श्रीमती पुट्टम्मा और श्री पी.डी.केंपेगौडा है। ये बचपन से ही अध्ययन और अध्यापनों में संलग्न होकर अच्छे कवि, लोकगीत विद्वान,जानेमाने अध्यापक के रूप में चर्चित रहे।

       राजशेखर जी को लोकगीत क्षेत्र में अच्छी पकड होने के साथ-साथ अच्छे लोकगीत गायक के रूप में भी प्रख्यात है। लोकगीतों को पहले असहज रूप से गाया जाता था। लोकसहित्य को शास्त्रीय रूप से अध्ययन करना उसके विविध रूपों को संशोधन करना,लोकगीतों को सहज रूप से गाने के लिए मार्गदर्शन देने हेतु इनके द्वारा निर्मित होन्नारू लोकगीत गायन मंडली को एक ऐतिहासिक भूमिका है। यह मंडली लोकगीतों को सहज रूप में गाकर लोकप्रिय कराने के अलावा उनको अमरत्व देने के हित से गाओ मुत्तिनरगिणी,अव्वनिनदनी अपरंजी,कोगिलागी कूगुतियल्लो, उठकर आओ मुद्दु भैरुव,नक्करे नगलेळु,शरणु शरणु मादेश्वर को- आदि गीतों को सहज रूप में गाकर लोगगीतों के कैसटों के माध्यम से डॉ.पी.के.राजशेखर जी कन्नड लोकगीत परंपरा में अमर बने।  

     लोकगीत जैसे खेत में उत्साही किसान की तरह संशोधन द्वारा छात्रकाल में ही 1500 पृष्ठों का बडा महाकाव्य मले मादेश्वर नामक ग्रंथ की रचनाकर, प्रकाशित कर, कन्नड लोकगीत क्षेत्र को विश्व लोकगीत क्षेत्र में स्थापित करने का श्रेय डॉ.पी.के राजशेखर जी को जाता है। लोकगीतों की परंपरा बचने के पीछे डॉ.पी.के. राजशेखर जी का अविरत परिश्रम है इसे रूभी विद्वान मानते हैं। विद्वानों का मानना है -‘हमारे लोकगीत, साहित्य-सौध का सिर मौर है। इसे ही1973  में राज्य साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है।

       लोकगीत क्षेत्र में अबतक इनकी लगभग ४० से अधिक सृजनशील कृतियाँ का प्रकाशित हो चुकी है। लोकगीत श्रेत्र में इनकी देन के स्मरण में कर्नाटक लोकगीत और यक्षगान अकादमी ने १९९६ में लोकविद् पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया है। इतना ही नहीं अनेक संस्थाएँ लोकगीत साहित्यभूषण,लोकगीत साहित्यरत्न,लोकगीत गायकरत्न,मंड्या जवरप्पगौ डा स्मारक के रूप में समाजमुखी पुरस्कार,मैसूर लॉयन्स संस्था की ओर से दक्षिण केसरी पुरस्कार, लोकसाहित्य रत्नभंडार, लोकसाहित्य संगीत रत्नाकर, कन्नड के एल्यास्लोनराट,लोक साहित्य के सार्वभौम -आदि इनको प्राप्त पुरस्कार हैं।

      इनका और एक महाकाव्य है-लोकसाहित्य का महाभारत यह भी प्रसिद्ध रचना है। लोकसाहित्य क्षेत्र को इनकी देन अपूर्व है। इन्होंने आजतक कविता,भाषाविज्ञान, लोकसाहित्य, बाल साहित्य, जीवनी, अनुवाद, संपादन-इस प्रकार कन्नड साहित्य के विभिन्न प्रकारों में ७० से अधिक ग्रंथों को प्रकाशित किया है। कन्नड लोक साहित्य क्षेत्र में इनकी अपूर्व सेवा को पहचानकर कर्नाटक सरकार ने २००५-०६ वर्ष में कर्नाटक राज्योत्सव पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया है।

      इनके द्वारा प्रदत्त लोकसाहित्य क्षेत्र की सेवा को पहचानकर श्री आदिचुंचनगिरि महासंस्थान ने २००८ में चुंचनाश्री पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया है।

      अमेरिका के चिकागो में संपन्न पाँचवाँ अक्का कन्नड सम्मेलन में कन्नड लोकगीतों को गाकर विश्वस्तर की सभा में लोगीतों की मिठास आस्वादीत करके वहाँ के कन्नड प्रेमियों को कराया है।

      इनकी महान उपलब्धि को ध्यान में रखकर इनके शिष्यगण, साथी,दोस्त,विद्वान और अभिमानी लोगों ने मिलकर कन्नड भाषा में जानपदजोगी नामक अभिनंदन ग्रंथ द्वारा सम्मानित किया है।

इनकी रचनाएँ-

प्रकाशित लोकगीतों के कैसेटः-

               १.मले मादेश्वर।

              २.हाडो मुत्तिनरगिणी

             ३.शरणु-शरणु मादेश्वरगे

              ४.एद्दु बारो मुद्दुभैरुव

             ५.कोगिलेगागी कूगुतियल्लो

कविताएँ-

             मानसदीप्ति(१९६६),प्रतिबिंब (१९६८),स्वतिमुत्तु, नानल्लद नानु(२००१)

भाषाशास्त्रः-

             पदविवरण कोश,पदसंपद

बालसाहित्यः-

                   सोने का फर,अभिनव कालिदास,विद्याविशारदे कंति,दलित भारत।

लोकसाहित्यः-

                  पहाड़ की चामुंडी,लोकसाहित्य का रामायण,मागडी केंपेगौडा,चुनेहुए लोकगणित-आदि।

संपादनः-

                   शिवसंपद,रजतश्री,संजीविनी,मिट्टि के दिये,

जीवनी साहित्यः-

                    समाज सेवारत्न (कं.रा.गोपाल).वीर योद्धा बेल्लियप्पा ।

कथा साहित्यः-

                   पुरुष पुण्य और नारी भाग्य -लोकोक्ति विश्लेषण युक्त कहानियाँ-आदि।

इनको प्राप्त पुरस्कारः-

                  १.लोकगीत -महाकाव्य मले मादेश्वर कृति के लिए सन् १९७३ में कर्नाटक राज्य साहित्य अकादमी पुरस्कार।

                   २.लोकसाहित्य का वीरकाव्य पिरियापट्टण का युद्ध कृति के लिए सन् १९९० में करनाटक राज्य जनपद और यक्षगान अकादमी पुरस्कार।

                   ३.करपाल बसव पुराण कृति के लिए सन् १९९६ में करनाटक राज्य जानपद और यक्षगान अकादमी पुरस्कार।

                  ४.पदविविरण कोश के लिए सन् १९९३ में विभाग से कन्नड और संस्कृति प्रशंसनीय पुरस्कार।

                 ५.कर्नाटकल जनपद और यक्षगान अकादमी से सन् १९९८ में लोकसाहित्य विद् का पुरस्कार।

                ६.कर्नाटक सरकार से सन् २००५ में सुवर्ण कर्नाटक राज्योत्सव पुरस्कार।

                ७.मंड्या के पी.एन जवरप्पगौडा प्रतिष्ठान की ओर से सन् २००५ में समाजमुखी पुरस्कार।

               ८.दक्षिण प्रदेश लॉयन्स संस्था की ओर से दक्षिण साहित्य के केसरी पुरस्कार।

              ९.बौप्पनगौडपुर के मंटेस्वामी मठ की ओर से सन् २००४ में श्रेष्ठ लेखक पुरस्कार ।

              १०. सन् २००५ में मैसूर से नवज्योति कला पुरस्कार ।

              ११.फारूखिया विद्या संस्था की ओर से सन् २००० में लोकासहित्य का रत्नभंडार का पुरस्कार।

              १२.साथियों का मंडली तरिकेरे की ओर से सन् १९९७ में कनकश्री पुरस्कार।

              १३.पिरियापट्टण की ओर से लोकसाहित्य का कलानिधि पुरस्कार।

               १४. उम्मत्तूर द्वरा सन् १९९५ में लोकसाहित्य का गायकरत्न पुरस्कार ।

               १५.पिरियापट्टण से सन् १९७४ में लोकसाहित्य भूषण पुरस्कार।

               १६. सन् २००६ में लोकसाहित्य-महाभारत कृति को प्रसार भारती पुरस्कार।

               १७. बसवेश्वर देवालय निर्माण समिति गोरहल्ली की ओर से सन् २००६ में लोकसाहित्य का सार्वभौम पुरस्कार।

          १८.मैसूर के होटेल मालिकों की ओर से सन् २००५ में सुवर्ण कर्नाटक पुरस्कार ।

           १९.सन् २००५ में ओक्कलिग जागृति सभा पुरस्कार,मानस गंगोत्री पुरस्कार।

           २०.मैसूर के ऑफिसर्स संघ की ओर से सन् २००५ में कन्नड राज्योत्सव पुरस्कार।

           २१.सन् २००५ में मैसूर में कर्नाटक होयसल पुरस्कार,होयसल कन्नड संघ पुरस्कार।

          २२.सन् २००८ में कर्नाटक लोक साहित्यऔर यक्षगान अकादमी रजतमहोत्सव पुरस्कार

          डॉ.एस.विजीचक्केरे

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Monday 26 October 2015

‘जनपदलोक’ निर्माता एच.एल.नागेगौडा

 

    

    इनका जन्म कर्नाटक राज्य के मंड्या जिले के नागमंगल तालुक के हरगनाहल्लूी नामक गाँव में सन् 1915 में हुआ। इनका पारिवारिक नाम दोड्डमने है। इनकी आरंभिक शिक्षा नागतिहल्ली में हुई। माध्यमिक शिक्षा चन्नरायपट्टण और बेंगलूर में हुई। इन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय से सन् 1937 में बी.एस्सी की उपाधि प्राप्त की । पुणे विश्वविद्यालय से सन् 1939 में एल.एल.बी की उपाधि प्राप्त की । प्रारंभ में न्यायाधीश बनकर अपनी सेवा आरंभ की ।

     कन्नड भाषा के लोकसाहित्य को इनकी देन अपार है। इन्होंने कन्नड भाषा में 30 से अधिक ग्रंथों की रचना की है। इनका बेट्ट से बट्टलू नामक कृति का अनुवाद हिंदी भाषा में हुआ है। इनको उपन्यासकार, कवि लोककथाकार, अऩुवादक, आत्मकथाकार-आदि अनेक नामों से जाना जाता है। कन्नड भाषा साहित्य को इनकी सेवा अपार ।

     इनकी रचनाएँ हैं-प्रवासी कंड इंडिया, सरोजिनी देवी, भूमिगे बंद गंदर्व, खैदिगळ कथेगळु, नानागुवे गीजुगन हक्कि, सोबाने चिक्कम्मन पदगळु, नागसिरि-आदि।

     नागेगौडा जी का महत्वपूर्ण कृति है जानपदकोश । इसे विश्वकोश के बराबर अमरकृति माना जाता है। जानपद जगत्तु नामक त्रैमासिक संपादक बनाकर लोकसाहित्य को गाँव से लेकर दिल्ली तक पहुँचाने का गौरव इनको मिलता है।

    नागेगौडा जी  जानपद लोक  के निर्माता है। इसमें 5000 लोक कलाकृतियाँ हैं। यह रामनगर के निकट है । यह ग्रामीण   संस्कृति के विकास के लिए और लोककथा कार्यक्रमों के प्रकाशमान के लिए बहुत उपयुक्त है।

      नागेगौडा जी के द्वारा कन्नड साहित्य और संस्कृति को किये गये विविध क्रियाकलापों को देखकर विविध संस्थाओं ने इनको गौरव दिखाने के उद्देश्य से विविध पुरस्कार दिये हैं।

     इनको प्राप्त पुरस्कार और सम्मान हैं-कर्नाटक साहित्य अकादमी पुरस्कार, कर्नाटक राज्योत्सव पुरस्कार, कर्नाटक जनपद और यक्षगान अकादमी पुरस्कार और कर्नाटक नाटक अकादमी फेलोशिप्–आदि।

     इस प्रकार इनकी सेवा को देखकर सन् 1995 में मुदोळ में संपन्न 64वाँ कन्नड साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में चुनकर इनको अपार आदर दिखाया गया। यह भी जनपदलोक निर्माता को प्राप्त सम्मान है।

      इनका निधन सन् 2005 को हुआ।

डॉ.एस.विजीचक्केरे
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Wednesday 21 October 2015

सर्वनाम

संज्ञा के पुनारावृत्ति के बदले जिसका प्रयोग किया जाता है,उसे सर्वनाम कहते हैं।

जैसे- मैं, हम, तू, तुम, आप, वह, वे, यह, ये-आदि।

 

सर्वनाम के भेद

सर्वनाम के छः भेद हैं-

1.पुरुषवाचक सर्वनाम

2.निजवाचक सर्वनाम

3.निश्चयवाचक सर्वनाम

4.अनिश्चयवाचक सर्वनाम

5.प्रश्नवाचक सर्वनाम

6.संबंधवाचक सर्वनाम

 

1.पुरुषवाचक सर्वनामः

       जो सर्वनाम शब्द, बोलनेवाले, कहनेवाले या सुननेवाले का बोध कराये, उसे पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं।

पुरुषवाचक सर्वनाम के तीन भेद हैं-

क.उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम (मैं,हम)

ख.मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम (तू,तुम)

ग.अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम (वह,वे,यह,ये)

 

क.उत्तम पुरुषवाचक सर्वनामः

जो सर्वनाम शब्द बोलनेवाले के लिए प्रयुक्त होता है, उसे उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं।

जैसेःमैं और हम

 

ख.मध्यम पुरुषवाचक सर्वनामः

जो सर्वनाम शब्द सुननेवाले के लिए प्रयुक्त होता है, उसे मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं।

जैसेः तू और तुम

 

ग.अन्य पुरुषवाचक सर्वनामः

जो सर्वनाम शब्द, अन्यों के संबंध में बात करने के लिए उपयुक्त होता है,उसे अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं।

जैसेः वह, वे, यह,ये-।

 

2.निजवाचक सर्वनामः

जो सर्वनाम शब्द, अपनेपन के लिए प्रयोग होता है,उसे सर्वनाम कहते हैं।

जैसेःआप

 

 

3.निश्चयवाचक सर्वनामः

जिस सर्वनाम का प्रयोग से किसी निश्चित वस्तु का बोध हो,उसे निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं।

जैसेःवह, यह

 

4.अनिश्चयवाचक सर्वनामः

जिस सर्वनाम शब्द का प्रयोग किसी अनिश्चित प्राणी या प्राणी के बोध के लिए प्रयोग होता है,उसे अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं।

जैसे- कोई

 

 

5.संबंधवाचक सर्वनामः

जिस सर्वनामक का प्रयोग किसी संबंध सूचित करने के लिए प्रयोग हुए तो उसे संबंधवाचक सर्वनाम कहते हैं।

जैसे-जो और सो।

 

 

6.प्रश्नवाचक सर्वनामः

जिस सर्वनाम शब्द का प्रयोग से प्रश्न का बोध होता है, उसे प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते हैं।

जैसेःकौन

डॉ.एस विजीचक्केरे
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जयशंकर प्रसाद

   image                                                                                                              आधुनिक हिंदी के श्रेष्ठ कवि जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के एक धनी परिवार में सन् 1889 में हुआ था।

उनके पिता देवी प्रसाद थे।

   प्रसाद जी का बचपन बड़े सुख में बीता, किंतु पिता की मृत्यु के बाद उनको विपत्तियों का सामना करना पड़ा।

   केवल 48 वर्ष की अल्पायु में सन् 1937 में उनका निधन हो गया।

    उन्होंने हिंदी के अलावा संस्कृत, अंग्रेजी, भाषाओं के साहित्य का अध्ययन किया था।

    कानन कुसुम उनका पहला काव्य-संग्रह है।

     झरना,आँसू,लहर,कामायनी,आकाशदीप,आँधी,चंद्रगुप्त,ध्रुवस्वामिनी,कंकाल, इरावती,तितली,आदि उनकी कुछ प्रमुख रचनाएँ हैं।

      प्रस्तुत कविता को उनके कानन कुसुम काव्य-संकलन से लिया गया है।

 

SOURCE: HINDI VALLARI,10TH  STD, KTBS,DSERT,BANGALURU

संपादकःडॉ.एस विजीचक्केरे
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संज्ञा

संज्ञा उसे कहते हैं, जो कोई वस्तु, स्थान,भाव,समूह और द्रव पदार्थों के नाम सूचित करता है।

जैसेः

गणेश

लड़की

बचपन

पुलिस

दही

संज्ञा के भेदः-

संज्ञा के 5 भेद हैं-

1.व्यक्तिवाचक संज्ञा

2.जातिवाचक संज्ञा

3.भाववाचक संज्ञा

4.समूहवाचक संज्ञा

5.द्रव्यवाचक संज्ञा

1.व्यक्तिवाचक संज्ञाः

             जिस शब्द से एक ही व्यक्ति,वस्तु और स्थान के नाम का बोध हो, उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं।

उदाः रमेश, कंप्यूटर, मैसूर- आदि

2.जातिवाचक संज्ञाः-

             जिस शब्द से किसी जाति या समूह का बोध हो, उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं।

जैसेःस्त्री,पेड़-आदि।

3.भाववाचक संज्ञाः-

             जिस शब्द से किसी भाव का बोध हो, उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं।

जैसेः बचपन,बूढ़ापन,सुंदरता-आदि।

4.समूहवाचक संज्ञाः-

             जिस शब्द से किसी समूह का बोध हो, उसे समूहवाचक संज्ञा कहते हैं।

जैसेः कक्षा, सेना,मंडली-आदि।

5.द्रव्यवाचक संज्ञाः-

            जिस शब्द से किसी द्रव्य पदार्थ का बोध हो, उसे द्रव्यवाचक संज्ञा कहते हैं।

जैसेःपानी, सोना, चाँदी-आदि।

डॉ.एस विजीचक्केरे
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शब्द विचार

शब्दः- एक या एक से अधिक सार्थक ध्वनियों के समूह को शब्द कहते हैं।

                        जैसेः काम,जा मामा,तू-आदि।

शब्द अर्थ की दृष्टि से दो प्रकार होते हैं।

1.सार्थकः जिन शब्दों का कोई अर्थ होता है,उसे सार्थक कहते हैं।

जैसेः राजा, रानी, पानी

2.निर्थकः जिन शब्दों का कोई अर्थ नहीं होता है,उसे निर्थक कहते हैं।

जैसेः नीपा,बदी,अल-आदि

विकार की दृष्टि से शब्द दो प्रकार के होते हैं।

1.विकारी

               उन शब्दों को विकारी कहते हैं,जो शब्द लिंग,वचन, कारक और काल के अनुसार परिवर्तित होते हैं।

जैसेः चलना शब्द चलता, चलती, चलेगा, चलेगी, चलेंगे।

2.अविकारी

               उन शब्दों को अविकारी कहते हैं, जो शब्द लिंग,वचन, कारक और काल के अनुसार नहीं बदलते हैं।

जैसेःधीरे-धीरे,कब,जब,तब,हाय,परंतु, और,तथा लेकिन किंतु-आदि।

विकारी शब्दों के भेदः-

विकारी शब्दों के चार भेद हैं-

1.संज्ञा

2.सर्वनाम

3.विशेषण

4.क्रिया

1.संज्ञाः

         नाम सूचित शब्द को संज्ञा कहते हैं।

जैसेः रमेश,लड़का,अच्छा,सेना,पानी-आदि।

2.सर्वनामः

            नाम बदले जिस शब्द का प्रयोग किया जाता है। उसे सर्वनाम कहते हैं।

जैसेःमैं,हम,तू,तुम,आप,वह,वे,यह,ये,कौन,कोई-आदि।

3.विशेषणः

            जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताता है,उसे विशेषण कहते हैं।

जैसेः सुंदर, बुरा, छोटा, बड़ा,नीला, हरा-आदि

4.क्रियाः

           जिस शब्द से कोई काम होने या पाने का बोध हो, उसे क्रिया शब्द कहते हैं।

जैसेःखाना,पीना,जाना,उठना,चलना,धोना-आदि।

अविकारी शब्द के चार भेद होते हैं-

1.क्रिया विशेषण

2.संबंधबोधक

3.सम्मुच्चयबोधक

4.विस्मयादि बोधक

1.क्रिया विशेषण

       जो शब्द क्रिया की विशेषता बताता है,उसे क्रियाविशेषण नाम से जाना जाता है।

जैसेःअधिक,धीरे-धीरे,तेज-आदि

2.संबंधबोधकः

      जो शब्द संबंध सूचित करता है,उसे संबंधबोधक कहते हैं।

जैसेःऊपर,नीचे,के सामने,की ओर-आदि

3.समुच्चय बोधक

        जो शब्द दो शब्द या वाक्य के बीच आकर संबंध स्थापित करता है, उसे समुच्चयबोधक कहते हैं।

जैसेः और,तथा,या,लेकिन,कि-आदि।

4.विस्मयादिबोधकः

       जो शब्द हर्ष,भय,शोक-आदि भावसूचक के लिए प्रयुक्त होते हैं,उन्हें विस्मयादिबोधक कहते हैं।

जैसेःअरे,शाबास,हाय,अच्छा,हे-आदि

डॉ.एस.विजीचक्केरे
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Tuesday 20 October 2015

हिंदी व्याकरण

 

व्याकरण  और  उसके विषय

                 व्याकरण को भाषा संबंधित शास्त्र कहते हैं।  व्याकरण से भाषा से संबंधित शुद्ध स्वरूप की जानकारी मिलती है।

व्याकरण से तीन विषयों की जानकारी मिलती हैं।

1.वर्ण विचार

2.शब्द विचार

3.वाक्य विचार

1.वर्ण विचारः इसमें वर्णों से संबंधित समस्त विचारों से अवगत होते हैं। इसमें वर्णों के निर्माण,भेद और उच्चारण आदि के संबंध में विवेचन किया जाता है।

2.शब्द विचारः इसके अंतर्गत शब्दों की व्युत्पत्ति, शब्दों के निर्माण, तथा उसके भेदों की जानकारी का विवेचन किया जाता है।

3.वाक्य विचारः इसमें वाक्य रचना से संबंधित विभिन्न आयामों पर विवेचन किया जाता है।

वर्ण विचार

                     वर्ण,उस ध्वनि को कहते हैं, जो भाषा की सबसे छोटी इकाई है। अर्थात जो भाषा के सबसे छोटी ध्वनि है जिसे जो लिखित रूप मिलता है, उसे वर्ण कहते हैं।

                    उदाः इ, क्, य्, श्.

                   वर्णमालाः एक भाषा में प्रयुक्त सभी वर्णों के समूह को वर्णमाला कहते हैं। वर्णमाला को अक्षर माला भी कहते हैं। हिंदी भाषा में प्रयुक्त वर्ण निम्नलिखित हैः

वर्णमालाः

अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ अं अः – स्वर कहते हैं।

क ख ग घ ङ- कवर्ग

च छ ज झ ञ–चवर्ग

ट ठ ड ढ ण- टवर्ग

त थ द ध न- तवर्ग

प फ ब भ म- पवर्ग

य र ल व – अंतस्थ

श ष स ह- ऊष्म

क्ष त्र ज्ञ श्र – संयुक्त व्यंजन

वर्णमाला के दो भेद हैं

1.स्वर

2. व्यंजन

1.स्वर-

               स्वर उन वर्णों को कहते हैं, जो वर्ण उच्चारण की दृष्टि से स्वतंत्र है।

उदाः अ आ इ उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ अं अः

2.व्यंजन

               व्यंजन उन वर्णों को कहते हैं, जो वर्ण परतंत्र हैं अर्थात इनका उच्चारण के लिए दूसरे वर्ण की सहायता आवश्य होता है। उदाः

क ख ग घ ङ- कवर्ग

च छ ज झ ञ–चवर्ग

ट ठ ड ढ ण- टवर्ग

त थ द ध न- तवर्ग

प फ ब भ म- पवर्ग

य र ल व – अंतस्थ

श ष स ह- ऊष्म

स्वर के भेदः

स्वर के दो भेद होते हैं-

मूल स्वर और संधि स्वर

1.मूल-स्वरः अ, इ, उ-इनको मूल स्वर कहते हैं। इनको उच्चारण के कालमान के आधार पर ह्रस्व स्वर कहते हैं।

2.संधि-स्वरः जो स्वर दो स्वरों के मेल से होते हैं,उन्हें संधिस्वर कहते हैं। जैसे- आ ई ऊ ए ऐ ओ औ । उच्चारण के कालमान के आधार पर इनको दीर्घ स्वर कहते हैं।

संधि स्वरः संधि स्वर के दो भेद होते हैं।

दीर्घ स्वर और संयुक्त स्वर

दीर्घ स्वरः आ ई ऊ

संयुक्त स्वरः ए ऐ ओ औ

योगवाह-अं अः वर्णों को योगवाह कहते हैं।

योग का अर्थ है - दो भिन्न-भिन्न जातियों के वर्णों के मेल को योगवाह कहते हैं।

अ+ म्– अं

अ+ ह- अः

व्यंजन के भेदः

व्यंजन के दो भेद होते हैः

1.वर्गीय-व्यंजन

2.अवर्गीय-व्यंजन

1.वर्गीय व्यंजनः उन वर्णों को वर्गीय व्यंजन कहते हैं,जो वर्ण उच्चारण के आधार विभाजन किया गया है। वर्गीय व्यंजनों को स्पर्श व्यंजन भी कहते हैं। जैसे

क ख ग घ ङ

च छ ज झ ञ

ट ठ ड ढ ण

त थ द ध न

प फ ब भ म

वर्गीय व्यंजन के भेदः

प्राणत्व के आधार पर वर्गीय व्यंजनों के दो भेद हैं-

1.अल्पप्राण

2.महाप्राण

1.अल्पप्राणः जिन व्यंजनों के उच्चारण में प्राण, महाप्राण व्यंजनों की तुलना में कम लगता है, उन्हें अल्पप्राण कहते हैं। वर्गीय व्यंजन के प्रथम,तृतीय और पंचम वर्णों को अल्पप्राण कहते हैं।

2.महाप्राणःजिन व्यंजनों के उच्चारण में प्राण, अल्पप्राण व्यंजनों की तुलना में अधिक लगता है, उन्हें महाप्राण कहते हैं। वर्गीय व्यंजन के द्वितीय और चतुर्थ वर्णों को महाप्राण कहते हैं।

2.अवर्गीय व्यंजन के भेद

अवर्गीय व्यंजन के दो भेद हैं

1.अंतस्थ्य

2.ऊष्म

1.अंतस्थ्य व्यंजनः उन वर्णों को अंतस्थ्य व्यंजन कहते हैं। जिन वर्णों का उच्चारण स्वर और व्यंजन के बीच होता है, उन्हें अंतस्थ्य व्यंजन कहते हैं। अवर्गीय व्यंजन के प्रथम चार अंतस्थ्य व्यंजन हैं।

2.ऊष्म व्यंजनः जिन व्यंजनों के उच्चारण में सुरसुराहट सी होती उन्हें ऊष्म व्यंजन कहते हैं। अवर्गीय व्यंजन के अंतिम चार वर्ण ऊष्म व्यंजन कहते हैं

                                                                                                              

 

डॉ.एस विजीचक्केरे

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Monday 19 October 2015

कन्नड भाषा में द्वितीय ज्ञानपीठ साहित्यकार द.रा.बेंद्र

          कन्नड भाषा के ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त दूसरे ज्ञानपीठ साहित्यकार श्री दत्तात्रेय रामचंद्र

बेंद्रे जी हैं।बेंद्रे जी का जन्म 31 जनवरी सन् 1893 ई को धारवाड  में हुआ। बेंद्रे जी के पिताजी

रामचंद्र भट्ट और माता अबव्वा या अंबिका। बेंद्रेजी जी की स्कूली शिक्षा धारवाड में विक्टोरिया

स्कूल में हुई। मेट्रिक के बाद पुणे के प्रसिद्ध फर्ग्यूसन कॉलेज से उन्होंने बी.ए. की उपाधि प्राप्ति

की थी। फिर लौटकर विक्टोरिया स्कूल में ही अध्यापक बन गये। पश्चात् नैशनल कॉलेज में

काम किया।सन् 1944 में सोल्लापुर के डी.ए.वी. कॉलेज में कन्नड प्राध्यापकबने। उसके बाद

धारवाड आकाशवाणी केंद्र के साहित्य सलाहकार के रूप में काम किया। 26 अक्तूबर 1981 ई.को

बेंद्रे जी अमर हो गये।

साहित्य साधनाः

काव्यः-

 

कृष्णकुमारी

 

मूर्ति मत्तु कामकस्तूरी

 

उय्याले

नादलीले

मेघदूत

हाडु-पाडु

गंगावतरण सूर्यपान

अरळु-मरळु़

हृदय-समुद्र

मुक्तकांत

चैत्यालय

जीवलहरी

नमन

संचय

उत्तरायण़

मंजुल मल्लिगे

यक्ष-यक्षी

नाकु-तंती

मर्यादे

श्रीमाता

बा हत्तर

इदु नभोवणी

विनय

मत्तेल श्रावण बंतु

ओलवे नम्म बदुकु

चतुरोक्ति

पराकी

काव्य वैखरी

बालबोधे

ता लेखनिके ता दौती

नाटकः

गोल

तिरुकर पिडुगु

सायो आट

जात्रे

हळेय गेणेयरु

देव्वन मने

नगेय होगे

उद्धार

मंदी मादिवी

मंदी मनी

मक्कळु ओडिगेमने होक्करे

शोभन

आतर-ईतर

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Wednesday 14 October 2015

भाषा वैज्ञानिक डॉ.के.केंपेगौडा

   001   रामनगर जिले जन्नपट्टण तालुक के ब्याडरहल्ली नामक गाँव में दिनांक-15-08-1939 को इनका जन्म हुआ। प्राथमिक शिक्षा अपने गाँव में ही हुई। माध्यमिक शिक्षा निकट के शेट्टिहल्ली नामक गाँव में हुई। बाद में उच्च माध्यमिक शिक्षा चन्नपट्टण में हुई। इंटरमीडियट  की शिक्षा मैसूर के युवाराजा कॉलेज से प्राप्ति के बाद मैसूर के  महाराजा कॉलेज में बी.ए की उपाधि प्राप्ति की। एम. ए.(हिंदी) की उपाधि  मैसूर विश्वविद्यालय से प्राप्ति की। इन्होंने पूना के डेकन कॉलेज में भाषा-विज्ञान विषय में एम.ए. की उपाधि प्राप्ति की।

      मैसूर विश्वविद्यालय के कन्नड अध्ययन संस्था,मानस गंगोत्री, मैसूर, यहाँ  भाषा विज्ञान के अध्यापक के रूप में अपने अध्यापन की सेवा प्रारंभ की।  उसी विश्वविद्यालय के रीडर,प्राध्यापक,कुवेंपु कन्नड अध्ययन संस्था के निदेशक के रूप में अपनी सेवा की है,इसके अलावा  युजीसी के एमरिटस् प्राध्यापक के रूप में भी सेवा करके अवकाश प्राप्त कर चुके हैं।

       मैसूर विश्वविद्यालय में मानसगंगोत्री के कन्नड विभाग में   1965  में  संशोधक के रूप में अपनी सेवा प्रारंभ करके  केंपेगौडा जी सन्  1968-70 तक महाराजा कॉलेज में प्राध्यापक  थे। 1970 में कन्नड अध्ययन विभाग में भाषा विज्ञान के अध्यापक के रूप में नियुक्त हुए। वहीं इरुळर भाषा के प्रति  प्रो.हा.मा.नायक के मार्गदर्शन में पीएच.डी. की उपाधि सन् 1974 में  प्राप्ति की। सन् 1980-1987 तक प्राध्यापक के रूप में सेवा करके,सन् 1995 में कुवेंपु कन्नड अध्ययन संस्था के  निदेशक बन गये। कुछ समय के लिए मैसूर विश्वविद्यालय के प्रसारंग के निदेशक भी बन गये थे।

        अध्यापन के साथ-साथ संशोधन प्रवृत्ति अपनाकर डॉ.के.केंपेगौडा जी अब तक 40 से अधिक ग्रंथों की रचना की हैं। 200 से अधिक संशोधन प्रबंधों की रचना करके, भाषा विज्ञान क्षेत्र को इन्होंने अपार   देन दिया है। डॉ. के केंपेगौडा जी के सामान्य भाषा विज्ञान ग्रंथ के लिए सन् 1995 में मैसूर विश्वविद्यालय ने डी.लिट.की उपाधि देकर सम्मानित किया है। सनेट, सिंडिकेट, डीन बनकर, परीक्षा विभाग और अध्ययन विभाग के अध्यक्ष बनकर,इसके अलावा सदस्य बनकर इन्होंने  काम किया है। डॉ.के .केंपेगौडा जी के भाषा-विज्ञान के ग्रंथ विद्यार्थी,संशोधकों को बहुत उपयुक्त होते हैं। डॉ.के.केंपेगौडा जी बुजुर्ग भाषा-वैज्ञानिक कहना अतिशयोक्ति नहीं है।

        प्रो.के.केंपेगौडा को कोई पुरस्कार या सम्मान की रुचि नहीं थी। फिर भाषा-विज्ञानक क्षेत्र में इनकी उपलब्धि  को देखकर मंड्या कर्नाटक संघ-डॉ.हा.मा.नायक जी के पुरस्कार से सम्मानित किया है।  अपने गुरु के नाम से सर्वप्रथम पुरस्कार प्राप्त मैं बुहुत धन्य  हूँ  कहते  है प्रो.केंपेगौडा जी।

रचनाः- डॉ.एस.विजीचक्केरे

संदर्भः1.कन्नड प्रौढ व्याकरण।

          2.भाषा विज्ञान परिचय

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Tuesday 13 October 2015

कन्नड भाषा में प्रथम ज्ञानपीठ कवि श्री कुवेंपु

           श्री कुवेंपु जी कर्नाटक में ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त करनेवाले प्रथम साहित्यकार है। श्री कुवेंपु जी  का पूरा नाम है कुप्पळ्ळी  उनके गाँव का नाम है, वेंकटप्पा उनके पिताजी का और पुट्टप्पा खुद का। तीनों के प्रथमाक्षरों से ‘कुवेंपु’ नाम बन पड़ा है और वे इसी नाम से प्रसिद्ध है। उनकी माता जी का नाम सीतम्मा था। श्री कुवेंपु जी का जन्म 29 दिसंबर 1904 को हुआ। उनके पिताजी शिवमोग्गा जिले के तीर्थहळ्ळी तालुक के कुप्पळ्ळि नामक गाँव के निवासी थे।

          श्री कुवेंपु जी की प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा शिवमोग्गा जिले में हुई। उच्च शिक्षा मैसूर में प्राप्त की। उन्होंने मैसूर के महाराजा कॉलेज में बी.ए.,एम.ए. की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद वे मैसूर विश्वविदयालय के कन्नड विभाग में प्रवक्ता बने और कालक्रम में उसके अध्यक्ष बने।

          लगभग बारह साल के बाद वे मैसूर विश्वविद्यालय के उपकुलपति हुए। सन् 1960  में उन्होंने अवकाश प्राप्त किया। सन् 1996  में मैसूर में उनका देहांत हुआ।

साहित्यिक रचनाएँ-

*.  कविता संकलनः

1.कोळलु  (बाँसुरी)

2.पांचजन्य

3.कलासुंदरी

4.अग्निहंस

5.कृत्तिके

6.पक्षिकाशी

7.नविलु (मोर)

8.कोगिले मत्तु सोवियत रश्या

9.बापूजीगे बाष्पांजली

10.जेनागुवा

11.चंद्रमंचके बा चकोरी

12.इक्षु गंगोत्री

13.अनिकेतन

14.अनुत्तरा

15.मंत्राक्षते

16.प्रेम काश्मीर

17.षोडशी

18.कुटीचाक

19.प्रेत-क्यू

20.कदरडके

21.कन्नड डिण्डिम

22.होन्न होत्तरे

23.कोनेयतेने मत्तु विश्वमानव संदेश

*.कथात्मक काव्यः

1.कथन कवनगळु     2.समुद्र लंघन

*.प्रगीतः

1.श्री स्वातंत्र्योदय महाप्रगाथा

*.महाकाव्य

1.श्री रामायण दर्शनम्

*.खंडकाव्यः

1.चित्रांगदा

2.महादर्शन मत्तु प्रायश्चित्त

*.पद्यात्मक गद्य

1.किंकिणी

*.नाटकः

1.यमन सोलू

2.जलगार

3.बिरुगाळि

4.वाल्मीकिय भाघ्य

5.महारात्री

6.श्मशानकुरुक्षेत्रम्

7.शूद्र तपस्वी

8.रक्ताक्षी

9.बेरळ्गे कोरळु

10.बलिदान

11.चंद्रहास

12.कानीन

*.उपन्यासः

1.कानूरु हेग्गडति

2.मलेगळल्लि मदुमगळु

*.कहानी-संग्रहः

1.सन्यासी मत्तु इतर कथेगळु

2.नन्न देवरु मत्तु इतर कथेगळु

3.कथेगळोडने आरंभदल्ली

*.निबंध संग्रहः

1.मलेनाडिन चित्रगऴु

2.षष्टी नमन

*.बाल साहि्त्यः

1.अमलन कथे

2.हाळूरु

3.मोडण्णन तम्म

4.बोम्मनहळ्ळि किंदरी जोगी

5.नन्न गोपाल

6.नन्न मने

7.मरि विज्ञानी

8.मेघपुरी

9.नरिगळिगेके कोडिल्ल

*.भाषण-संग्रह

1.साहित्य-प्रचार

2.विचार क्रांतिगे आह्वान

*.समालोचन(संग्रह)

1.काव्य विहार

2.इत्यादि

3.विभूति

4.द्रौपदिय श्रीमुडी

5.रसो वै सः

6.तपोनंदन

*.जीवनीः

1.स्वामी विवेकानंद

2.श्री रामकृष्ण परमहंस

*.अनुवादः

1.वेदांत

2.जनप्रिय वाल्मीकि रामायण

3.गुरुनोडने देवरेडिगे

*.आत्मकथाः

1.नेनपिन दोणियल्ली भाग-1 और भाग-2

                                                                                                 संपादकः   डॉ.एस विजीचक्केरे

 

संदर्भः डॉ.बी रामसंजीवय्या, अभिनंदन ग्रंथ-संजीवनी,

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कन्नड साहित्यकार नाडोज देजगौ

dejagow                       देवेगौडा जवरेगौडा का संक्षिप्त नाम देजगौ है। इनका जन्म रामनगर जिले के चन्नपट्टण तालुक के चक्केरे नामक गाँव में हुआ। पिता देवेगौडा और माता चेन्नम्मा, गरीब किसान थे। देजगौ ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गाँव में पूरी की। माध्यमिक शिक्षा चेन्नपट्टण के हाईस्कूल में पूरी की। बेंगलूर में इंटरमीडियट शिक्षा के उपरांत सन् 1941 में बी.ए.की उपाधि प्राप्त की। सन् 1943 में एम.ए की उपाधि प्राप्त की। इऩ्होंने अध्ययन-काल में कुवेंपु की रचनाओं से प्रभावित होकर कन्नड की ओर आकर्षित हुए। श्री रामकृष्ण विद्याश्रम में रहकर रामकृष्ण परमहंस,स्वामी विवेकानंद और गाँधीजी की रचनाओं का खूब अध्ययन किया।

                  उन्होंने बेंगलूर के सेंट्रल कॉलेज से अपने अध्यापन की सेवा आरंभ की, फिर मैसूर की ओर स्थानांतरित हुए। इस अवसर पर अनेक कन्नड पत्रिकाओं में अपने लेखन प्रकाशन कराने के लिए शुरु कर दिये थे। मैसूर विश्वविद्याल में सह-प्राध्यापक के रूप में नियुक्त होने के साथ-साथ विश्वविद्यालय के प्रकाशन विभाग के सचिव बनें । इस अवसर पर इन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय को अपने एक मुद्रण विभाग का आरंभ करा दिया।

          सन् 1957 में मैसूर विश्वविद्यालय के परीक्षा विभाग के सचिव बनें, तदनंतर सन् 1970 में शिवमोग्गा सह्याद्री कॉलेज के प्राचार्य पद पर अलंकृत हुए। सन् 1966 में मैसूर विश्वविद्यालय में कन्नड अध्ययन विभाग आरंभ हुआ। इसके प्रथम निदेशक देजगौ हैं। मैसूर विश्वविद्यालय के लोक-संग्रहालय के निर्माता इन्हीं को कहा जाता है। सन् 1968 में मैसूर विश्वविद्यालय के कुलपति बनें।

           देजगौ प्रसिद्ध आलोचक के अलावा आधुनिक गद्यशिल्पि भी कहा जाता है, इतना ही उत्तम अनुवादक भी है। कन्नड साहित्य को इनकी देन अपार हैं,उनमें प्रमुख रचानाओं को यहाँ प्रस्तुत करने का प्रयास किया जा रहा हैः

           मोतीलाल नेहरु, तीनंश्री, गंडुगली-कुमारराम, नंजुंडकवि, राष्ट्रकवि कुवेंपु, श्रीरामायणदर्शनं वचनचंद्रिके, षडक्षरदेव, साहित्यकारों के संगम में ।

            अकबर, पुनरुत्थान, हम्मु-बिम्मु,ये इनके द्वारा अनूदित रचनाएँ हैं।

            कब्बिगर कावं, नळचरित्र, रामधान्य चरित्र, जैमिनी भारत संग्रह- आदि इनके द्वारा संपादित रचनाएँ हैं। कुलपति बनने के बाद कुलपति के भाषण नामक किताब तीन भागों में प्रकाशित हुई है।

            देजगौ 44वाँ कन्नड साहित्य सम्मेलन के साहित्य गोष्ठी के उद्घाटक थे। 46वाँ कन्नड साहित्य सम्मेलन के साहित्य गोष्ठी के अध्यक्ष थे, इसके अलावा सन् 1970 में संपन्न 47वाँ कन्नड साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी बन चुके थे।

           इनकी साहित्य सेवा की याद करते हुए इनको अनेक पुरस्कारों द्वारा सम्मानित किया गया है। इनमें प्रमुख हैः-

          कर्नाटक साहित्य अकादमी पुरस्कार, कर्नाटक साहित्य पुरस्कार, नाडोज पुरस्कार (कन्नड विश्वविद्यालय), पंप पुरस्कार, पद्मश्री पुरस्कार, मास्ती पुरस्कार-आदि।

          इस महान साहित्यकार को कन्नड साहित्य क्षेत्र में उच्चतम स्थान प्राप्त है।

डॉ.एस विजी चक्केरे

*****

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Friday 25 September 2015

हिन्दी बांधने के चाबियाँ

अ आ इ ई उ ऊ ऋ

a aa i ii u uu (U) RRi

ए ऐ ओ औ अं अः

e ai o au aM aH

क ख ग घ ङ

ka kha ga gha ~Na

च छ ज झ ञ

cha chha ja jha ~na

ट ठ ड ढ ण

Ta Tha Da Dha Na

त थ द ध न

ta tha da dha na

प फ ब भ म

pa pha ba bha ma

य र ल व

ya ra la va

श ष स ह

sha Sha sa ha

क्ष त्र ज्ञ

xa tra GYa

क का कि की कु कू कृ के कै

ka kaa ki kI ku kU kRRi ke kai

को कौ कं कः

ko kau kaM kaH

ख खा खि खी खु खू

kha khaa khi khI khu khU

खृ खे खै खो खौ

khRRi khe khai kho khau

खं खः

khaM khaH

ग गा गि गी गु गू गृ गे गै

ga gaa gi gI gu gU grRi ge gai

गो गौ गं गः

go gau gaM gaH

घ घा घि घी घु घू घृ

gha ghaa ghi ghI ghu ghU ghRRi

घे घै घो घौ घं घः

ghe ghai gho ghau ghaM ghaH

ङ ङा ङि ङी ङु ङू ङृ

~Na ~Naa ~Ni ~NI ~Nu ~NU ~NRRi

ङे ङै ङो ङौ ङं ङः

~Ne ~Nai ~No ~Nau ~NaM ~NaH

च चा चि ची चु चू चृ

cha chaa chi chI chu chU chRRi

चे चै चो चौ चं चः

che chai cho chau chaM chaH

छ छा छि छी छु छू छृ

chha chhaa chhi chhI chhu chhU chhRRi

छे छै छो छौ छं छः

chhe chhai chho chhau chhaM chhaH

ज जा जि जी जु जू जृ

ja jaa ji jI ju jU jRRi

जे जै जो जौ जं जः

je jai jo jau jaM jaH

झ झा झि झी झु झू झृ

jha jhaa jhi jhI jhu jhU jhRRi

झे झै झो झौ झं झः

jhe jhai jho jhau jhaM jhaH

ञ ञा ञि ञी ञु ञू ञृ

~na ~naa ~ni ~nI ~nu ~nU ~nRRi

ञे ञै ञो ञौ ञं ञः

~ne ~nai ~no ~nau ~naM ~naH

ट टा टि टी टु टू टृ

Ta Taa Ti TI Tu TU TRRi

टे टै टो टौ टं टः

Te Tai To Tau TaM TaH

ठ ठा ठि ठी ठु ठू ठृ

Tha Thaa Thi ThI Thu ThU ThRRi

ठे ठै ठो ठौ ठं ठः

The Thai Tho Thau ThaM ThaH

ड डा डि डी डु डू डृ

Da Daa Di DI Du DU DRRi

डे डै डो डौ डं डः

De Dai Do Dau DaM DaH

ढ ढा ढि ढी ढु ढू ढृ

Dha Dhaa Dhi DhI Dhu DhU DhRRi

ढे ढै ढो ढौ ढं ढः

Dhe Dhai Dho Dhau DhaM DhaH

ण णा णि णी णु णू णृ

Na Naa Ni NI Nu NU NRRi

णे णै णो णौ णं णः

Ne Nai No Nau NaM NaH

त ता ति ती तु तू तृ

ta tA ti tI tu tU tRRi

ते तै तो तौ तं तः

te tai to tau taM taH

थ था थि थी थु थू

tha thA thi thI thu thU

थृ थे थै थो थौ थं थः

thRRi the thai tho thau thaM thaH

द दा दि दी दु दू दृ

da dA di dI du dU dRRi

दे दै दो दौ दं दः

de dai do dau daM daH

ध धा धि धी धु धू धृ

dha dhA dhi dhI dhu dhU dhRRi

धे धै धो धौ धं धः

dhe dhai dho dhau dhaM dhaH

न ना नि नी नु नू नृ

na nA ni nI nu nU nRRi

ने नै नो नौ नं नः

ne nai no nau naM naH

प पा पि पी पु पू पृ

pa pA pi pI pu pU prRi

पे पै पो पौ पं पः

pe pai po pau paM paH

फ फा फि फी फु फू फृ

pha phA phi phI phu phU phrRi

फे फै फो फौ फं फः

phe phai pho phau phaM phaH

ब बा बि बी बु बू बृ

ba bA bi bI bu bU brRi

बे बै बो बौ बं बः

be bai bo bau baM baH

भ भा भि भी भु भू भृ

bha bhA bhi bhI bhu bhU bhRRi

भे भै भो भौ भं भः

bhe bhai bho bhau bhaM bhaH

म मा मि मी मु मू मृ

ma mA mi mI mu mU mRRi

मे मै मो मौ मं मः

me mai mo mau maM maH

य या यि यी यु यू यृ

ya yA yi yI yu yU yRRi

ये यै यो यौ यं यः

ye yai yo yau yaM yaH

र रा रि री रु रू रृ

ra rA ri rI ru rU rRRi

रे रै रो रौ रं रः

re rai ro rau raM raH

ल ला लि ली लु लू लृ

la lA li lI lu lU lRRi

ले लै लो लौ लं लः

le lai lo lau laM laH

व वा वि वी वु वू वृ

va vA vi vI vu vU vRRi

वे वै वो वौ वं वः

ve vai vo vau vaM vaH

श शा शि शी शु शू शृ

sha shA shi shI shu shU shRRi

शे शै शो शौ शं शः

she shai sho shau shaM shaH

ष षा षि षी षु षू षृ

Sha ShA Shi ShI Shu ShU ShRRi

षे षै षो षौ षं षः

She Shai Sho Shau ShaM ShaH

स सा सि सी सु सू सृ

sa sA si sI su sU sRRi

से सै सो सौ सं सः

se sai so sau saM saH

ह हा हि ही हु हू हृ

ha hA hi hI hu hU hRRi

हे है हो हौ हं हः

he hai ho hau haM haH

क्ष क्षा क्षि क्षी क्षु क्षू क्षृ

xa xA xi xI xu xU xRRi

क्षे क्षै क्षो क्षौ क्षं क्षः

xe xai xo xau xaM xaH

त्र त्रा त्रि त्री त्रु त्रू त्रृ

tra trA tri trI tru trU trRRi

त्रे त्रै त्रो त्रौ त्रं त्रः

tre trai tro trau traM traH

ज्ञ ज्ञा ज्ञि ज्ञी ज्ञु ज्ञू

GYa GYA GYi GYI GYu GYU

ज्ञृ ज्ञे ज्ञै ज्ञो ज्ञौ

GYRRi GYe GYai GYo GYau

ज्ञं ज्ञः

GYaM GYaH

में meM

नहीं nahIM

गृह gRRiha

क्रम krama

कृष्ण kRRiShNa

आँख A.Nkha

तृप्त tRRipta

राष्ट्रीय rAShTrIya

प्रकृति prakRRiti

क्षत्रीय xatrIya

ऑफीस o.cphIsa

उच्चारण uchchAraNa

डॉ Do.c

डॉक्टर Do.ckTara

जगत् jagat

मूल्यांकन mUlyAMkana

तंत्रज्ञान taMtraGYAna

बढ़िया ba.DhiyA

चित्रदुर्गा chitradurgA

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Tuesday 1 September 2015

दसवीं कक्षा का अध्ययन सामग्री

पर्यायवाची शब्द

आयु = उम्र = वय

विपुल = बहुत = ज्यादा

स्पूर्ति = उत्साह = उमंग

संपदा = संपत्ति

गौरव = सम्मान = मान

गात = शरीर = देह

आहार = खाना = भोजन

विस्मय = अचरज = आश्चर्य

हिम्मत = साहस = धैर्य

खोज = तालाश = ढूँढ

सागर=सिंधु =रत्नाकर =वारिधि

आगार = आकर

जल = पानी = नीर = सलिल

आकाश = नभ = बानु

शाम = संध्या = साँझ

माल = चीज = वस्तु

दुनिया = जग = लोक

बोझ = भार = वजन

उम्मीद = भरोसा = यकीन

अभिनव = नया = नवीन

हिम्मत्त = धैर्य = धीरज

सेवा = कार्य = व्यवसाय

पेड = तरु = वृक्ष

पक्षी = विहग = पंछी

महिला = स्त्री = औरत = नारी

तबीयत =स्वास्थ्य = तंदोरुस्ती

मैया = माँ = माता

कारक

१. कर्ता कारक - राम ने

२. कर्म कारक - राम को

३. करण कारक - राम हल से

४. संप्रदान कारक – राम के लिए, को

५. अपादान कारक - राम से

६. संबंध कारक – राम का, की, के

७. अधिकरण कारक- राम में, पर

८. संबोधन कारक - अरे!, वाह!

विलोमार्थक शब्द

ब॒डा * छोटा

प्रसिद्ध * कुप्रसिद्ध

औपचारिक * अनौपचारिक

आरंभ * अंत / अंत्य

पूर्व * पश्चिम

निकट * दूर,

जवाब * सवाल

पाप * पुण्य

आशा * निराशा

स्वीकार * अस्वीकार

होश * बेहोश

बढाना * घटाना

स्थिर * अस्थिर

मुमकिन * नाममुमकिन

वरदान * अभिशाप

सदुपयोर * दुरुपयोग

उपयुक्त * अनुपयुक्त

दिन * रात

भीतर * बाहर

चढना * उतरना

उपयोगी * अनुपयोगी

उपस्थित * अनुपस्थित

उचित * अनुचित

प्रिय * अप्रिय

संतोष * असंतोष

अना * जाना

शांति * अशांति

गरीब * अमीर

सुंदर * कुरूप

विदेश * स्वदेश

रोजगार * बेरोजगार

आगे * पीछे

खरीदना * बेचना

लेना * देना,

सज्जन * दुर्जन

सदाचार * दुराचार

आयात * निर्यात

आगमन * निर्गमन

सजीव * निर्जीव

जन्म * मरण

अंधकार * प्रकाश

आय * व्यय

आगे * पीछे

अमृत * विष / मृत

आधार * निराधार

चल * अचल

लिखित * अलिखित

आवश्यक अनावश्यक

स्वस्थता * अस्वस्थता

समास

१. अव्ययीभाव समास

जन्म से लेकर = आजन्म

खटके के बिना = बेखटके

पेट भर = भरपेट

बिना जाने = अनजाने

२. कर्मधारया समास

सत है जो धर्म = सद धर्म

पीत है जो अंबर = पीतांबर

कनक के समान लता = कनकलता

चंद्रमा रूपी मुख = चंद्रमुखी

३. तत्पुरुष समास

स्वर्ग को प्राप्त = स्वर्गप्राप्त

ग्रंथ को लिखनेवाला = ग्रंथकार

गगन को चूमनेवाला = गगनचुंबी

सूर के द्वारा कृत = सूरकृत

४. द्विगु समास

सात सौ दोहों का समूह = सतसई

तीन धाराएँ = त्रिधारा

पाँच वटों का समूह = पंचवटी

चार राहों का समूह = चौराहा

५. द्वंद्व समास

सीता और राम = सीता-राम

पाप अथवा पुण्य = पाप-पुण्य

सुख या दुःख = सुख-दुःख

भला या बुरा = भला-बुरा

६. बहुव्रीहि समास

महान है आत्मा जिसकी = महात्मा

घन के समान श्याम है जो = घनश्याम

तीन हैं नेत्र जिसके = त्रिनेश

नील है कंठ जिसका = नीलकंठ

विराम चिन्ह

१. अल्प विराम - ,

२. अर्ध विराम - ;

३. पूर्ण विराम -

४. प्रश्न चिन्ह - ?

५. विस्मयादिबोधक चिन्ह - !

६. योजक चिन्ह - -

७. उद्दरण चिन्ह - ‘ ’, “ ”

८. कोष्टक चिन्ह - ( )

९. विवरण चिन्ह - :- , :

छुट्टी पत्र

प्रेषक

राजु,

१० वीं कक्षा,

अ ब क हाईस्कूल,

बेंगलूरु।

सेवा में,

मान्य प्रधानाध्यापकजी,

अ ब क हाईस्कूल,

बेंगलूरु।

मान्यवर,

विषय- छुट्टी के लिए प्रार्थना ।

उपर्युक्त विषय के आधार पर मेरा निवेदन यह है कि दि-२०-६-१५ और २१-६-१५ को मेरी बहन की शादी है। इसलिए आप मुझे उन दो दिन छुट्टी प्रदान करें।

धन्यवाद के साथ,

आपका विधेय विद्यार्थी,

राजु

पिताजी को पत्र

कुशल, दिनांक- २०-६-१५

पूज्य पिताजी,

सादर प्रणाम,

मैं यहाँ ठीक हूँ। आप सब भी वहाँ ठीक होंगे।

हमारे पाठशाला में शैक्षिक यात्रा जा रहें हैं। इसलिए मैं भी जाना चाहता हूँ । इसलिए आप मुझे २००० रुपए पैसे भेज दीजिए।

आपका अज्ञाकारी पुत्र,

राजु।

सेवा में,

श्री रमेश,

१०, सरकारी पाठशाला की रास्ता,

बेलूर।

हासन (जि)।

प्रेरणार्थक क्रिया

उडना-उडाना-उडवाना

उठना-उठाना-उठवाना

पढना-पढाना-पढवाना

उठना-उठाना-उठवाना

करना-कराना-करवाना

चलना-चलाना-चलवाना

लिखना-लिखाना-लिखवाना

दौडना-दौडाना-दौडवाना

ओढना-ओढाना-ओढवाना

जागना-जगाना-जगवाना

जीतना-जिताना-जितवाना

खेलना-खिलाना-खिलवाना

बैठना-बिठाना-बिठवाना

चिपकना-चिपकाना-चिपकवाना

मिलना-मिलाना-मिलवाना

छेडना-छिडाना-छिडवाना

भेजना-भिजाना-भिजवाना

सोना-सुलाना-सुलवाना

रोना-रुलाना-रुलवाना

धोना-धुलाना-धुलवना

पीना-पिलाना-पिलवाना

सीना-सिलाना-सिलवाना

ठरना-ठराना-ठहरवाना

देखना-दिखाना-दिखवाना

लौटना-लौटाना-लौटवाना

उतरना-उतराना-उतरवाना

पहनना-पहनाना-पहनवाना

बनना-बनाना-बनवाना

मुहावरे

होशहवास उडना = घबरा जाना।

बाल-बाल बचना = खतरे से बच जाना

सातवें आसमान पर पहुँचना =

अधिक होना |

श्री गणेश करना = प्रारंभ करना।

आँखें लाल होना = गुस्सा करना ।

घोडे बेचकर सोना = निश्चिंत होना ।

नौ दो ग्यारह होना = भाग जाना ।

पसीना बहाना = परिश्रम करना ।

हिम्मत न हारना = धीरज रखना ।

बीडा उठाना = जिम्मेदारी लेना।

चने के झाड पर बिठाना =

अधिक प्रशंसा करना।

अंगूठा दिखाना = देने से इन्कार करना।

दाल न गलना = सफल न होना ।

लिंग

पुल्लिंग स्त्रीलिंग

छात्र-छात्रा

अचार्य-अचार्या

नर-नारी

नाना-नानी

कुत्ता-कुतिया

बेटा-बिटिया

सुनार-सुनारिन

लुहार-लुहारिन

ठाकुर-ठकुराइन

हलवाई-हलवाइन

बालक-बालिका

सेवक-सेविका

सेठ-सेठनी

नौकर-नौकरानी

शेर-शेरनी

श्रीमान-श्रीमती

भाग्यवान-भाग्यवती

स्वामी-स्वामिनी

एकाकी-एकाकिनी

दाता-दात्री

विधाता-विधात्री

भाई-बहन

नर-मादा

कवि-कवयित्री

लेखक-लेखिका

युवक-युवती

मोर-मोरनी

मालिक-मालकिन

भिकारी-भिकारिन

बच्चा-बच्ची

बूढा-बुढिया

पति-पत्नी

पिता-माता

माँ-बाप

महिला-पुरुष

आदमी-औरत

राजा-रानी

पुरुष-स्ती

मर्द-औरत

शेर-शेरनी

वचन

एकवचन-बहुवचन

योजना-योजनाएँ

कविता-कविताएँ

कहानी-कहानियाँ

कला-कलाएँ

उपाधी-उपाधियाँ

उडान-उडानें

आँख-आँखें

रुपया-रुपए

पैसा-पैसे

रोटी-रोटियाँ

परदा-परदे

कमरा-कमरे

दायरा-दायरे

किताब-किताबें

जगह-जगहें

कोशिश-कोशिशें

खबर-खबर

युग-युग

दोस्त-दोस्त

कंप्यूटर-कंप्यूटर

रिश्तेदार-रिश्तेदार

जानकारी-जानकारियाँ

चिट्ठी-चिट्ठियाँ

जिंदगी-जिंदगियाँ

जीवनशैली-जीवनशैलियाँ

उँगुली-उँगुलियाँ

खिडकी-खिडकियाँ

पंजा-पंजे

लिफाफा-लिफाफे

कौआ-कौए

गमला-गमले

घोंसला-घोंसले

मूर्ति-मूर्तियाँ

कृति-कृतियाँ

नीति-नीतियाँ

संस्कृति-संस्कृतियाँ

पद्धति-पद्धतियाँ

कपडा-कपडे

चादर-चादर

बात-बातें

संधि

स्वर संधि

१.दीर्घ संधि

समान+अधिकार

धर्म+आत्मा

विद्या+अर्थी

कवि+इंद्र

गिरि+ईश

लघु+उत्तर

२.गुण संधि

गज+इंद्र

परम+ईश्वर

महा+इंद्र

रमा+ईश

वार्षिक+उत्सव

महा+ऋषि

३.वृद्धि संधि

एक+एक

सदा+एव

वन+औषध

यण संधि

अति+अधिक

इति+आदि

सु+आगत

४.अयादि संधि

ने+अन

गै+अक

नै+इका

व्यंजन संधि

दिक+गज

सत+वाणी

षट+दर्शन

विसर्ग संधि

निः+चय

निः+कपट

दुः+गंध

प्रभो !

विमल इन्दु की विशाल किरणें

प्रकाश तेरा बता रही हैं

अनादि तेरी अनन्त माया

जगत को लीला केखा रही है !

प्रसार तेरी दया का कितना

देखना हो तो देखे सागर

तेरी प्रशंसा का राग प्यारे

तरंगमालाएँ गा रही हैं।

जो तेरी होवे दया दयानिधि

तो पूर्ण होते सबके मनोरथ

सभी ये कहते पुकार करके

यही तो अशा दिला रही है !

मातृभूमि

मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम!

अमरों की जननी,

तुमको शत-शत बार प्रणाम!

मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम!

तेरे उर में शायित गांधी, बुद्ध और राम,

मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम!

हरे-भरे हैं खेत सुहाने,

फल-फूलों से युत वन-उपवन,

तेरे अंदर भरा हुआ है

खनिजों का कितना व्यापक धन।

मुक्त हस्त तू बाँट रही है

सुख-संपत्ति, धन-धाम,

मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम!

एक हाथ में न्याय-पताका,

ज्ञान-दीप दूसरे हाथ में,

जग का रूप बदल दे, हे माँ,

कोटि-कोटि हम आज साथ में।

गूँज उठे जय-हिन्द नाद से -

सकल नगर और ग्राम,

मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम!

तुलसी के दोहे

मुखिया मुख सों चाहिए, खान पान को एक ।

पालै पोसै सकल अँग्म तुलसी सहित विवेक ॥१||

जड चेतन, गुण-दोषमय, विस्व कीन्ह करतार ।

संत-हंस गुण गहहिं पय, परिहरि वारि विकार ॥२||

दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान ।

तुलसी दया न छाँडिये, जब लग घट में प्राण ॥३||

तुलसी साथी विपत्ति के विद्या विनय विवेक ।

साहस सुकृति सुसत्यव्रत राम भरोसो एक ॥४||

राम नाम मनि दीप धरु जीह देहरी द्वार ।

तुलसी भीतर बाहिरौ जो चाहसी उजियार ॥५||

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Wednesday 19 August 2015

हिन्दी के साहित्यकार

हिन्दी के साहित्यकार

1. तुलसीदास

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गोस्वामी तुलसीदासजी हिन्दी साहित्य के इतिहास में भक्तिकाल के सगुण भक्ति मार्ग के

कवि तथा संत माने जाते हैं। ये राम भक्तिशाखा के कवि हैं।

जन्म: सं१५८९(ई. सन १५३२) राजापुर में हुआ था।

इनके पिता का नाम आत्माराम और माता का नाम हुलसी था।

रचनाएँ: रामचरित मानस, विनय पत्रिका, पार्वती मंगल, जानकी मंगल, कवितावली, गीतावली, बरवै रामायण, कृष्ण गीतावली, दोहावली, वैराग्य संदीपनी, रामाज प्रश्न, रामलला, नहुष।

विशेषताएँ: इनका आराध्य दैव राम था। इनकी रचनाओं में सभी प्रकार रस दृष्टी गोचर होते हैं।

तुलसीजी रामानंद संप्रदाय के थे। इनके काव्य में प्रकृति सौंदर्य का वर्णन भी है। पत्नी रत्नावली के उपदेश से प्रेरित होकर तुलसी ने सांसारिकता से दूर गये थे।

मृत्यु: सं १६६० (ई सन १६२३) में हुई।

2. कबीरदास

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कबीरदास हिन्दी साहित्य में भक्तिकाल के जानमार्गी शाखा के प्रवर्तक माना जाता है। ये ईश्वर के परम भक्त थे। जानी थे। समाज सुधारक थे।

जन्म: इनका जन्म स्थान के बारे में तीन मत प्रचलित है: एक: काशी कहा जाता है।

दूसरा: मगहर मानते हैं। तीसरा: अजमगढ जिले के बलहरा गाँव में हुआ मानते हैं।

जन्म तिथि के बारे में मतभेद है। कई आधार पर जन्म तिथि १४५६ मानते हैं।

राचनाएँ: इन्होंने कई दोहे और कई पद रचना की है। इनका "कबीर बीजक" ग्रंथ प्रसिद्ध है।

विशेषताएँ: कबीर निर्गुण भक्तिमार्ग के थे। पूजा का खण्डन करते थे। इनके पोषक माता-पिता जुलाहा दंपति नीरू-नीमा माना जाता है। कुछ आलोचक अविवाहित मानते तो डा. रामकुमार वर्मा जी इनके दो स्र्ती मानते है। लोई और धनिया। जिसे राम जनिया भी कहा जाता है।

मृत्यु: मगहर में १५७५ में हुई।

3. सूरदास

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सूरदास हिन्दी साहित्य के इतिहास में भक्तिकाल में सगुण भक्ति धारा के कृष्ण भक्ति शाखा के कवि हैं।

जन्म: सूर के जन्म के बारे में मतभेद हैं। चार स्थान बताये जाते हैं। सं १५३५(सन १४७८)

एक: गोपाचल(आज का ग्वालियर), दूसरा: मथुरा में कोई ग्राम, तीसरा: रुनकता, चौता:सीही।

रचनाएँ: सूरजी कई पद, कई दोहे रचना की है, पर इनका नाम उजागर करने के लिए "सूर सागर" काफी समझा जाता है।

सम्मान: हिन्दी साहित्य में ऐसा माना जाता है कि "सूर सूर तुलसी ससि उडुगण केशवदास"।

विशेषताएँ: सूर की रचनाओं में शृंगार और भक्ति तथा वात्सल्य रसों का प्रयोग हुआ है। सूर जन्मान्ध थे। ये प्रकांड पण्डित तथा संगीतज थे। ये वैष्णव ब्राह्मण थे। अष्टछाप के कवियों में एक थे। वल्लभाचार्य संप्रदाय के थे।

मृत्यु: सं १६४० (सन १५८३) में हुई।

4. मीराबाई

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मीरा मेडता के राजा रत्न सिंह की पुत्री थी। मीरा साहित्य का इतिहास में सगुण भक्ति धारा में कृष्ण भक्ति शाखा की कवयित्री मानी जाती हैं।

जन्म:राठौर दुर्ग के एक ग्राम कुडकी में सं १५५५(सन १४९५) में हुई।

महाराणा सांगा के जेष्ट पुत्र भोज राजा से विवाह हुआ। पर मीरा बाल्य से ही अपने को गोपाल से अर्पित कर दी थी। इस तरह गृहस्थी से वैराग्य प्राप्त की थी।

रचनाएँ: मुंशी देवी प्रसाद के अनुसार मीरा के चार रचनाएँ माने जाते हैं।

१) गीत गोविन्द की टीका २) नरसी जी री माहेरी ३) राम-सोरठ पद संग्रह ४) फुट कर पद।

विशेषताएँ: मीरा की कविताओं में शृंगार रस की प्रधानता दिखाई देती है तथा गीति काव्य की उत्कृष्टता पाई जाती है। मीरा वस्तु वर्णन में भी पूर्ण सफल रही।

मृत्यु: सं १६०३ (सन १५४६) में हुई।

5. वृंद

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वृंदजी हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल के संत कवि माने जाते हैं।

जन्म: ई. स. १६४३ के आस पास मथुरा के नजदीक गाँव मेडता (जोधपुर) में हुआ था।

इनकी शिक्षा काशी में हुई।

कहा जाता है कि ये कृष्णगढ के महाराज मानसिंह के दरबारी कवि थे।

इनकी प्रमुख रचना है "वृंद सतसई"।

इन्होंने नीती के साथ दोहे की रचना भी की है। इनकी भाषा सरल-सरस एवं सुबोध है।

6. रहीम

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रहीम हिन्दी साहित्य के बडे कवि थे। दिल्ली के राजा अकबर के दरबार के नवरत्नों मे रहीम एक थे।

इनका पूरा नाम ’अब्दुरहीम खान खाना’ था।

जन्म: लाहोर में सं १६१३(ई सन १५५६) में हुआ।

रचनाएँ: रहीम दोहावली, नगर शोभा, बरवै नायिका भेद, बरवै, मदनाष्टक, शृंगार, सोरठा, रहीम काव्य, रास पंचाध्यायी, दीवाने फारसी।

सम्मान: ’ मिर्जा खाँ ’ उपाधी से सम्मानित थे।

विशेषताएँ: रहीम फारसी, अरबी, तुर्की, संस्कृत, हिन्दी भाषा के प्रकाण्ड पंडित थे। रहीम के काव्य बहुमुखी हैं। नीति संबंध दोहे, पदों की रचना की है। रहीम मुसलमान जाती के होने पर भी कृषण के अनन्य भक्त थे। रहीम अत्यंत कोमल स्वभाव के थे। इनकी शैली अत्यंत सरल थी।

मृत्यु: सं१६८३ (ई सन १६२६)

7. केशवदास

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केशवदास हिन्दी साहित्य चरित्र में रीतिकाल के कवि माने जाते हैं।

जन्म: बुन्देल खण्ड के ओडछा नगरी के एक ब्राह्मण परिवार में सं १६१८ (सन १५६१) में हुआ।

इनके पितामह कृष्णदास इनके पिता काशी नाथ मिश्र थे। इनके कुल के सभी लोग संस्कृत भाषा की विद्वान थे। केशवदास पर इनका प्रभाव रहा।

रचनाएँ:रामचन्द्र चंद्रिका, रसिक प्रिया, कवि प्रिया, विजान गीता, रतनबावनी, वीरसिंह, देव चरित, नख-शिख, छ्न्दमाला और जहाँगीर जस चंद्रिका।

विशेषताएँ:रीति काव्यों का प्रयोग करनेवाले सर्व प्रथम केशवदास ही हैं। इनके काव्यों में जटिलता व क्लिष्टता है पर मधुरता दीख पडती है। इनके काव्यों में उपमा, उत्प्रेक्षा, संदेहालंकार के प्रयोग देखा जाता है। श्लेष, विरोधाभास और परिसंख्या अलंकारों का प्रयोग अधिक मात्रा में किया गया है। इनका वर्णन शैली प्रशंसनीय है। ये ओडछा के राजा इन्द्र्जीत सिंह के यहाँ रहते थे।

मृत्यु: सं १६७८ (सन १६२७) में हुई।

8. बिहारीलाल

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बिहारी हिन्दी साहित्य के इतिहास में रीतिकाल के कवि माने जाते हैं।

जन्म: ग्वालियर में सं १६५२ (सन १५९५) में हुई।

रचनाएँ:बिहारी सतसई

इनके पिता केशवदास, गुरु-नरहरिदास।

विशेषताएँ: बिहारी का लौकिक जान तथा काव्य जान बढा-चढा था। इसी से उनका एक ही काव्य "सतसई" लोक प्रिय बना। बिहारी के काव्यों में शृंगार वर्णन, कुछ दोहों में भक्ति का वर्णन, प्रकृति का स्वाभाविक वर्णन तथा हाव-भाव का और अनुभवों का सुन्दर वर्णन मिलता है।

बिहारी काव्य जैसी सामाजिकता, कसावट और कल्पना शक्ति का समाहार शक्ति अन्यत्र नहीं मिलती।

बिहारी का काव्य मुक्तक काव्य है।

मृत्यु: आमेर में सं १७२० (सन १६६३) में हुई।

9. भूषण

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भूषण हिन्दी साहित्य चरित्र में रीतिकाल के कवि माने जाते हैं। हिन्दी साहित्य के प्रथम राष्ट्रीय कवि हैं।

जन्म: यमुना नदी के किनारे त्रिविक्रमपुर, आज का तिकवाँपुर जो कानपुर के पास है, सं १६७० में हुआ। इनके पिता रत्नाकर त्रिपाठी थे। चिंतामणि, मतिराम और नील कण्ठ(उपनाम-जटाशंकर) भूषण के भाई थें।

रचनाएँ:शिवराज भूषण, शिवा-बावनी और छत्रसाल शतक प्रसिद्ध है।

विशेषताएँ: भूषण छत्रपति शिवाजी के यहाँ रहे तथा बूंदी नरेश छत्रसाल के पास भी रहते थे। ये दोनों राजाओं ने भूषण को बहुत सम्मान करते थे। इनके काव्यों में वीर रस का ही प्रयोग हुआ है तथा युद्ध वीर का वर्णन है। इनकी भाषा ब्रज भाषा है। शैली वीरोचित है।

मृत्यु: १७७२ में हुई।

10. मैथिलीशरण गुप्त

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मैथिलीशरण गुप्तजी हिन्दी साहित्य के राष्ट्र कवि माने जाते हैं।

जन्म: झाँसी जिले के चिरगाँव में सन १८३३ में हुआ।

इनके पिता रामचरण बडे वैश्य धनी थे। गुप्तजी को अपने पिता का आशीर्वाद था कि "तू आगे चल कर इससे हजार गुनी अच्छी कवित करेगा। यह आशीर्वाद अक्षरश: सत्य हुआ। अपने पिता को काव्य गुरू मानते थे।

रचनाएँ:गुप्तजी की कृतियों में आज तक बावन से अधिक प्रकाशित हो चुकी हैं। उनमें साकेत, यशोधरा, जयद्रथ वध, भारत-भारती, द्वापर और जय भारत विशेष प्रसिद्ध हैं।

भाषा: गुप्तजी की भाषा खडी बोली है।

विशेषताएँ: गुप्त की रचनाओं में राष्ट्रीयता, मानवता, नाटकीयता, प्रबंध और मुक्तक काव्य भी लिखा है। भारतीय संसद भी रहे। राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने से कई बार जेल भी गये। ये गाँधीवादी थे।

मृत्यु: १९६४ में स्वर्ग सिधारे।

11. रामचंद्र शुक्ल

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आचार्य रामचंद्र शुक्ल आधुनिक हिन्दी साहित्य के श्रेष्ट लेखक हैं। हिन्दी साहित्य में शुक्ल जी की प्रतिभा बहुमुखी है।

जन्म: सं १९४१ में बस्ती जिला के अगोनी नामक गाँव में हुआ। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में रहकर शिक्षा विभाग से हिन्दी को ऊँचे स्तर पर लाये। शुक्ल जी हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखा है।

रचनाएँ: इन्होने समीक्षात्माक, दार्शनिक, सांस्कृतिक, निबंध संग्रह, बाल साहित्य, संपादित, हिन्दी साहित्य का इतिहास आदि लिखा है। इनमें चिंतामणि, भ्रमरगीत सार, गोस्वामी तुलसीदास आदि कृतियाँ उल्लेखनीय हैं।

भाषा शैली: शुक्ल जी की भाषा संस्कृत निष्ट तत्सम शब्दावली प्रधान, समास बाहुल, वस्तु विन्यास परक है। इनकी शैली सशक्त है।

विशेषताएँ: हिन्दी में समालोचना शैली के जन्मदाता है।मृत्यु: १९९७ में हुई।

12. सुभद्रा कुमारी चौहान

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चौहानजी आधुनिक हिन्दी साहित्य के श्रेष्ट कवयित्री हैं।

जन्म: प्रयाग के निहालपुर में नाग पंचमी के दिन ई १९०४ में हुआ था।

इनके पिता का नाम रामनाथ सिंह था। ये शिक्षा प्रेमी थे।

रचनाएँ:

इनकी कृतियाँ कम होते हुए भी गौरव की वस्तु हैं। मुकुल, बिखरे मोती, झाँसी की रानी, जन्मदिनी, त्रिधारा, सभा के खेल, सीधे साधे चित्र और विवेचनात्मक गल्प विहार(संपादित) प्रसिद्ध है।

विशेषताएँ: शैली मूलत: साहित्यिक खडीबोली है। इनके काव्यों में एक ओर नारी की सहज भावुकता व कोमलता के दर्शन होते हैं, दूसरी ओर समंतयुगीन क्षत्राणियों का तेज भी झलक उठता है।

13. अम्रिता प्रीतम

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दसवीं सदी की सुप्रसिद्द पंजाबी कवयित्री निबंधकार और उपन्यासकार। लगभग सौ से भी अधिक रचनाएँ लिखी गईं, जिनका अनुवाद हिन्दी तथा अन्य प्रमुख भाषाओं में हुआ है।

स्वतंत्रता के समय की त्रासदी, देश- विभाजन और महिलाओं की समस्याएँ इनकी रचनाओं की विषय वस्तु है।

जन्म: ३१ अगस्त १९१९ में गुजरनवाला पंजाब में हुआ। अमृता कौर नाम से जाने जाते हैं।

प्रमुख रचनाएँ: पिंजरा, पंजाबी उपन्यास देश विभजन पर आधारित रचना।

सुनेहे लंबी कविता और अन्य रचनाएँ

सम्मान: १९६९ पद्मश्री, १९८२ भारतीय जानपीठ पुरस्कार, २००४ पद्म विभूषण।

मृत्यु: ३१ अक्तूबर २००५

14. गजानन माधव मुक्तिबोध

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मुक्तिबोधजी आधुनिक हिन्दी साहित्य के कवि और लेखक माने जाते हैं।

जन्म: सन १९१७ में हुआ।

इनके पिता का नाम माधव राव और माता पार्वती बाई। पुलिस इनाखे में रह कर विश्वत विरोधी होने से रिटायर्ड होने बाद इनका जीवन कष्टमय रहा।

रचनाएँ: काव्य : चाँद का मुँह ठेढा है।

कहानी संग्रह: काठ का सपना। उपन्यास: विपात्र। निबंध: नई कविता का आत्मसंघर्ष तथा अन्य निबंध: कामायनी एक पुनर्विचार।

इनकी भाषा "अनगड" है। संस्कृत के अतिरिक्त अरबी, फारसी, अंग्रेजी तथा ग्राम्य शब्दों का प्रयोग किया है। मृत्यु: सन १९६४ में हुई।

15. राहुल सांकृत्यायन

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राहुलजी आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रतिभावान कवि रहे।

जन्म: आजमगड जिला पन्दहा ग्राम में १८९३ ई में अपने ननसाल में हुआ।

ये बचपन से ही प्रभावशाली व्यक्तित्व के रहे। जीवन के सभी क्षेत्रों में राहुलजी अपने काव्यों में स्पर्श किया है। इनका साहित्य बहुमुखी है।

रचनाएँ: यात्रा संबंधी साहित्यिक कृतियाँ: मेरी लद्दाख यात्रा, लंका, तिब्बत में सवा वर्ष, मेरी तिब्बत यात्रा, मेरी यूरोप यात्रा, जापान, ईरान, सोवियत भूमि।

भाषा शैली: इनकी शैली बहुमुखी है। उनकी दूसरी शैली खोजपूर्ण वृत्ति, इनकी भाषा सीधी-साधी और सरल है। उनके अभिव्यक्ति का प्रभाव पाठक के मानस पर डालते हैं।

16. माखनलाल चतुर्वेदी

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आधुनिक हिन्दी साहित्य में चतुर्वेदी का महत्वपूर्ण स्थान है।

जन्म: मध्यप्रदेश के बावई में १८८९ ई में हुआ।

इनके पिता का नाम पं. नंदलाल चतुर्वेदी था। इनकी कृतियों को यों विभाजित किया जाता है।

काव्य, नाटक, कहानी, (हास्य प्रधान), निबंध, संस्मरण, भाषण संग्रह।

इन्होने हिन्दी गद्य लिखने का एक नया पद्ध्ति प्रारंभ किया। ये भावुक गद्यकार है। इनकी प्रसिद्धि कवि के रूप में ही अधिक हुई है।

चतुर्वेदीजी कभी धारा शैली, कभी आवेश शैली में लिखते हैं। आपकी कविताओं में स्वतंत्रता-संग्राम की घटती प्रेरणा दी है।

17. हजारी प्रसाद द्विवेदी

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आधुनिक हिन्दी साहित्य के कवि, लेखक हैं।

जन्म: बालिया जिले में छपरा नाम्क गाँव में सं १९६४ को हुआ।

इनके पितामह २८ वर्षों तक काशी में रहे। उनका कुल ज्योतिष विद्या में विख्यात था। इसी प्रभाव से हजारी प्रसाद भी आचार्य परीक्षा पास की।

रचनाएँ: इतिहास, निबंध, अनुसंधान एवं आलोचना, उपन्यास धर्म एवं सास्कृतिक विषय का संपादन, अनूदित आदि प्रकार के साहित्य रचना की है।

विशेषताएँ: इनके साहित्य में व्यंग्य शैली, धारा शैली, व्यास शैली दीख पडती है। ये अत्यंत सरल व्यक्ति हैं। इनकी भाषा शुद्ध साहित्यक रूप है। साहित्य में अंग्रेजी भी प्रयोग हुआ है। इनकी शैली सामान्य जनता तक पहुंचती है।

18. फणीश्वरनाथ रेणु

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हिन्दी आधुनिक साहित्य के लेखक रेणुजी प्रेमचंदजी के असली वारिश कहे जाते हैं।

जन्म: १९२१ई को बिहार के पूर्णिया जिले के औराही हिंगना गाँव में हुआ।

ये राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेते थे। रेणु की भाषा लोक भाषा है। इनकी रचनाओं में जीवन दर्शन दीख पडती है। रिपोर्तज लेखक के रूप में भी रेणु प्रसिद्ध है। इन्होने कहानियों में ग्रामीण आँचलिक परिवेश के साथ शहरी जीवन के विभिन्न विन्यास भी आपने समेटा है।

रचनाएँ: कहानी, उपन्यास, निबंध और रिपोर्तज आदि। इनमें "मैला आँचल" इनकी बहुत प्रतिष्ठा बढाई।

मृत्यु: १९७७ में हुई।

19. केदारनाथ अगरवाल

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अग्रवालजी हिन्दी साहित्य के श्रेष्ट लेखक हैं।

जन्म: १९११ मे मध्यप्रदेश में हुआ।

इन्होने छायावादी और प्रगतिवादी पर बल दिया है। इनकी रचनाओं में प्रकृति सौंदर्य का वर्णन पर बल दिया हुआ विचार दीख पडता है तथा मानव के लिए आशा का ऊँचा और उदात्त स्वर मुखरित हुआ है।

रचनाएँ:काव्य संग्रह: युग की गंगा, नींद के बादल, लोक तथा आलोक, फूल नहीं रंग बोलते हैं।

ये प्रगतिशील विद्रोही कवि हैं।

विशेषताएँ: संक्षेप में कहा जा सकता है कि अग्रवालजी की कविताएँ समृद्ध है। कोमल, कठोर, स्निग्ध, रमणीय आदि समस्त प्रकार की प्रकृति का रूप उनकी कविताओं में उपस्थित हुआ है।

सरलता, सरसता, मधुरता, प्रगतिशीलता और अभिव्यक्ति की उदात्तता की दृष्टी से अग्रवालजी का काव्य धनी है। इनकी भाषा अति सरल है। शब्द चयन अनूठा है। उनमें भावों की गहराई है।

20. रघुवीर सहाय

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रघुवीर सहाय आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रभावी लेखक हैं।

जन्म: लखनऊ में १९२९ में हुआ।

इन पर लोहिय का प्रभाव पडा। इन्होने प्रकृति और प्रेम के उपादानों के सहारे कविता की।

रचनाएँ: काव्य संग्रह: सीढियों पर धूप,लोग भूल गये हैं, कुछ पत्ते कुछ चिट्टियाँ।

कहानी संग्रह: जो हम बना रहे हैं।

निबंध: दिल्ली मेरा परदेश, लिखने का कारण, ऊबे हुए सुखी।

इनकी रचनाएँ दूसरा सप्तक द्वारा प्रकाशित हुए।

21. मोहन राकेश

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राकेशजी हिन्दी आधुनिक साहित्य के लेखक माने जाते हैं।

जन्म: १९२५ में अमृतसर में हुआ। इनके पिता श्रेष्ट साहित्य एवं संगीत प्रेमी और वकील अमृतचंद गुगवाली थे।

रचनाएँ: नाटक: आषाढ का एक दिन, लहरों का राजहंस, आधे-अधूरे, अंडे के छिलकें,

उपन्यास: अंधेरे बंद कमरें, न आनेवाला कल, अंतराल नीली रोशनी की बाहें।

कहानियाँ: क्वार्टर, पहचान, तीनों संग्रह में ५४ कहानियाँ।

इनकी भाषा शैली बिंब विद्यायनी हैं। भावों के अनुकूल है। सरलता और स्पष्टता उनकी प्रमुख विशेषता है।

22. कमलेश्वर

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इनका पूरा नाम कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना।

जन्म: ६ जनवरी १९३२ मैनपुरी (उ.प)

मोहन राकेश, निर्मल वर्मा, भीष्म साहनी मंडल के अग्र लेखकों में एक माने जाते हैं।

रचनाएँ: कितने पाकिस्तान(उपन्यास)

विशेषता: १९५० के लगभग के नयी कहानी आंदोलन के सक्रिय लेखक माने जाते हैं। स्वतंत्रता पूर्व और स्वतंत्रता के बाद की ज्वलंत समस्याओं को अपनी रचनाओं में स्थान दिया है। उपन्यास, कहानी, निबंध और हिन्दी सिनेमा की पटकथा आदि सभी में अपनी बहुमुखी प्रतिभा का परिचय कराया है।

सम्मान: २००३ में साहित्य अकादमी पुरस्कार, २००५ में पद्म भूषण पुरस्कार। इनकी रचनाएँ अंग्रेजी सहित अन्य भाषाओं में अनूदित हैं।

मृत्यु: २७ जनवरी २००७ में हुई।

23. भीष्म साहनी

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आधुनिक हिन्दी कथा साहित्य में कलात्मक दे कर साहित्य में वैजानिक समझ दे कर स्थानांतरित का सपना ले कर अवतरित हुए।

जन्म: १९१५ में कट्टर आर्य समाज में रावलपिंदी में पैदा हुए। उस समय राष्ट्रीय आंदोलन का समय था। राजनैतिक, सामाजिक व आर्थिक विषमताओं में गुजरते हुए कथात्मक वातावरण निर्माण किया।

रचनाएँ: कहानी: भाग्यरेखा, पहला पाठ, भटकती राख, पटरिया, शोभायात्रा, निशाचर, पाली,

उपन्यास: झरोखे, कडियाँ, तमस, बसंती, नीलू-नीलिमा, नीलोफर।

नाटक: माधवी, हानूशक, कबीरा खडा बाजार में। निबंध: अपनी बात,

बाल साहित्य: गुलेल का खेल।

मृत्यु: २००३ में हुई।

24. केदारनाथ सिंह

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हिन्दी साहित्य के प्रतिष्टित लेखक हैं। ये प्रकृति चित्रण और गाँव का कष्टमय जीवन वर्णन करने में सिद्धहस्थ हैं।

जन्म: १९३४ में उत्तर प्रदेश के ब्लिया जिले के एक गाँव में हुआ।

इनकी भाषा ब्रज भाषा तथा अवधी है। केदारनाथ अपनी जीवन शैली को भारतीय किसान से सीखते हैं।

ये धर्म, पुराण, इतिहास और लोक साहित्य के क्षेत्र में घुसे रहते हैं। इनकी हर कविता अपेक्षाकृत बडे अर्थ को प्राप्त करने का ही प्रतिफल है।

रचनाएँ: काव्य: अभी बिलकुल अभी, यहाँ से देखो, जमीन पक रही है।

संग्रह: अकाल में सारस।

25. डा रामकुमार वर्मा

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डा वर्माजी हिन्दी के लेखक और कवि हैं।

जन्म: सन १९०५ में मध्यप्रदेश के सागर जिले में हुआ था। इनके पिता का नाम लक्ष्मीप्रसादजी डिप्टी कमीशनर थे। वर्माजी अध्ययनशील विद्यार्थी रहे।

इनकी रचनाओं को इस प्रकार विभाजित किया जाता है।

काव्य, नाटक, उपन्यास, पद्य काव्य, एकांकी संग्रह, निबंध और आलोचना, संपादित।

विशेषताएँ: वर्माजी बहुमुखी काव्यों की रचना की है।

उपाधि: पी.एच.डी पाये हैं। इनकी भाषा साहित्यिक खडीबोली है। इनकी शैली में वर्णनात्मक, गीतिकाव्य और विश्वबंधुत्व की सुंदर कल्पना है।

26. आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी

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महावीर प्रसाद द्विवेदी एक ऐसे रचनाकार हैं जिन्होंने हिन्दी भाषा और साहित्य को तदयुगीन अराजकता से उबारकर निश्चित दिशा प्रदान की। ये लेखक, भाषा शिक्षक, सुधारक, हिन्दी भाषा प्रचारक, संपादक, आलोचक, निबंधकार रहे।

जन्म: द्विवेदीजी का जन्म उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के दौलतपुर गाँव में १८६४ को हुआ था।

रचनाएँ:काव्य: देवी स्तुती शतक, काव्य मंजूषा, सुमन,

अनूदित रचनाएँ: विनय विनोद, विहारवाटिका, स्नेहमाला,

गद्य: नौषध चरित चर्चा, हिन्दी कालीदस की समालोचना, नाट्य शास्त्र।

द्विवेदीजी हिन्दी साहित्य के इतिहास में भारतेंदु के बाद अपना युग प्रारंभ किया। "सरस्वती" पत्रिका के संपादक रहे। पत्रिका द्वारा साहित्य जागृति किया। ये आचार्य रहे इनका मार्ग एक निर्देशक का रूप देता है। मृत्यु:२१ दिसंबर सन १९३८ में हुई।

27. भगवती चरण वर्मा

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वर्मा जी आधुनिक हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध लेखक हैं।

इनका जन्म: उन्नाव जिले के शफीपुर तह्शील में ई १९०३ में हुआ।

वर्माजी आकाशवाणी और फिल्मों में काम करते रहे।

रचनाएँ: इनके महत्वपूर्ण कृतियों का विवरण इस प्रकार है:

काव्य: मधुकण, प्रेम संगीत, मानव, एक दिन। उपन्यास: पतन, चित्रलेखा,तीन वर्ष, ठेडे-मेडे रास्ते, भूले बिसरे चित्र, वह फिर नहीं आई, सब ही नचावत राम।

कहानी संग्रह: इन्स्टालमेंट, दो बाँके, राख और चिंगारी,

नाटक: रुपया तुम्हे खा गया, सामर्थ्य और सीमा।

विशेषताएँ: इनके काव्य अहंकारिता, मस्ती, व्यंग्य विनोद, अहंकार-वियतिवाद, प्रकृति सौंदर्य, कला पक्ष, ओत-प्रोत हैं।

28. ना. नागप्पाजी

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जन्म: मण्ड्या जिले के अक्किहेब्बाल में ई.स १९१२ में हुआ। इन्होंने काशी हिन्दू विश्व विद्यालय से हिन्दी विषय लेकर एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। पूरे दक्षिण में हिन्दी लेकर एम.ए. करनेवाले ये पहले सज्जन हैं। मैसूर विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग मेम प्रोफेसर और अध्यक्ष रह चुके हैं। आपको हिन्दी साहित्य की सेवा के उपलक्ष्य में कई पुरस्कार प्राप्त हैं। जिनमें उल्लेखनीय है "बाबू राजेन्द्र शिखर सम्मान। इनकी कतिपय कृतियाँ इस प्रकार हैं:

बुआजी, व्यावहारिक हिन्दी, अभिनव हिन्दी व्याकरण, कर्नाटक में हिन्दी प्रचार, हिन्दी साहित्य का अध्ययन इत्यादी।

अनूदित रचनाएँ: श्रवण बेलगोल, मैसूर और पंपायात्रा।

29. कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर

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प्रभाकरजी वर्तमान युग के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार हैं।

प्रभाकरजी प्रतिभाशाली पत्रकार हैं।

रचनाएँ: रेखाचित्र, नई परछाई, नए विचार, जिंदगी मुसुकाई, माटी हो गई सोना।

कहानी संग्रह: आकाश के तारे-धरती के फूल,

समरसात्मक निबंध संग्रह: दीप जले शंख बजे। प्रेरणात्मक निबंध संग्रह: बाजे पायलिया के घुंघरु,

भाषा और शैली: प्रभाकर की भाषा शैली पर उनकी पत्रकारित का प्रभाव है। संस्कृत के तत्सम शब्द, अंग्रेजी शब्द, उर्दु के शब्द, देशज शब्द, मुहावरों का प्रयोग भी देख सकते हैं। क्रोध निराशा, आशा के भाव उनके कथन में सजीव हो उठते हैं।

भाषा विशुद्ध हिन्दी है। इनमें निर्भीकता दीख पडती है।

30. नागार्जुन

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जीवन में जैसा जिया वैसा ही काव्य में चित्रित करनेवाले नागार्जुन हैं। इन्हे ’यात्री’ नाम से पुकारा जाता है। इनका असली नाम वैद्यनाथ मिश्र था।

जन्म: १९११ में बिहार के मधुबनी जिले के सतलखा गाँव में हुआ।

रचनाएँ: कविताएँ, संस्मरण बाल साहित्य, निबंध, कहानी संग्रह।

राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेते थे। इनके काव्यों में व्यंग्य भी भरा रहता है। ये स्वभाव से विद्रोही थे। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा में संपादकीय विभाग से संबंध था।

इन्होने हिन्दी और मैथिली के अतिरिक्त बंगला और संस्कृत भाषा में भी कविताएँ लिखी।

१९९८ में इनकी मृत्यु हुई।

31. हरिवंशराय बच्चन

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आधुनिक हिन्दी काव्य में हालावाद के प्रवर्तकों और उन्नायकों में बच्चनजी का अग्र स्थान है।

जन्म: इलाहाबाद में चक मुहल्ले में १९०७ में हुआ था।

ये स्वतंत्रता आंदोलन में असहकार आंदोलन, सत्याग्रह आंदोलन इन संघर्षों में भाग लेते थे। बच्चन जी काव्य जीवन की बहुमुखी अनुभूतियों को सामने ले कर आता है।

इनके काव्य़ों में शृंगार, निराशा, अवसाद, आदि चित्रण मिलते हैं। राष्ट्रीय आंदोलन, जीवन के संघर्ष सांस्कृतिक क्रांति आदि ने उनके जीवन को प्रभावित किया।

भाषा शैली: बच्चनजी की काव्य भाषा सरल और मुहावरेदार हैं। इनकी शैली यथातत्य चित्रण करने में बहुत सरल है।

32. प्रेमचंद

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प्रेमचंदजी आधुनिक हिन्दी साहित्य के श्रेष्ट लेखक हैं।

इन्हे उपन्यास और कहानी सम्राट कहा जाता है।

जन्म: काशी के निकट लमही नामक गाँव में १९३७में हुआ। पहला नाम धनपत राय।

पिता का नाम अजायबराय था, मात का नाम आनंदी। हिन्दी साहित्य भंडार भर देने में प्रेमचंद जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

इनको मुंशी प्रेमचंद भी कहा जाता है।

रचनाएँ: सेवा सदन, गोदान, गबन, इनकी रचनाओं में हम कई रूप देख सकते हैं।

उपन्यास, कहानी संग्रह, नाटक, निबंध संग्रह, जीवनियाँ, संपादित, अनूदित आदि।

विशेषताएँ: प्रेमचंदजी उच्च कोटि के कलाकार थे। उनकी भाषा बहुत सरल और शैली हास्य और व्यंग्य, नाटकीयता के संवाद, मुहावरों का प्रयोग, देखा जाता है। प्रेमचंद जी बहुत कष्ट जीवी, सहृदयी, सरल सज्जन थे। शिक्षा विभाग में डेप्यूटी इन्सपेक्टर रहे। इसे त्याग कर पत्रकर्ता बने।

मॄत्यु: १९९३ को हुई।

33. रामवृक्ष बेनिपुरि

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श्री रामवृक्ष बेनिपुरिजी हिन्दी साहित्य के अमर कलाकार हैं।

जन्म: १९०२ में बिहार के बेनिपुरी थाना ग्राम कटरा जिला मुजफ्फरपुर में हुआ था।

इनके पिता का नाम फूलवन्त सिंह था।

नाटक, शब्दचित्र, रेखाचित्र, जीवनी, गल्प, उपन्यास और बाल साहित्य की रचना की है।

शिक्षा ननिहाल में हुआ था। बेनिपुरिजी संगठनात्म्क और प्रचारात्मक कार्यों से हिन्दी की महान सेवा की है।

इनकी भाषा और शैली में जादू थी। संस्कृत, उर्दू, शब्दों का भी प्रयोग की है।

34. रामेश्वर दयाल दुबे

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जन्म: उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जनपद के हिन्दुपुर ग्राम में सन १९०८ में हुआ।

आगरा विश्वविद्यालय से हिन्दी विषय लेकर एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के परीक्षा मंत्री के रूप में कार्य करते हुए कुल चालीस वर्ष हिन्दी की सेवा की है। अब तक इनकी साठ से अधिक पुस्तके प्रकाशित हुई है।

रचनाएँ: कोणार्क, चित्रकूट, सौमित्री, नूपुर आदी उल्लेखनीय है।

35. रामनरेश त्रिपाठी

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त्रिपाठीजी हिन्दी आधुनिक साहित्य के कवि और लेखक हैं।

जन्म: जौनपुर जिले के कोइरीपुर नामक ग्राम में सन १८८९ (सं १९४६) में हुआ।

इनके पिता का नाम पं. रामदत्त त्रिपाठी था। कई विचारों पर कुछ न कुछ लिखा है। उनकी कृतियों को इस प्रकार किया जा सकता है। काव्य,म उपन्यास और कहानी संग्रह, नाटक, आलोचना जीवन और संस्मरण, बाल साहित्य, संपादित आदि।

त्रिपाठी की भाषा साहित्य खडीबोली है। उन्होने संस्कृत के तत्सम क्लिष्ट दोनों प्रकार के शब्द इस्तेमाल की है। ये स्वच्छंदतावादी थे। ग्राम साहित्य की समृद्धि की है। इनकई रचनाओं में मिलन, पथिक और स्वप्नखंड काव्य उल्लेखनीय है।

मृत्यु: १९६२में हुई।

36. भारतेंदु हरिश्चंद्र

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भारतेंदुजी हिन्दी साहित्य के प्रथम गद्यकार माने जाते हैं। इन्होंने कई नाटक, निबंध, उपन्यास, पत्रकार भी हैं।

जन्म: १९०७ (ई. सन १८५०) में हुआ। इनके पिता गोपाल चंद्र ब्रज भाषा के अच्छे कवि थे।

रचनाएँ: इनके कुल दो सौ अडतीस (२३८) रचनाएँ उपलब्द हैं। जो नाटक, नव जागरण, राष्ट्रीयता, भक्ति प्रधान, समाज सुधार प्रकृति चित्रण, शृंगार विषयक कविताएँ आदि।

उपाधि: भारतेंदु ( देश से दिया हुआ उपाधि)

विशेषताएँ: भारतेंदु जी आधुनिक हिन्दी साहित्य के युग निर्माता हैं। इनकी सेवा केवल चौंतीस वर्षों तक चंद्र के समान प्रकाश फैलता रहा।

इनकी भाषा सरल, शुद्ध ब्रज भाषा, वस्तुत: प्राचीन और वर्तमान काल की युग संबंधी काव्य अपनी विशिष्टता रखता है।

मृत्यु:सं१९४१ में हुई।

37. जयशंकर प्रसाद

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जयशंकर प्रसादजी हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल के लेखक हैं।

जन्म: सं १९४६ (सन ई १८८९) में काशी में वैश्य कुल में हुआ। घर पर ही हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दु और फारसी पढने लगे। पिता का नाम देवि प्रसाद था। प्रसादजी की प्रतिभा बहुमुखी थी।

रचनाएँ: नाटक, उपन्यास, काव्य, निबंध आलोचना सभी विषयों पर उत्कृष्ट रचनाएँ की है। उनकी रचनाओं के वर्गीकरण यों है। चंपू काव्य, गीति नाटक, उपन्यास, नाटक, कहानी संग्रह निबंध और आलोचना, प्रभाव।

विशेषताएँ: इनकी रचनाओं में छायावादी और रह्स्यवादी दीख पडता है। इनकी भाषा खडीबोली है। ये प्रेम और सौंदर्य के वर्णन करनेवाले थे।

मृत्यु: सं १९९४ (ई.सन १९३७) में हुई।

38. सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

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निरालाजी आधुनिक हिन्दी साहित्य के छायावादी कवि माने जाते हैं।

जन्म: सं १९५३ (ई१८९७) में हुआ। इनके पिता का नाम राम सहाय त्रिपाठी था। इनका जीवन बडा संघर्षमय रहा।

रचनाएँ: इनकी कृतियों की तालिका इस प्रकार है। काव्य, कहानी संग्रह, उपन्यास, रेखाचित्र, आलोचना और निबंध, जीवनी साहित्य, अनुवाद। इनके काव्यों में छायावाद प्रमुख रूप से देखा जाता है तथा वीर रसपूर्ण काव्य, गीतिकाव्य़, राष्ट्रीय, प्रगति, दार्शनिक व्यंग्य प्रधान रहस्यवादी।

ये विद्रोही कलाकार भी थे।

विशेषताएँ: निरालाजी युग प्रवर्तक कवि हैं।

निरालाजी की भाषा लोक गीतों की भाषा के करीब लाता है।

मृत्यु: १९६१ में हुई।

39. गुलाबराय

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गुलाबराय को सरस्वती के वरगुन माने जाते हैं। ये एक आदर्श अद्यापक, समीक्षक, जागरूक संपादक, गंभीर विचारक, प्रिय साहित्यकार थे।

जन्म: इटावा नगर में सन १८८८में हुआ था। इनकी भाषा शुद्ध साहित्यक खडी बोली है।

इनकी कृतियों को इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है। समीक्षात्मक, दार्शनिक, सांस्कृतिक, निबंध संग्रह, बाल साहित्य, संपादित।

विशेषताएँ: गुलाबरायजी दार्शनिक, आलोचक और निबंधक थे। उन्होने इतिहास, साहित्य, राजनीति, धर्म, दर्शन, मनोविजान, समाज, पर्व, त्योहार, सामयिक आंदोलन, घटनाएँ आदि पर उनके

निबंध लिखे हैं।

मृत्यु: सन १९६३ में स्वर्गवास हुआ।

40. विष्णु प्रभाकर

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जन्म: मीरापुर में १९२२को हुआ।

स्वतंत्र लेखक के रूप में आप हिन्दी की सेवा कर रहे हैं। आपको दर्जनो पुरस्कार मिले हैं।

इनकी रचनाएँ इस प्रकार हैं।

उपन्यास: निशिकान्त, कोई तो, अर्धनारीश्वर, संकल्प।

कहानी: एक और कुंति, जिंदगी एक रिहर्सल, कर्फ्यू और आदमी।

नाटक: नव प्रभात, डाक्टर बंदिनी, केरल का क्रांतिकारी

एकांकी: प्रकाश और परछाई, तीसरा आदम, मैं भी मानव हूँ।

उपाधी: आपको वर्धमान विश्वविद्यालय से (बंगाल) डी. लिट की उपाधी दी है।

41. धर्मवीर भारती

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धर्मवीर भारतीजी आधुनिक हिन्दी साहित्य के जाने माने उदयोन्मुख लेखक हैं। इन्होने अनेक साहित्य विधाओं के क्षेत्र में नये प्रयोग किये हैं। इनकी कला की एक विशेषता यह है कि प्रतीकों के माध्यम से युग सत्य को सजीव साकार रूप में प्रस्तुत कर देते हैं। भारतीजी पीडित हिमायति और रक्षक के रूप में हमारे सामने आते हैं।

भाषा शैली आकर्षक है। व्यावहारिक भाषा के पक्षपाती हैं। यही कारण आप की भाषा में अंग्रेजी, फारसी और अरबी शब्दों का भी प्रयोग है। ये एक अच्छे कलाकार, नाटककार, संपादक और अच्छे कवि हैं।

संक्षेप में हम भारतीजी को एक ऐस साहित्यकार मान सकते हैं जो बौद्धिक चेतना का समर्थन करने में सिद्द हस्थ हैं।

42. आचार्य विनोबाभावे

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विनोबाभावे एक ब्राह्मण कुलोत्पन्न कर्मनिष्ट संत हैं। इनके जीवन में इनकी माता का प्रभाव रहा। उनके हाथों में पले भावेजी धर्मनिष्ट, सहृदयता, सहनशीलता, कर्मनिष्टता के भावों को अपनाये थे।

भाषा पर अंग्रेजी का प्रभाव अवश्य दिखाई देता है। भावेजी की भाषा आडंबर और सजावट से रहित है। आपकी विचारधारा सरल, सुबोध प्रभावशील होती है। विनोबाजी महान यात्री रहे। उनमें सत्य, अहिंसा, प्रेम, दया, सेवा-भाव, संतोष एवं विनय-शीलता में भरे हुए थे। इन पर गांधीजी का प्रभाव पडा हुआ था।

ये सर्वोदय के नायक तथा भूदान यज के प्रवर्तक माने जाते हैं।

43. सुमित्रानंदन पंत

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पंतजी आधुनिक हिन्दी साहित्य के छायावादी और रहस्यवादी लेखक माने जाते हैं।

जन्म: आल्मोडा जिले के कौसानी में १९०० में हुआ।

रचनाएँ: इनकी रचनाओं को तीन भागों में विभाजित किया जाता है।

१) छायावादी २) रहस्यवादी ३) प्रगतिवादी आध्यात्मवादी।

पंतजी की भाषा विशुद्ध खडीबोली है।

काव्य, उपन्यास, रूपक निबंध, अनुवाद, काव्य संकलन।

विशेषताएँ: प्रकृति की गोद में पैदा होने से प्रकृति चित्रण और मानवतावाद में सिद्दह्स्थ हैं। इन्होने गद्य और पद्य दोनों में सफलता पूर्वक रचना की है। पंतजी के काव्य शृंगार रस प्रधान हैं, गेय पद हैं। मृत्यु १९७७ में हुई।

44. रामधारी सिंह दिनकर

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दिनकर जी आधुनिक साहित्य के कवि माने जाते हैं। ये जन चेतना के नायक थे। ब्रिटीश साम्राज्य शाही का विरोध करते थे।

जन्म: बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया घाट नामक ग्राम में सं १९६४ (ई १९०७) में हुआ था।

रचनाएँ: काव्य: रेणुका, रसवंती, सामधेनी, द्वंद्वगीत, बापू, कुरुक्षेत्र,

आलोचना और निबंध:अर्ध नारीश्वर, मिट्टी की ओर, रेती के फूल आदि।

विशेषताएँ: इनकी रचनाओं में क्रांतिकारी भाव देख सकते हैं। विचारों की स्पष्टता इनके काव्यों में दिखाई देती है।

मृत्यु सं २०३० (सन १९७३) में हुई।

45. महादेवी वर्मा

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महादेवी वर्मा जी आधुनिक हिन्दी साहित्य में रहस्यवादी कवयित्री हैं। महादेवी का आराध्य महान है। सृष्टी का अपार सौंदर्य और वैभव उनके ऊपर बल देती है।

जन्म: सं१९६४९ई१९०७) में फरूखाबाद में हुआ।

रचनाएँ: गद्य एवं पद्य दोनों में रचनाएँ की है। काव्य ग्रंथ: नीहार, रश्मी, नीरजा, साध्य्गीत, यामा, दीपशिखा, संघिनी।

गद्य: अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ,श्रूंखला की कडिया, महादेवी का विवेचनात्मक गद्य, पथ के साथी, महादेवी जी विशेषकर गीति काव्य का प्रयोग किया है।

विशेषताएँ: महादेवीजी अधिकतर दार्शनिक रूप अपनाया है। अपने काव्यों से हिन्दी साहित्य में नया मार्ग प्रदर्शित किया।

मृत्यु: १९८७ में हुई।

46. सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन "अजेय"

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सच्चिदानंदजी आधुनिक हिन्दी साहित्य में एक प्रतिष्टित साहित्यकार हैं। ये एक तत्ववेत्ता हीरानंद शास्त्री के पुत्र थे।

जन्म: १९११ई में कसिया जिला कुसिया देवारिया(उत्तर प्रदेश) में हुआ।

अजेय जी के काव्य बहुमुखी हैं। उन्हे इस प्रकार विभाजित किया जाता है।

उपन्यास, कहानी, मात्रावृत्त, निबंध, संपादन, विविध साहित्य अंग्रेजी रचनाएँ।

ये छायावादी, रहस्यवादी तथा नई कविता के साहित्यकार हैं। इनके काव्यों में प्रकृति चित्रण, व्यंग्य, विद्रोंही भावना, प्रेमानुभूति मिलते हैं।

अजेय जी हिन्दी साहित्य के एक अप्रतिम कलाकार हैं। आधुनिक कविता के सर्वाधिक चर्चित कवि भी है।

47. नरेश मेह्ता

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मेहताजी हिन्दी साहित्य के बहुमुखी कलाकार हैं। नरेश की कविता भाव, भाषा कल्पना की दृष्टी से अत्यंत समृद्द है।

जन्म: १९२४ में गुजराति परिवार में हुआ। ये मूलत: दो तरह के आदमी हैं। एक तो हर आदमी से दोस्ती करना। दूसरा हरचीज को पीछे छोड कर आगे और आगे चलते जाना।

ये गंभीर, रसात्मक, क्लासिकल, भांगीमा की रचनाओं के प्रणय्न के साथ उसने प्रकृति के सामान्य मनोरम चित्र भी अंकित किया है।

नई कविता की दुर्बलताओं, वर्तमान असंगतियों और प्रयोग पर अपना स्पष्ट मत प्रदान करते हुए लिखते हैं।

48. निर्मल वर्मा

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आधुनिक हिन्दी साहित्य के लेखक माने जाते हैं।

जन्म: १९२९ को शिमला में हुआ। इनकी शिक्षा दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कालेज से इतिहास में एम.ए पास कर चुके हैं।

रचनाएँ: वे दिन, लाल टीन की छत चिथडा सुख, परदे, जलती झाडी पिछली गर्मियों मे।

कहानी संग्रह: बीच बहस में। उपन्यास: रात का रिपोर्टर,

निबंध तथा संस्मरण: चीडों पर चाँदनी, शब्द और स्मृति, कला का जोखिम, ढालान से उतरते हुए भारत और यूरोप, प्रतिशृति के स्तोत्र। नाटक: तीन एकांत

सम्मान: साहित्य अकादमी पुरस्कार, जानपीठ पुरस्कार, पद्मभूषण आदि।

49. कुँवर नारायण

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कुँवर नारायण हिन्दी आधुनिक साहित्य के श्रेष्ट लेखक और कवि माने जाते हैं। इनकी ख्याती कवि के रूप में अधिक है। इनकी प्रतिभा बहुमुखी है।

जन्म: १९२७ में उत्तर प्रदेश में हुआ।

पढाई: लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी एम.ए.पास की।

रचनाएँ: काव्य: चक्रव्यूह, परिवेश हम तुम, अपने सामने कोई दूसरा नहीं, इन दिनों,

समीक्षा ग्रंथ: आज और आज से पहले।

कहानी संग्रह: आकारों के आस पास। इनकी भाषा में नाटकीयता देखी जाती है।

कबीर जैसी निर्भीकता नारायण में दीख पडती है।

पुरस्कार:साहित्य अकादमी पुरस्कार, केरल का कुमार्न आशान पुरस्कार, व्यास सम्मान,

हिन्दी संस्थान का विशेष सम्मान, शतदल पुरस्कार, प्रेमचन्द पुरस्कार,

लोहिया आतिविशिष्ट सम्मान, रस्ट्रय कबीर सम्मान, इन्होने कई अनुवाद भी किया है।

"युग चेतना" "नया प्रतीक" तथा "छाया नट" पत्रिकाओं के संपादक भी रहे।

50. श्री लाल शुक्ल

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जन्म: ३१ दिसंबर १९२५ को लखनऊ के मोहनला गंजे के पास उत्तरौली गाँव में हुआ।

शिक्षा: १९४७ को इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक डिग्रि पास किया।

रचनाएँ: उपन्यास: सूनी घाटी का सूरज, अजानवास, राग दरबारी, आदमी का जहर, सीमाएँ टूटती है।

कहानी संग्रह: यह घर मेरा नहीं, सुरक्षा तथा अन्य कहानियाँ आदि।

व्यंग्य संग्रह: अंगद का पाँव, यहाँ से वहाँ, मेरी श्रेष्ट व्यंग्य रचनाएँ, खबरों कॊ जुगाली।

आलोचना: अजेय, कुछ राग-कुछ संग, भगवती चरण वर्मा, अमृतलाल नागर।

बाल साहित्य: बब्बर सिंह और उसका साहित्य।

पुरस्कार: साहित्य अकादमी, पद्म भूषण, बिर्ला फाउंडेशन का व्यास सम्मान, साहित्य भूषण,

गोयल साहित्य, लोहिया सम्मान, शरद जोशी सम्मान, मैथिलीशरण गुप्तजी पुरस्कार,

यश भारती और जानपीठ पुरस्कार।

51. अमरकांत

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हिन्दी साहित्य के लिए इनका योगदान अपूर्व है।

जन्म: जुलाई१९२५ को उत्तर प्रदेश के बलियाअ जिले के नागरा में हुआ।

शिक्षा: बलिया से मेट्रिक, गोरखपुर और इलहाबाद में इन्टर, इलहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए.।

रचनाएँ: कहानी संग्रह:जिंदगी और जोक, देश के लोग, मौत का नगर-मित्र मिलन और कुहासा।

उपन्यास: सूखा पत्ता, आकाशपत्ती, काले-उजले दिन, सुख जीवी, बीच की दीवार, ग्राम सेविका।

बाल उपन्यास: वानर सेना।

पुरस्कार: जानपीठ पुरस्कार।

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