रामनगर जिले जन्नपट्टण तालुक के ब्याडरहल्ली नामक गाँव में दिनांक-15-08-1939 को इनका जन्म हुआ। प्राथमिक शिक्षा अपने गाँव में ही हुई। माध्यमिक शिक्षा निकट के शेट्टिहल्ली नामक गाँव में हुई। बाद में उच्च माध्यमिक शिक्षा चन्नपट्टण में हुई। इंटरमीडियट की शिक्षा मैसूर के युवाराजा कॉलेज से प्राप्ति के बाद मैसूर के महाराजा कॉलेज में बी.ए की उपाधि प्राप्ति की। एम. ए.(हिंदी) की उपाधि मैसूर विश्वविद्यालय से प्राप्ति की। इन्होंने पूना के डेकन कॉलेज में भाषा-विज्ञान विषय में एम.ए. की उपाधि प्राप्ति की।
मैसूर विश्वविद्यालय के कन्नड अध्ययन संस्था,मानस गंगोत्री, मैसूर, यहाँ भाषा विज्ञान के अध्यापक के रूप में अपने अध्यापन की सेवा प्रारंभ की। उसी विश्वविद्यालय के रीडर,प्राध्यापक,कुवेंपु कन्नड अध्ययन संस्था के निदेशक के रूप में अपनी सेवा की है,इसके अलावा युजीसी के एमरिटस् प्राध्यापक के रूप में भी सेवा करके अवकाश प्राप्त कर चुके हैं।
मैसूर विश्वविद्यालय में मानसगंगोत्री के कन्नड विभाग में 1965 में संशोधक के रूप में अपनी सेवा प्रारंभ करके केंपेगौडा जी सन् 1968-70 तक महाराजा कॉलेज में प्राध्यापक थे। 1970 में कन्नड अध्ययन विभाग में भाषा विज्ञान के अध्यापक के रूप में नियुक्त हुए। वहीं इरुळर भाषा के प्रति प्रो.हा.मा.नायक के मार्गदर्शन में पीएच.डी. की उपाधि सन् 1974 में प्राप्ति की। सन् 1980-1987 तक प्राध्यापक के रूप में सेवा करके,सन् 1995 में कुवेंपु कन्नड अध्ययन संस्था के निदेशक बन गये। कुछ समय के लिए मैसूर विश्वविद्यालय के प्रसारंग के निदेशक भी बन गये थे।
अध्यापन के साथ-साथ संशोधन प्रवृत्ति अपनाकर डॉ.के.केंपेगौडा जी अब तक 40 से अधिक ग्रंथों की रचना की हैं। 200 से अधिक संशोधन प्रबंधों की रचना करके, भाषा विज्ञान क्षेत्र को इन्होंने अपार देन दिया है। डॉ. के केंपेगौडा जी के सामान्य भाषा विज्ञान ग्रंथ के लिए सन् 1995 में मैसूर विश्वविद्यालय ने डी.लिट.की उपाधि देकर सम्मानित किया है। सनेट, सिंडिकेट, डीन बनकर, परीक्षा विभाग और अध्ययन विभाग के अध्यक्ष बनकर,इसके अलावा सदस्य बनकर इन्होंने काम किया है। डॉ.के .केंपेगौडा जी के भाषा-विज्ञान के ग्रंथ विद्यार्थी,संशोधकों को बहुत उपयुक्त होते हैं। डॉ.के.केंपेगौडा जी बुजुर्ग भाषा-वैज्ञानिक कहना अतिशयोक्ति नहीं है।
प्रो.के.केंपेगौडा को कोई पुरस्कार या सम्मान की रुचि नहीं थी। फिर भाषा-विज्ञानक क्षेत्र में इनकी उपलब्धि को देखकर मंड्या कर्नाटक संघ-डॉ.हा.मा.नायक जी के पुरस्कार से सम्मानित किया है। अपने गुरु के नाम से सर्वप्रथम पुरस्कार प्राप्त मैं बुहुत धन्य हूँ कहते है प्रो.केंपेगौडा जी।
रचनाः- डॉ.एस.विजीचक्केरे
संदर्भः1.कन्नड प्रौढ व्याकरण।
2.भाषा विज्ञान परिचय
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