Thursday 29 October 2015

कन्नड साहित्य मनीषि डॉ.पी.के.राजशेखर

image

       कन्नड भाषा साहित्यकारों को हिंदी भाषा-भाषियों को परिचय कराना मेरी पहले से ही रुचि रही है। इसे साकर करने का अवसर अभी मिला है। इसके तहत कन्नड भाषा के लोकसाहित्यकारों में अग्रणी डॉ.पी.के.रजशेखर का एक छोटा सा परिचय देने के प्रयास आपके लोगों के सम्मुख है। इनका अभिरुचि विषय है कि बचपन से लोकसाहित्य सुनना-सुनाना,लोकसाहित्य को लिखित स्वरूप देना। इन्होंने कन्नड लोकसाहित्य को समृद्ध बनाने में अपूर्व सेवा की है। इसके अलावा साहित्य के विविध प्रकारों पर भी अपनी लेखनी चलायी है। ऐसे महान लोक साहित्यकार का परिचय कन्नड प्रेमी हदी अध्यापक मेरा सौभाग्य है।

        साहित्य की एक विधा लोकसाहित्य है। लोकसाहित्य के विद्वानों में डॉ.पी.के राजशेखर अग्रणी है। इनका जन्म मैसूर जिले के पिरियापट्टण तालुक में हुआ। इनके माता-पिता श्रीमती पुट्टम्मा और श्री पी.डी.केंपेगौडा है। ये बचपन से ही अध्ययन और अध्यापनों में संलग्न होकर अच्छे कवि, लोकगीत विद्वान,जानेमाने अध्यापक के रूप में चर्चित रहे।

       राजशेखर जी को लोकगीत क्षेत्र में अच्छी पकड होने के साथ-साथ अच्छे लोकगीत गायक के रूप में भी प्रख्यात है। लोकगीतों को पहले असहज रूप से गाया जाता था। लोकसहित्य को शास्त्रीय रूप से अध्ययन करना उसके विविध रूपों को संशोधन करना,लोकगीतों को सहज रूप से गाने के लिए मार्गदर्शन देने हेतु इनके द्वारा निर्मित होन्नारू लोकगीत गायन मंडली को एक ऐतिहासिक भूमिका है। यह मंडली लोकगीतों को सहज रूप में गाकर लोकप्रिय कराने के अलावा उनको अमरत्व देने के हित से गाओ मुत्तिनरगिणी,अव्वनिनदनी अपरंजी,कोगिलागी कूगुतियल्लो, उठकर आओ मुद्दु भैरुव,नक्करे नगलेळु,शरणु शरणु मादेश्वर को- आदि गीतों को सहज रूप में गाकर लोगगीतों के कैसटों के माध्यम से डॉ.पी.के.राजशेखर जी कन्नड लोकगीत परंपरा में अमर बने।  

     लोकगीत जैसे खेत में उत्साही किसान की तरह संशोधन द्वारा छात्रकाल में ही 1500 पृष्ठों का बडा महाकाव्य मले मादेश्वर नामक ग्रंथ की रचनाकर, प्रकाशित कर, कन्नड लोकगीत क्षेत्र को विश्व लोकगीत क्षेत्र में स्थापित करने का श्रेय डॉ.पी.के राजशेखर जी को जाता है। लोकगीतों की परंपरा बचने के पीछे डॉ.पी.के. राजशेखर जी का अविरत परिश्रम है इसे रूभी विद्वान मानते हैं। विद्वानों का मानना है -‘हमारे लोकगीत, साहित्य-सौध का सिर मौर है। इसे ही1973  में राज्य साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है।

       लोकगीत क्षेत्र में अबतक इनकी लगभग ४० से अधिक सृजनशील कृतियाँ का प्रकाशित हो चुकी है। लोकगीत श्रेत्र में इनकी देन के स्मरण में कर्नाटक लोकगीत और यक्षगान अकादमी ने १९९६ में लोकविद् पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया है। इतना ही नहीं अनेक संस्थाएँ लोकगीत साहित्यभूषण,लोकगीत साहित्यरत्न,लोकगीत गायकरत्न,मंड्या जवरप्पगौ डा स्मारक के रूप में समाजमुखी पुरस्कार,मैसूर लॉयन्स संस्था की ओर से दक्षिण केसरी पुरस्कार, लोकसाहित्य रत्नभंडार, लोकसाहित्य संगीत रत्नाकर, कन्नड के एल्यास्लोनराट,लोक साहित्य के सार्वभौम -आदि इनको प्राप्त पुरस्कार हैं।

      इनका और एक महाकाव्य है-लोकसाहित्य का महाभारत यह भी प्रसिद्ध रचना है। लोकसाहित्य क्षेत्र को इनकी देन अपूर्व है। इन्होंने आजतक कविता,भाषाविज्ञान, लोकसाहित्य, बाल साहित्य, जीवनी, अनुवाद, संपादन-इस प्रकार कन्नड साहित्य के विभिन्न प्रकारों में ७० से अधिक ग्रंथों को प्रकाशित किया है। कन्नड लोक साहित्य क्षेत्र में इनकी अपूर्व सेवा को पहचानकर कर्नाटक सरकार ने २००५-०६ वर्ष में कर्नाटक राज्योत्सव पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया है।

      इनके द्वारा प्रदत्त लोकसाहित्य क्षेत्र की सेवा को पहचानकर श्री आदिचुंचनगिरि महासंस्थान ने २००८ में चुंचनाश्री पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया है।

      अमेरिका के चिकागो में संपन्न पाँचवाँ अक्का कन्नड सम्मेलन में कन्नड लोकगीतों को गाकर विश्वस्तर की सभा में लोगीतों की मिठास आस्वादीत करके वहाँ के कन्नड प्रेमियों को कराया है।

      इनकी महान उपलब्धि को ध्यान में रखकर इनके शिष्यगण, साथी,दोस्त,विद्वान और अभिमानी लोगों ने मिलकर कन्नड भाषा में जानपदजोगी नामक अभिनंदन ग्रंथ द्वारा सम्मानित किया है।

इनकी रचनाएँ-

प्रकाशित लोकगीतों के कैसेटः-

               १.मले मादेश्वर।

              २.हाडो मुत्तिनरगिणी

             ३.शरणु-शरणु मादेश्वरगे

              ४.एद्दु बारो मुद्दुभैरुव

             ५.कोगिलेगागी कूगुतियल्लो

कविताएँ-

             मानसदीप्ति(१९६६),प्रतिबिंब (१९६८),स्वतिमुत्तु, नानल्लद नानु(२००१)

भाषाशास्त्रः-

             पदविवरण कोश,पदसंपद

बालसाहित्यः-

                   सोने का फर,अभिनव कालिदास,विद्याविशारदे कंति,दलित भारत।

लोकसाहित्यः-

                  पहाड़ की चामुंडी,लोकसाहित्य का रामायण,मागडी केंपेगौडा,चुनेहुए लोकगणित-आदि।

संपादनः-

                   शिवसंपद,रजतश्री,संजीविनी,मिट्टि के दिये,

जीवनी साहित्यः-

                    समाज सेवारत्न (कं.रा.गोपाल).वीर योद्धा बेल्लियप्पा ।

कथा साहित्यः-

                   पुरुष पुण्य और नारी भाग्य -लोकोक्ति विश्लेषण युक्त कहानियाँ-आदि।

इनको प्राप्त पुरस्कारः-

                  १.लोकगीत -महाकाव्य मले मादेश्वर कृति के लिए सन् १९७३ में कर्नाटक राज्य साहित्य अकादमी पुरस्कार।

                   २.लोकसाहित्य का वीरकाव्य पिरियापट्टण का युद्ध कृति के लिए सन् १९९० में करनाटक राज्य जनपद और यक्षगान अकादमी पुरस्कार।

                   ३.करपाल बसव पुराण कृति के लिए सन् १९९६ में करनाटक राज्य जानपद और यक्षगान अकादमी पुरस्कार।

                  ४.पदविविरण कोश के लिए सन् १९९३ में विभाग से कन्नड और संस्कृति प्रशंसनीय पुरस्कार।

                 ५.कर्नाटकल जनपद और यक्षगान अकादमी से सन् १९९८ में लोकसाहित्य विद् का पुरस्कार।

                ६.कर्नाटक सरकार से सन् २००५ में सुवर्ण कर्नाटक राज्योत्सव पुरस्कार।

                ७.मंड्या के पी.एन जवरप्पगौडा प्रतिष्ठान की ओर से सन् २००५ में समाजमुखी पुरस्कार।

               ८.दक्षिण प्रदेश लॉयन्स संस्था की ओर से दक्षिण साहित्य के केसरी पुरस्कार।

              ९.बौप्पनगौडपुर के मंटेस्वामी मठ की ओर से सन् २००४ में श्रेष्ठ लेखक पुरस्कार ।

              १०. सन् २००५ में मैसूर से नवज्योति कला पुरस्कार ।

              ११.फारूखिया विद्या संस्था की ओर से सन् २००० में लोकासहित्य का रत्नभंडार का पुरस्कार।

              १२.साथियों का मंडली तरिकेरे की ओर से सन् १९९७ में कनकश्री पुरस्कार।

              १३.पिरियापट्टण की ओर से लोकसाहित्य का कलानिधि पुरस्कार।

               १४. उम्मत्तूर द्वरा सन् १९९५ में लोकसाहित्य का गायकरत्न पुरस्कार ।

               १५.पिरियापट्टण से सन् १९७४ में लोकसाहित्य भूषण पुरस्कार।

               १६. सन् २००६ में लोकसाहित्य-महाभारत कृति को प्रसार भारती पुरस्कार।

               १७. बसवेश्वर देवालय निर्माण समिति गोरहल्ली की ओर से सन् २००६ में लोकसाहित्य का सार्वभौम पुरस्कार।

          १८.मैसूर के होटेल मालिकों की ओर से सन् २००५ में सुवर्ण कर्नाटक पुरस्कार ।

           १९.सन् २००५ में ओक्कलिग जागृति सभा पुरस्कार,मानस गंगोत्री पुरस्कार।

           २०.मैसूर के ऑफिसर्स संघ की ओर से सन् २००५ में कन्नड राज्योत्सव पुरस्कार।

           २१.सन् २००५ में मैसूर में कर्नाटक होयसल पुरस्कार,होयसल कन्नड संघ पुरस्कार।

          २२.सन् २००८ में कर्नाटक लोक साहित्यऔर यक्षगान अकादमी रजतमहोत्सव पुरस्कार

          डॉ.एस.विजीचक्केरे



No comments:

Post a Comment


© Copyright 2012, Design by Lord HTML. Powered by Blogger.