Saturday 31 October 2015

विशेषण

जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताता है, उसे विशेषण कहते हैं।
विशेषण के भेदः
विशेषण के चार भेद होते हैं-
1.गुणवाचक विशेषण
2.संख्यावाचक विशेषण
3.परिमाणवाचक विशेषण
4.सार्वनामिक विशेषण
1.गुणवाचक विशेषणः
    संज्ञा या सर्वनामके गुण या दोष का बोध करानेवाले शब्द को गुणवाचक विशेषण कहते हैं।
जैसेः बड़ा,छोटा,काला, लंबा, मोटा, कडुआ,नमकीन-आदि.
2.संख्यावाचक विशेषणः
संज्ञा या सर्वनाम के संख्या का बोध करानेवाले शब्द को संख्यावाचक संज्ञा कहते हैं।
जैसेःएक दो,तीन पौना, डेढ़-आदि।
संख्यावाचक विशेषण के दो भेद हैं-
क.निश्चय संख्यावाचक विशेषण
जैसे- दो लोग,चार हाथी, पाँच लड़के- आदि
ख.अनिश्चय संख्यावाचक विशेषण
जैसेः हजारों लोग,
3.परिमाणवाचक विशेषणः
संज्ञा या सर्वनाम के परिमाण का बोध करानेवाले शब्द को परिमाणवाचक सर्वनाम कहते हैं।
जैसेः चार मीटर कपड़ा,चार सेर दूध, पाँच किलो चावल।
क.निश्चय परिमाणवाचक विशेषण
जैसे- दो लीटर दूध ,चार किलो चावर, पाँच सेर घी- आदि
ख.अनिश्चय परिमाणवाचक विशेषण
जैसेः कुछ पानी, बहुत चावल,
4.सार्वनामिक विशेषण/सेकेतवाचक विशेषण
जो सर्वनाम विशेषण की तरह प्रयुक्त होते हैं, उन्हें सार्वनामिक विशेषण कहते हैं।
जैसेःजो लड़का,कोई चीज़,कुछ फल-आदि।
(सूचनाः यहाँ पहले विशेषण का सामान्य परिचय देने का प्रयास किया गया है। आगे इसके संबंध में विस्तृत जानकारी देने का प्रयास किया जायेगा।)
डॉ.एस.विजी
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"आधी छोड़ सारी को धावे, आधी रहे न सारी पावे- 1"

     नागवाला एक गाँव था, उसमें नागण्णा नामक एक खेतिहर था। उसके पास केवल एक एकड़ ज़मीन थी। कुछ खेती हुई तो ठीक, नहीं तो जंगल में जाकर लकड़ी का सौदा करके जीवनयापन करना पड़ता था।

     एक बार अच्छी वर्षा हुई। सभी खेतिहर अपने-अपने खेत में अपनी-अपनी इच्छानुसार बोआई की। पड़ोसी गाँव के मुखिया ने अपने खेत से बचे बुआई योग्य ईख के टुक़डे दिये। नागण्णा नामक कृषक अपने खेत में ईख के टुकड़े बुआई की । अच्छी तरह फसल निकली। इसे देखकर कृषक ने फूल न समाया।

     एक दिन किसान प्रातःकाल खेत की ओर निकला तो देखा कि फसल के एक कोने में, ईख काटकर कोई खाकर नाश किया था। दूसरे दिन जाकर देखा कि फसल के दूसरे कोने में नाश हुआ था। इसे देखकर खेतिहर को बहुत दुख हुआ। इसको पता लगाने की दृष्टि से उसी रात में खेत के एक कोऩे में बैठकर इंतज़ार करने लगा।

      आधीरात में एक ऐरावत आकर ईख की फसल खाने लगा। जब इसे देखकर क्रोध से उसको मारने के लिए उसकी पूँछ पकड़ लिया तो तब वह आकाश की ओर तुरंत निकला, खेतिहर भी हाथी के साथ स्वर्ग पहुँचा।

      स्वर्ग की संपत्ति देखकर किसान अपने कुर्ता और घुटन्ना के जेब में भरने लगा। लालच से अपनी वल्ली में भी भरकर कमर में बाँध लिया।

      फिर हाथी निकलते देखकर उसकी पूँछ पकड़ लिया। हाथी सीधा भूलोक के खेतिहर के ईख-खेत में उतरा। तुरंत खेतिहर हाथी छोड़कर घर की ओर नौ दो ग्यारह हो गया। किसान की पत्नी लायी हई संपत्ति को देखकर पूछा- कहाँ से लाये हैं ? किसान ने अपनी पत्नी से सारे विचार कहा। सुनते ही पत्नी ने कहा ऐसा अवसर रहे तो जाइये मैं भी आपके साथ आती हूँ थैली में भरकर आयेंगे कहकर पति से शोर मचा दिया। इससे सारे लोग किसान के घर में आ गये । यह समाचार पड़ोसियों को भी पता चला। गाँव के लोग हम भी तुम्हारे पैर पकड़कर आते हैं और कुछ पैसे लाकर आराम से जीवनयापन कर सकते हैं कहने लगे।

      किसान को अपनी पत्नी के व्यवहार से एक ओर शर्म हुआ तो दूसरी ओर लोगों की याचना एक तरह से सिर दर्द का विषय बन गया।

       बिना विधि पूर्वक, आधीरात में गाँव के लोगों के साथ खेत के पास खेतिहर इंतजार करने लगा। ऐरावत आ गया। तुरंत उनमें से एक कंजूस शेट्टी था। वह मैं पहले कहते हुए, घुसकर हाथी की पूँछ पकड़ा। हाथी भी आकाश की ओर जाने लगा। अन्य सभी लोग एक के पैर दूसरे पकड़ने से आकाश से पृथ्वी तक लोगों का ताँता हुआ। उनमें से एक लँघड़ा था। वह बहुत अंत में था। उसने

       शेट्टी जी आप पहले हैं, स्वर्ग कितने धन लाना चाहते हैं ? इसके उत्तर के लिए लालच से इतना कहकर अपने दोनों हाथों को फैलाया। तत्क्षण ही सभी आकाश से भूमि पर पड़कर मिट्टी बन गये।

       इस घटना को देखनेवाले गाँव के अन्य लोग आधी छोड़ सारी को धावे, आधी रहे न सारी पावे। कहकर साँस छोड़ दिया। ऐरावत उस ओर आने की घटना उन्होंने फिर कभी नहीं देखा।

कन्नड में- डॉ.पी.के राजशेखर

हिंदी में- डॉ.एस.विजीचक्केरे

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Thursday 29 October 2015

डॉ. ए. पी. जे. अब्दुलकलाम

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           निधन के अवसर श्रद्धांजली समर्पण के लिए उनका यह छोटा सा परिचयः-

जन्मः अक्तूबर 15 1931 को रामेश्वरम के धनुष्कोटी में हुआ।

पिताःजैनुलाब्दि मरकयार

माताः आशियम्मा

शिक्षाः

         प्राथमिक शिक्षा अपने गाँव के स्कूल में हुई। माद्य़मिक शिक्षा रामनाथपुर के स्वार्ट्ज

हाईस्कूल में हुई। सन् 1950 त्रिची के सेंट जोसेफ कॉलेज में बी.एस्सी की उपाधि प्राप्त की।

सन् 1954 में इंस्ट्यूट ऑफ टैक्नालजी-मद्रास में इंजिनीयरिंग उपाधि प्राप्त की। अब्दुल कलाम

के लिए प्यारे गुरुजन-अयादुरै सोलोमन, टी.एन सेक्यूरिया और रामकृष्ण अय्यर थे।

अब्दुल कलाम की उपलब्धियाँ-

        सन् 1962 में भारतीय वैज्ञानिक संशोधन संस्था में अपनी सेवा आरंभ की। उसी साल केरल के

तुंबा में रॉकेट लॉंचिंग स्टेशन की स्थापना हुई।

सन् 1967 में रोहिणी मिसाइल आकाश की ओर उड़ाने में सफल हुए।

सन् 1980 एस.एल.वी मिसाइल की उड़ान।

सन्-1981 में पद्मभूषण पुरस्कार से पुरस्कृत है।

सन्-1982 में सेना संशोधन विभाग के निदेशक पद पर नियुक्त हुए।

सन् 1983 में मिसाइल निर्माण का आरंभ

सन् 1985 में त्रिशूल मिसाइल की उड़ान।

सन्-1987 में भारत से पद्मविभूषण से पुरस्कार।

सन्-1988 में पृथ्वी मिसाइल की उड़ान।

सन्-1989 अग्नी मिसाइल की उड़ान।

सन्-1990 में जादवपुर विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की मानद उपाधि दी गयी।

सन्-1991 में मुंबई विश्वविद्यालय से मानद डॉक्टरेट उपाधि।

सन्-1997 में भारत रत्न पुरस्कार द्वारा कलाम जी सम्मान

सन्-1998 में भारत-सरकार के वैज्ञानिक मार्गदर्शक के रूप में नियुक्ति।

सन्-2001 में चेन्नै के अन्न विश्वविद्यालय में तकनीकी और सामाजिक परिवर्तन विभाग में प्रेफेसर पद पर नियुक्त हुए।

सन्-2002 में भारत सरकार के राष्ट्रपति पद पर नियुक्त हुए।

सन्-2015 जुलाई 27 को इनका निधन हुआ।

संदर्भ-ग्रंथ-

1.भारत के सपना एपीजे अब्दुलकलाम

2.अग्नि की उड़ान

3.टर्निंग पाइंट

4.कलाम-कमाल

  डॉ.एस विजीचक्केरे

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कन्नड साहित्य मनीषि डॉ.पी.के.राजशेखर

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       कन्नड भाषा साहित्यकारों को हिंदी भाषा-भाषियों को परिचय कराना मेरी पहले से ही रुचि रही है। इसे साकर करने का अवसर अभी मिला है। इसके तहत कन्नड भाषा के लोकसाहित्यकारों में अग्रणी डॉ.पी.के.रजशेखर का एक छोटा सा परिचय देने के प्रयास आपके लोगों के सम्मुख है। इनका अभिरुचि विषय है कि बचपन से लोकसाहित्य सुनना-सुनाना,लोकसाहित्य को लिखित स्वरूप देना। इन्होंने कन्नड लोकसाहित्य को समृद्ध बनाने में अपूर्व सेवा की है। इसके अलावा साहित्य के विविध प्रकारों पर भी अपनी लेखनी चलायी है। ऐसे महान लोक साहित्यकार का परिचय कन्नड प्रेमी हदी अध्यापक मेरा सौभाग्य है।

        साहित्य की एक विधा लोकसाहित्य है। लोकसाहित्य के विद्वानों में डॉ.पी.के राजशेखर अग्रणी है। इनका जन्म मैसूर जिले के पिरियापट्टण तालुक में हुआ। इनके माता-पिता श्रीमती पुट्टम्मा और श्री पी.डी.केंपेगौडा है। ये बचपन से ही अध्ययन और अध्यापनों में संलग्न होकर अच्छे कवि, लोकगीत विद्वान,जानेमाने अध्यापक के रूप में चर्चित रहे।

       राजशेखर जी को लोकगीत क्षेत्र में अच्छी पकड होने के साथ-साथ अच्छे लोकगीत गायक के रूप में भी प्रख्यात है। लोकगीतों को पहले असहज रूप से गाया जाता था। लोकसहित्य को शास्त्रीय रूप से अध्ययन करना उसके विविध रूपों को संशोधन करना,लोकगीतों को सहज रूप से गाने के लिए मार्गदर्शन देने हेतु इनके द्वारा निर्मित होन्नारू लोकगीत गायन मंडली को एक ऐतिहासिक भूमिका है। यह मंडली लोकगीतों को सहज रूप में गाकर लोकप्रिय कराने के अलावा उनको अमरत्व देने के हित से गाओ मुत्तिनरगिणी,अव्वनिनदनी अपरंजी,कोगिलागी कूगुतियल्लो, उठकर आओ मुद्दु भैरुव,नक्करे नगलेळु,शरणु शरणु मादेश्वर को- आदि गीतों को सहज रूप में गाकर लोगगीतों के कैसटों के माध्यम से डॉ.पी.के.राजशेखर जी कन्नड लोकगीत परंपरा में अमर बने।  

     लोकगीत जैसे खेत में उत्साही किसान की तरह संशोधन द्वारा छात्रकाल में ही 1500 पृष्ठों का बडा महाकाव्य मले मादेश्वर नामक ग्रंथ की रचनाकर, प्रकाशित कर, कन्नड लोकगीत क्षेत्र को विश्व लोकगीत क्षेत्र में स्थापित करने का श्रेय डॉ.पी.के राजशेखर जी को जाता है। लोकगीतों की परंपरा बचने के पीछे डॉ.पी.के. राजशेखर जी का अविरत परिश्रम है इसे रूभी विद्वान मानते हैं। विद्वानों का मानना है -‘हमारे लोकगीत, साहित्य-सौध का सिर मौर है। इसे ही1973  में राज्य साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है।

       लोकगीत क्षेत्र में अबतक इनकी लगभग ४० से अधिक सृजनशील कृतियाँ का प्रकाशित हो चुकी है। लोकगीत श्रेत्र में इनकी देन के स्मरण में कर्नाटक लोकगीत और यक्षगान अकादमी ने १९९६ में लोकविद् पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया है। इतना ही नहीं अनेक संस्थाएँ लोकगीत साहित्यभूषण,लोकगीत साहित्यरत्न,लोकगीत गायकरत्न,मंड्या जवरप्पगौ डा स्मारक के रूप में समाजमुखी पुरस्कार,मैसूर लॉयन्स संस्था की ओर से दक्षिण केसरी पुरस्कार, लोकसाहित्य रत्नभंडार, लोकसाहित्य संगीत रत्नाकर, कन्नड के एल्यास्लोनराट,लोक साहित्य के सार्वभौम -आदि इनको प्राप्त पुरस्कार हैं।

      इनका और एक महाकाव्य है-लोकसाहित्य का महाभारत यह भी प्रसिद्ध रचना है। लोकसाहित्य क्षेत्र को इनकी देन अपूर्व है। इन्होंने आजतक कविता,भाषाविज्ञान, लोकसाहित्य, बाल साहित्य, जीवनी, अनुवाद, संपादन-इस प्रकार कन्नड साहित्य के विभिन्न प्रकारों में ७० से अधिक ग्रंथों को प्रकाशित किया है। कन्नड लोक साहित्य क्षेत्र में इनकी अपूर्व सेवा को पहचानकर कर्नाटक सरकार ने २००५-०६ वर्ष में कर्नाटक राज्योत्सव पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया है।

      इनके द्वारा प्रदत्त लोकसाहित्य क्षेत्र की सेवा को पहचानकर श्री आदिचुंचनगिरि महासंस्थान ने २००८ में चुंचनाश्री पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया है।

      अमेरिका के चिकागो में संपन्न पाँचवाँ अक्का कन्नड सम्मेलन में कन्नड लोकगीतों को गाकर विश्वस्तर की सभा में लोगीतों की मिठास आस्वादीत करके वहाँ के कन्नड प्रेमियों को कराया है।

      इनकी महान उपलब्धि को ध्यान में रखकर इनके शिष्यगण, साथी,दोस्त,विद्वान और अभिमानी लोगों ने मिलकर कन्नड भाषा में जानपदजोगी नामक अभिनंदन ग्रंथ द्वारा सम्मानित किया है।

इनकी रचनाएँ-

प्रकाशित लोकगीतों के कैसेटः-

               १.मले मादेश्वर।

              २.हाडो मुत्तिनरगिणी

             ३.शरणु-शरणु मादेश्वरगे

              ४.एद्दु बारो मुद्दुभैरुव

             ५.कोगिलेगागी कूगुतियल्लो

कविताएँ-

             मानसदीप्ति(१९६६),प्रतिबिंब (१९६८),स्वतिमुत्तु, नानल्लद नानु(२००१)

भाषाशास्त्रः-

             पदविवरण कोश,पदसंपद

बालसाहित्यः-

                   सोने का फर,अभिनव कालिदास,विद्याविशारदे कंति,दलित भारत।

लोकसाहित्यः-

                  पहाड़ की चामुंडी,लोकसाहित्य का रामायण,मागडी केंपेगौडा,चुनेहुए लोकगणित-आदि।

संपादनः-

                   शिवसंपद,रजतश्री,संजीविनी,मिट्टि के दिये,

जीवनी साहित्यः-

                    समाज सेवारत्न (कं.रा.गोपाल).वीर योद्धा बेल्लियप्पा ।

कथा साहित्यः-

                   पुरुष पुण्य और नारी भाग्य -लोकोक्ति विश्लेषण युक्त कहानियाँ-आदि।

इनको प्राप्त पुरस्कारः-

                  १.लोकगीत -महाकाव्य मले मादेश्वर कृति के लिए सन् १९७३ में कर्नाटक राज्य साहित्य अकादमी पुरस्कार।

                   २.लोकसाहित्य का वीरकाव्य पिरियापट्टण का युद्ध कृति के लिए सन् १९९० में करनाटक राज्य जनपद और यक्षगान अकादमी पुरस्कार।

                   ३.करपाल बसव पुराण कृति के लिए सन् १९९६ में करनाटक राज्य जानपद और यक्षगान अकादमी पुरस्कार।

                  ४.पदविविरण कोश के लिए सन् १९९३ में विभाग से कन्नड और संस्कृति प्रशंसनीय पुरस्कार।

                 ५.कर्नाटकल जनपद और यक्षगान अकादमी से सन् १९९८ में लोकसाहित्य विद् का पुरस्कार।

                ६.कर्नाटक सरकार से सन् २००५ में सुवर्ण कर्नाटक राज्योत्सव पुरस्कार।

                ७.मंड्या के पी.एन जवरप्पगौडा प्रतिष्ठान की ओर से सन् २००५ में समाजमुखी पुरस्कार।

               ८.दक्षिण प्रदेश लॉयन्स संस्था की ओर से दक्षिण साहित्य के केसरी पुरस्कार।

              ९.बौप्पनगौडपुर के मंटेस्वामी मठ की ओर से सन् २००४ में श्रेष्ठ लेखक पुरस्कार ।

              १०. सन् २००५ में मैसूर से नवज्योति कला पुरस्कार ।

              ११.फारूखिया विद्या संस्था की ओर से सन् २००० में लोकासहित्य का रत्नभंडार का पुरस्कार।

              १२.साथियों का मंडली तरिकेरे की ओर से सन् १९९७ में कनकश्री पुरस्कार।

              १३.पिरियापट्टण की ओर से लोकसाहित्य का कलानिधि पुरस्कार।

               १४. उम्मत्तूर द्वरा सन् १९९५ में लोकसाहित्य का गायकरत्न पुरस्कार ।

               १५.पिरियापट्टण से सन् १९७४ में लोकसाहित्य भूषण पुरस्कार।

               १६. सन् २००६ में लोकसाहित्य-महाभारत कृति को प्रसार भारती पुरस्कार।

               १७. बसवेश्वर देवालय निर्माण समिति गोरहल्ली की ओर से सन् २००६ में लोकसाहित्य का सार्वभौम पुरस्कार।

          १८.मैसूर के होटेल मालिकों की ओर से सन् २००५ में सुवर्ण कर्नाटक पुरस्कार ।

           १९.सन् २००५ में ओक्कलिग जागृति सभा पुरस्कार,मानस गंगोत्री पुरस्कार।

           २०.मैसूर के ऑफिसर्स संघ की ओर से सन् २००५ में कन्नड राज्योत्सव पुरस्कार।

           २१.सन् २००५ में मैसूर में कर्नाटक होयसल पुरस्कार,होयसल कन्नड संघ पुरस्कार।

          २२.सन् २००८ में कर्नाटक लोक साहित्यऔर यक्षगान अकादमी रजतमहोत्सव पुरस्कार

          डॉ.एस.विजीचक्केरे

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Monday 26 October 2015

‘जनपदलोक’ निर्माता एच.एल.नागेगौडा

 

    

    इनका जन्म कर्नाटक राज्य के मंड्या जिले के नागमंगल तालुक के हरगनाहल्लूी नामक गाँव में सन् 1915 में हुआ। इनका पारिवारिक नाम दोड्डमने है। इनकी आरंभिक शिक्षा नागतिहल्ली में हुई। माध्यमिक शिक्षा चन्नरायपट्टण और बेंगलूर में हुई। इन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय से सन् 1937 में बी.एस्सी की उपाधि प्राप्त की । पुणे विश्वविद्यालय से सन् 1939 में एल.एल.बी की उपाधि प्राप्त की । प्रारंभ में न्यायाधीश बनकर अपनी सेवा आरंभ की ।

     कन्नड भाषा के लोकसाहित्य को इनकी देन अपार है। इन्होंने कन्नड भाषा में 30 से अधिक ग्रंथों की रचना की है। इनका बेट्ट से बट्टलू नामक कृति का अनुवाद हिंदी भाषा में हुआ है। इनको उपन्यासकार, कवि लोककथाकार, अऩुवादक, आत्मकथाकार-आदि अनेक नामों से जाना जाता है। कन्नड भाषा साहित्य को इनकी सेवा अपार ।

     इनकी रचनाएँ हैं-प्रवासी कंड इंडिया, सरोजिनी देवी, भूमिगे बंद गंदर्व, खैदिगळ कथेगळु, नानागुवे गीजुगन हक्कि, सोबाने चिक्कम्मन पदगळु, नागसिरि-आदि।

     नागेगौडा जी का महत्वपूर्ण कृति है जानपदकोश । इसे विश्वकोश के बराबर अमरकृति माना जाता है। जानपद जगत्तु नामक त्रैमासिक संपादक बनाकर लोकसाहित्य को गाँव से लेकर दिल्ली तक पहुँचाने का गौरव इनको मिलता है।

    नागेगौडा जी  जानपद लोक  के निर्माता है। इसमें 5000 लोक कलाकृतियाँ हैं। यह रामनगर के निकट है । यह ग्रामीण   संस्कृति के विकास के लिए और लोककथा कार्यक्रमों के प्रकाशमान के लिए बहुत उपयुक्त है।

      नागेगौडा जी के द्वारा कन्नड साहित्य और संस्कृति को किये गये विविध क्रियाकलापों को देखकर विविध संस्थाओं ने इनको गौरव दिखाने के उद्देश्य से विविध पुरस्कार दिये हैं।

     इनको प्राप्त पुरस्कार और सम्मान हैं-कर्नाटक साहित्य अकादमी पुरस्कार, कर्नाटक राज्योत्सव पुरस्कार, कर्नाटक जनपद और यक्षगान अकादमी पुरस्कार और कर्नाटक नाटक अकादमी फेलोशिप्–आदि।

     इस प्रकार इनकी सेवा को देखकर सन् 1995 में मुदोळ में संपन्न 64वाँ कन्नड साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में चुनकर इनको अपार आदर दिखाया गया। यह भी जनपदलोक निर्माता को प्राप्त सम्मान है।

      इनका निधन सन् 2005 को हुआ।

डॉ.एस.विजीचक्केरे
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Wednesday 21 October 2015

सर्वनाम

संज्ञा के पुनारावृत्ति के बदले जिसका प्रयोग किया जाता है,उसे सर्वनाम कहते हैं।

जैसे- मैं, हम, तू, तुम, आप, वह, वे, यह, ये-आदि।

 

सर्वनाम के भेद

सर्वनाम के छः भेद हैं-

1.पुरुषवाचक सर्वनाम

2.निजवाचक सर्वनाम

3.निश्चयवाचक सर्वनाम

4.अनिश्चयवाचक सर्वनाम

5.प्रश्नवाचक सर्वनाम

6.संबंधवाचक सर्वनाम

 

1.पुरुषवाचक सर्वनामः

       जो सर्वनाम शब्द, बोलनेवाले, कहनेवाले या सुननेवाले का बोध कराये, उसे पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं।

पुरुषवाचक सर्वनाम के तीन भेद हैं-

क.उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम (मैं,हम)

ख.मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम (तू,तुम)

ग.अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम (वह,वे,यह,ये)

 

क.उत्तम पुरुषवाचक सर्वनामः

जो सर्वनाम शब्द बोलनेवाले के लिए प्रयुक्त होता है, उसे उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं।

जैसेःमैं और हम

 

ख.मध्यम पुरुषवाचक सर्वनामः

जो सर्वनाम शब्द सुननेवाले के लिए प्रयुक्त होता है, उसे मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं।

जैसेः तू और तुम

 

ग.अन्य पुरुषवाचक सर्वनामः

जो सर्वनाम शब्द, अन्यों के संबंध में बात करने के लिए उपयुक्त होता है,उसे अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं।

जैसेः वह, वे, यह,ये-।

 

2.निजवाचक सर्वनामः

जो सर्वनाम शब्द, अपनेपन के लिए प्रयोग होता है,उसे सर्वनाम कहते हैं।

जैसेःआप

 

 

3.निश्चयवाचक सर्वनामः

जिस सर्वनाम का प्रयोग से किसी निश्चित वस्तु का बोध हो,उसे निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं।

जैसेःवह, यह

 

4.अनिश्चयवाचक सर्वनामः

जिस सर्वनाम शब्द का प्रयोग किसी अनिश्चित प्राणी या प्राणी के बोध के लिए प्रयोग होता है,उसे अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं।

जैसे- कोई

 

 

5.संबंधवाचक सर्वनामः

जिस सर्वनामक का प्रयोग किसी संबंध सूचित करने के लिए प्रयोग हुए तो उसे संबंधवाचक सर्वनाम कहते हैं।

जैसे-जो और सो।

 

 

6.प्रश्नवाचक सर्वनामः

जिस सर्वनाम शब्द का प्रयोग से प्रश्न का बोध होता है, उसे प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते हैं।

जैसेःकौन

डॉ.एस विजीचक्केरे
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जयशंकर प्रसाद

   image                                                                                                              आधुनिक हिंदी के श्रेष्ठ कवि जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के एक धनी परिवार में सन् 1889 में हुआ था।

उनके पिता देवी प्रसाद थे।

   प्रसाद जी का बचपन बड़े सुख में बीता, किंतु पिता की मृत्यु के बाद उनको विपत्तियों का सामना करना पड़ा।

   केवल 48 वर्ष की अल्पायु में सन् 1937 में उनका निधन हो गया।

    उन्होंने हिंदी के अलावा संस्कृत, अंग्रेजी, भाषाओं के साहित्य का अध्ययन किया था।

    कानन कुसुम उनका पहला काव्य-संग्रह है।

     झरना,आँसू,लहर,कामायनी,आकाशदीप,आँधी,चंद्रगुप्त,ध्रुवस्वामिनी,कंकाल, इरावती,तितली,आदि उनकी कुछ प्रमुख रचनाएँ हैं।

      प्रस्तुत कविता को उनके कानन कुसुम काव्य-संकलन से लिया गया है।

 

SOURCE: HINDI VALLARI,10TH  STD, KTBS,DSERT,BANGALURU

संपादकःडॉ.एस विजीचक्केरे
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संज्ञा

संज्ञा उसे कहते हैं, जो कोई वस्तु, स्थान,भाव,समूह और द्रव पदार्थों के नाम सूचित करता है।

जैसेः

गणेश

लड़की

बचपन

पुलिस

दही

संज्ञा के भेदः-

संज्ञा के 5 भेद हैं-

1.व्यक्तिवाचक संज्ञा

2.जातिवाचक संज्ञा

3.भाववाचक संज्ञा

4.समूहवाचक संज्ञा

5.द्रव्यवाचक संज्ञा

1.व्यक्तिवाचक संज्ञाः

             जिस शब्द से एक ही व्यक्ति,वस्तु और स्थान के नाम का बोध हो, उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं।

उदाः रमेश, कंप्यूटर, मैसूर- आदि

2.जातिवाचक संज्ञाः-

             जिस शब्द से किसी जाति या समूह का बोध हो, उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं।

जैसेःस्त्री,पेड़-आदि।

3.भाववाचक संज्ञाः-

             जिस शब्द से किसी भाव का बोध हो, उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं।

जैसेः बचपन,बूढ़ापन,सुंदरता-आदि।

4.समूहवाचक संज्ञाः-

             जिस शब्द से किसी समूह का बोध हो, उसे समूहवाचक संज्ञा कहते हैं।

जैसेः कक्षा, सेना,मंडली-आदि।

5.द्रव्यवाचक संज्ञाः-

            जिस शब्द से किसी द्रव्य पदार्थ का बोध हो, उसे द्रव्यवाचक संज्ञा कहते हैं।

जैसेःपानी, सोना, चाँदी-आदि।

डॉ.एस विजीचक्केरे
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शब्द विचार

शब्दः- एक या एक से अधिक सार्थक ध्वनियों के समूह को शब्द कहते हैं।

                        जैसेः काम,जा मामा,तू-आदि।

शब्द अर्थ की दृष्टि से दो प्रकार होते हैं।

1.सार्थकः जिन शब्दों का कोई अर्थ होता है,उसे सार्थक कहते हैं।

जैसेः राजा, रानी, पानी

2.निर्थकः जिन शब्दों का कोई अर्थ नहीं होता है,उसे निर्थक कहते हैं।

जैसेः नीपा,बदी,अल-आदि

विकार की दृष्टि से शब्द दो प्रकार के होते हैं।

1.विकारी

               उन शब्दों को विकारी कहते हैं,जो शब्द लिंग,वचन, कारक और काल के अनुसार परिवर्तित होते हैं।

जैसेः चलना शब्द चलता, चलती, चलेगा, चलेगी, चलेंगे।

2.अविकारी

               उन शब्दों को अविकारी कहते हैं, जो शब्द लिंग,वचन, कारक और काल के अनुसार नहीं बदलते हैं।

जैसेःधीरे-धीरे,कब,जब,तब,हाय,परंतु, और,तथा लेकिन किंतु-आदि।

विकारी शब्दों के भेदः-

विकारी शब्दों के चार भेद हैं-

1.संज्ञा

2.सर्वनाम

3.विशेषण

4.क्रिया

1.संज्ञाः

         नाम सूचित शब्द को संज्ञा कहते हैं।

जैसेः रमेश,लड़का,अच्छा,सेना,पानी-आदि।

2.सर्वनामः

            नाम बदले जिस शब्द का प्रयोग किया जाता है। उसे सर्वनाम कहते हैं।

जैसेःमैं,हम,तू,तुम,आप,वह,वे,यह,ये,कौन,कोई-आदि।

3.विशेषणः

            जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताता है,उसे विशेषण कहते हैं।

जैसेः सुंदर, बुरा, छोटा, बड़ा,नीला, हरा-आदि

4.क्रियाः

           जिस शब्द से कोई काम होने या पाने का बोध हो, उसे क्रिया शब्द कहते हैं।

जैसेःखाना,पीना,जाना,उठना,चलना,धोना-आदि।

अविकारी शब्द के चार भेद होते हैं-

1.क्रिया विशेषण

2.संबंधबोधक

3.सम्मुच्चयबोधक

4.विस्मयादि बोधक

1.क्रिया विशेषण

       जो शब्द क्रिया की विशेषता बताता है,उसे क्रियाविशेषण नाम से जाना जाता है।

जैसेःअधिक,धीरे-धीरे,तेज-आदि

2.संबंधबोधकः

      जो शब्द संबंध सूचित करता है,उसे संबंधबोधक कहते हैं।

जैसेःऊपर,नीचे,के सामने,की ओर-आदि

3.समुच्चय बोधक

        जो शब्द दो शब्द या वाक्य के बीच आकर संबंध स्थापित करता है, उसे समुच्चयबोधक कहते हैं।

जैसेः और,तथा,या,लेकिन,कि-आदि।

4.विस्मयादिबोधकः

       जो शब्द हर्ष,भय,शोक-आदि भावसूचक के लिए प्रयुक्त होते हैं,उन्हें विस्मयादिबोधक कहते हैं।

जैसेःअरे,शाबास,हाय,अच्छा,हे-आदि

डॉ.एस.विजीचक्केरे
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Tuesday 20 October 2015

हिंदी व्याकरण

 

व्याकरण  और  उसके विषय

                 व्याकरण को भाषा संबंधित शास्त्र कहते हैं।  व्याकरण से भाषा से संबंधित शुद्ध स्वरूप की जानकारी मिलती है।

व्याकरण से तीन विषयों की जानकारी मिलती हैं।

1.वर्ण विचार

2.शब्द विचार

3.वाक्य विचार

1.वर्ण विचारः इसमें वर्णों से संबंधित समस्त विचारों से अवगत होते हैं। इसमें वर्णों के निर्माण,भेद और उच्चारण आदि के संबंध में विवेचन किया जाता है।

2.शब्द विचारः इसके अंतर्गत शब्दों की व्युत्पत्ति, शब्दों के निर्माण, तथा उसके भेदों की जानकारी का विवेचन किया जाता है।

3.वाक्य विचारः इसमें वाक्य रचना से संबंधित विभिन्न आयामों पर विवेचन किया जाता है।

वर्ण विचार

                     वर्ण,उस ध्वनि को कहते हैं, जो भाषा की सबसे छोटी इकाई है। अर्थात जो भाषा के सबसे छोटी ध्वनि है जिसे जो लिखित रूप मिलता है, उसे वर्ण कहते हैं।

                    उदाः इ, क्, य्, श्.

                   वर्णमालाः एक भाषा में प्रयुक्त सभी वर्णों के समूह को वर्णमाला कहते हैं। वर्णमाला को अक्षर माला भी कहते हैं। हिंदी भाषा में प्रयुक्त वर्ण निम्नलिखित हैः

वर्णमालाः

अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ अं अः – स्वर कहते हैं।

क ख ग घ ङ- कवर्ग

च छ ज झ ञ–चवर्ग

ट ठ ड ढ ण- टवर्ग

त थ द ध न- तवर्ग

प फ ब भ म- पवर्ग

य र ल व – अंतस्थ

श ष स ह- ऊष्म

क्ष त्र ज्ञ श्र – संयुक्त व्यंजन

वर्णमाला के दो भेद हैं

1.स्वर

2. व्यंजन

1.स्वर-

               स्वर उन वर्णों को कहते हैं, जो वर्ण उच्चारण की दृष्टि से स्वतंत्र है।

उदाः अ आ इ उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ अं अः

2.व्यंजन

               व्यंजन उन वर्णों को कहते हैं, जो वर्ण परतंत्र हैं अर्थात इनका उच्चारण के लिए दूसरे वर्ण की सहायता आवश्य होता है। उदाः

क ख ग घ ङ- कवर्ग

च छ ज झ ञ–चवर्ग

ट ठ ड ढ ण- टवर्ग

त थ द ध न- तवर्ग

प फ ब भ म- पवर्ग

य र ल व – अंतस्थ

श ष स ह- ऊष्म

स्वर के भेदः

स्वर के दो भेद होते हैं-

मूल स्वर और संधि स्वर

1.मूल-स्वरः अ, इ, उ-इनको मूल स्वर कहते हैं। इनको उच्चारण के कालमान के आधार पर ह्रस्व स्वर कहते हैं।

2.संधि-स्वरः जो स्वर दो स्वरों के मेल से होते हैं,उन्हें संधिस्वर कहते हैं। जैसे- आ ई ऊ ए ऐ ओ औ । उच्चारण के कालमान के आधार पर इनको दीर्घ स्वर कहते हैं।

संधि स्वरः संधि स्वर के दो भेद होते हैं।

दीर्घ स्वर और संयुक्त स्वर

दीर्घ स्वरः आ ई ऊ

संयुक्त स्वरः ए ऐ ओ औ

योगवाह-अं अः वर्णों को योगवाह कहते हैं।

योग का अर्थ है - दो भिन्न-भिन्न जातियों के वर्णों के मेल को योगवाह कहते हैं।

अ+ म्– अं

अ+ ह- अः

व्यंजन के भेदः

व्यंजन के दो भेद होते हैः

1.वर्गीय-व्यंजन

2.अवर्गीय-व्यंजन

1.वर्गीय व्यंजनः उन वर्णों को वर्गीय व्यंजन कहते हैं,जो वर्ण उच्चारण के आधार विभाजन किया गया है। वर्गीय व्यंजनों को स्पर्श व्यंजन भी कहते हैं। जैसे

क ख ग घ ङ

च छ ज झ ञ

ट ठ ड ढ ण

त थ द ध न

प फ ब भ म

वर्गीय व्यंजन के भेदः

प्राणत्व के आधार पर वर्गीय व्यंजनों के दो भेद हैं-

1.अल्पप्राण

2.महाप्राण

1.अल्पप्राणः जिन व्यंजनों के उच्चारण में प्राण, महाप्राण व्यंजनों की तुलना में कम लगता है, उन्हें अल्पप्राण कहते हैं। वर्गीय व्यंजन के प्रथम,तृतीय और पंचम वर्णों को अल्पप्राण कहते हैं।

2.महाप्राणःजिन व्यंजनों के उच्चारण में प्राण, अल्पप्राण व्यंजनों की तुलना में अधिक लगता है, उन्हें महाप्राण कहते हैं। वर्गीय व्यंजन के द्वितीय और चतुर्थ वर्णों को महाप्राण कहते हैं।

2.अवर्गीय व्यंजन के भेद

अवर्गीय व्यंजन के दो भेद हैं

1.अंतस्थ्य

2.ऊष्म

1.अंतस्थ्य व्यंजनः उन वर्णों को अंतस्थ्य व्यंजन कहते हैं। जिन वर्णों का उच्चारण स्वर और व्यंजन के बीच होता है, उन्हें अंतस्थ्य व्यंजन कहते हैं। अवर्गीय व्यंजन के प्रथम चार अंतस्थ्य व्यंजन हैं।

2.ऊष्म व्यंजनः जिन व्यंजनों के उच्चारण में सुरसुराहट सी होती उन्हें ऊष्म व्यंजन कहते हैं। अवर्गीय व्यंजन के अंतिम चार वर्ण ऊष्म व्यंजन कहते हैं

                                                                                                              

 

डॉ.एस विजीचक्केरे

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Monday 19 October 2015

कन्नड भाषा में द्वितीय ज्ञानपीठ साहित्यकार द.रा.बेंद्र

          कन्नड भाषा के ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त दूसरे ज्ञानपीठ साहित्यकार श्री दत्तात्रेय रामचंद्र

बेंद्रे जी हैं।बेंद्रे जी का जन्म 31 जनवरी सन् 1893 ई को धारवाड  में हुआ। बेंद्रे जी के पिताजी

रामचंद्र भट्ट और माता अबव्वा या अंबिका। बेंद्रेजी जी की स्कूली शिक्षा धारवाड में विक्टोरिया

स्कूल में हुई। मेट्रिक के बाद पुणे के प्रसिद्ध फर्ग्यूसन कॉलेज से उन्होंने बी.ए. की उपाधि प्राप्ति

की थी। फिर लौटकर विक्टोरिया स्कूल में ही अध्यापक बन गये। पश्चात् नैशनल कॉलेज में

काम किया।सन् 1944 में सोल्लापुर के डी.ए.वी. कॉलेज में कन्नड प्राध्यापकबने। उसके बाद

धारवाड आकाशवाणी केंद्र के साहित्य सलाहकार के रूप में काम किया। 26 अक्तूबर 1981 ई.को

बेंद्रे जी अमर हो गये।

साहित्य साधनाः

काव्यः-

 

कृष्णकुमारी

 

मूर्ति मत्तु कामकस्तूरी

 

उय्याले

नादलीले

मेघदूत

हाडु-पाडु

गंगावतरण सूर्यपान

अरळु-मरळु़

हृदय-समुद्र

मुक्तकांत

चैत्यालय

जीवलहरी

नमन

संचय

उत्तरायण़

मंजुल मल्लिगे

यक्ष-यक्षी

नाकु-तंती

मर्यादे

श्रीमाता

बा हत्तर

इदु नभोवणी

विनय

मत्तेल श्रावण बंतु

ओलवे नम्म बदुकु

चतुरोक्ति

पराकी

काव्य वैखरी

बालबोधे

ता लेखनिके ता दौती

नाटकः

गोल

तिरुकर पिडुगु

सायो आट

जात्रे

हळेय गेणेयरु

देव्वन मने

नगेय होगे

उद्धार

मंदी मादिवी

मंदी मनी

मक्कळु ओडिगेमने होक्करे

शोभन

आतर-ईतर

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Wednesday 14 October 2015

भाषा वैज्ञानिक डॉ.के.केंपेगौडा

   001   रामनगर जिले जन्नपट्टण तालुक के ब्याडरहल्ली नामक गाँव में दिनांक-15-08-1939 को इनका जन्म हुआ। प्राथमिक शिक्षा अपने गाँव में ही हुई। माध्यमिक शिक्षा निकट के शेट्टिहल्ली नामक गाँव में हुई। बाद में उच्च माध्यमिक शिक्षा चन्नपट्टण में हुई। इंटरमीडियट  की शिक्षा मैसूर के युवाराजा कॉलेज से प्राप्ति के बाद मैसूर के  महाराजा कॉलेज में बी.ए की उपाधि प्राप्ति की। एम. ए.(हिंदी) की उपाधि  मैसूर विश्वविद्यालय से प्राप्ति की। इन्होंने पूना के डेकन कॉलेज में भाषा-विज्ञान विषय में एम.ए. की उपाधि प्राप्ति की।

      मैसूर विश्वविद्यालय के कन्नड अध्ययन संस्था,मानस गंगोत्री, मैसूर, यहाँ  भाषा विज्ञान के अध्यापक के रूप में अपने अध्यापन की सेवा प्रारंभ की।  उसी विश्वविद्यालय के रीडर,प्राध्यापक,कुवेंपु कन्नड अध्ययन संस्था के निदेशक के रूप में अपनी सेवा की है,इसके अलावा  युजीसी के एमरिटस् प्राध्यापक के रूप में भी सेवा करके अवकाश प्राप्त कर चुके हैं।

       मैसूर विश्वविद्यालय में मानसगंगोत्री के कन्नड विभाग में   1965  में  संशोधक के रूप में अपनी सेवा प्रारंभ करके  केंपेगौडा जी सन्  1968-70 तक महाराजा कॉलेज में प्राध्यापक  थे। 1970 में कन्नड अध्ययन विभाग में भाषा विज्ञान के अध्यापक के रूप में नियुक्त हुए। वहीं इरुळर भाषा के प्रति  प्रो.हा.मा.नायक के मार्गदर्शन में पीएच.डी. की उपाधि सन् 1974 में  प्राप्ति की। सन् 1980-1987 तक प्राध्यापक के रूप में सेवा करके,सन् 1995 में कुवेंपु कन्नड अध्ययन संस्था के  निदेशक बन गये। कुछ समय के लिए मैसूर विश्वविद्यालय के प्रसारंग के निदेशक भी बन गये थे।

        अध्यापन के साथ-साथ संशोधन प्रवृत्ति अपनाकर डॉ.के.केंपेगौडा जी अब तक 40 से अधिक ग्रंथों की रचना की हैं। 200 से अधिक संशोधन प्रबंधों की रचना करके, भाषा विज्ञान क्षेत्र को इन्होंने अपार   देन दिया है। डॉ. के केंपेगौडा जी के सामान्य भाषा विज्ञान ग्रंथ के लिए सन् 1995 में मैसूर विश्वविद्यालय ने डी.लिट.की उपाधि देकर सम्मानित किया है। सनेट, सिंडिकेट, डीन बनकर, परीक्षा विभाग और अध्ययन विभाग के अध्यक्ष बनकर,इसके अलावा सदस्य बनकर इन्होंने  काम किया है। डॉ.के .केंपेगौडा जी के भाषा-विज्ञान के ग्रंथ विद्यार्थी,संशोधकों को बहुत उपयुक्त होते हैं। डॉ.के.केंपेगौडा जी बुजुर्ग भाषा-वैज्ञानिक कहना अतिशयोक्ति नहीं है।

        प्रो.के.केंपेगौडा को कोई पुरस्कार या सम्मान की रुचि नहीं थी। फिर भाषा-विज्ञानक क्षेत्र में इनकी उपलब्धि  को देखकर मंड्या कर्नाटक संघ-डॉ.हा.मा.नायक जी के पुरस्कार से सम्मानित किया है।  अपने गुरु के नाम से सर्वप्रथम पुरस्कार प्राप्त मैं बुहुत धन्य  हूँ  कहते  है प्रो.केंपेगौडा जी।

रचनाः- डॉ.एस.विजीचक्केरे

संदर्भः1.कन्नड प्रौढ व्याकरण।

          2.भाषा विज्ञान परिचय

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Tuesday 13 October 2015

कन्नड भाषा में प्रथम ज्ञानपीठ कवि श्री कुवेंपु

           श्री कुवेंपु जी कर्नाटक में ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त करनेवाले प्रथम साहित्यकार है। श्री कुवेंपु जी  का पूरा नाम है कुप्पळ्ळी  उनके गाँव का नाम है, वेंकटप्पा उनके पिताजी का और पुट्टप्पा खुद का। तीनों के प्रथमाक्षरों से ‘कुवेंपु’ नाम बन पड़ा है और वे इसी नाम से प्रसिद्ध है। उनकी माता जी का नाम सीतम्मा था। श्री कुवेंपु जी का जन्म 29 दिसंबर 1904 को हुआ। उनके पिताजी शिवमोग्गा जिले के तीर्थहळ्ळी तालुक के कुप्पळ्ळि नामक गाँव के निवासी थे।

          श्री कुवेंपु जी की प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा शिवमोग्गा जिले में हुई। उच्च शिक्षा मैसूर में प्राप्त की। उन्होंने मैसूर के महाराजा कॉलेज में बी.ए.,एम.ए. की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद वे मैसूर विश्वविदयालय के कन्नड विभाग में प्रवक्ता बने और कालक्रम में उसके अध्यक्ष बने।

          लगभग बारह साल के बाद वे मैसूर विश्वविद्यालय के उपकुलपति हुए। सन् 1960  में उन्होंने अवकाश प्राप्त किया। सन् 1996  में मैसूर में उनका देहांत हुआ।

साहित्यिक रचनाएँ-

*.  कविता संकलनः

1.कोळलु  (बाँसुरी)

2.पांचजन्य

3.कलासुंदरी

4.अग्निहंस

5.कृत्तिके

6.पक्षिकाशी

7.नविलु (मोर)

8.कोगिले मत्तु सोवियत रश्या

9.बापूजीगे बाष्पांजली

10.जेनागुवा

11.चंद्रमंचके बा चकोरी

12.इक्षु गंगोत्री

13.अनिकेतन

14.अनुत्तरा

15.मंत्राक्षते

16.प्रेम काश्मीर

17.षोडशी

18.कुटीचाक

19.प्रेत-क्यू

20.कदरडके

21.कन्नड डिण्डिम

22.होन्न होत्तरे

23.कोनेयतेने मत्तु विश्वमानव संदेश

*.कथात्मक काव्यः

1.कथन कवनगळु     2.समुद्र लंघन

*.प्रगीतः

1.श्री स्वातंत्र्योदय महाप्रगाथा

*.महाकाव्य

1.श्री रामायण दर्शनम्

*.खंडकाव्यः

1.चित्रांगदा

2.महादर्शन मत्तु प्रायश्चित्त

*.पद्यात्मक गद्य

1.किंकिणी

*.नाटकः

1.यमन सोलू

2.जलगार

3.बिरुगाळि

4.वाल्मीकिय भाघ्य

5.महारात्री

6.श्मशानकुरुक्षेत्रम्

7.शूद्र तपस्वी

8.रक्ताक्षी

9.बेरळ्गे कोरळु

10.बलिदान

11.चंद्रहास

12.कानीन

*.उपन्यासः

1.कानूरु हेग्गडति

2.मलेगळल्लि मदुमगळु

*.कहानी-संग्रहः

1.सन्यासी मत्तु इतर कथेगळु

2.नन्न देवरु मत्तु इतर कथेगळु

3.कथेगळोडने आरंभदल्ली

*.निबंध संग्रहः

1.मलेनाडिन चित्रगऴु

2.षष्टी नमन

*.बाल साहि्त्यः

1.अमलन कथे

2.हाळूरु

3.मोडण्णन तम्म

4.बोम्मनहळ्ळि किंदरी जोगी

5.नन्न गोपाल

6.नन्न मने

7.मरि विज्ञानी

8.मेघपुरी

9.नरिगळिगेके कोडिल्ल

*.भाषण-संग्रह

1.साहित्य-प्रचार

2.विचार क्रांतिगे आह्वान

*.समालोचन(संग्रह)

1.काव्य विहार

2.इत्यादि

3.विभूति

4.द्रौपदिय श्रीमुडी

5.रसो वै सः

6.तपोनंदन

*.जीवनीः

1.स्वामी विवेकानंद

2.श्री रामकृष्ण परमहंस

*.अनुवादः

1.वेदांत

2.जनप्रिय वाल्मीकि रामायण

3.गुरुनोडने देवरेडिगे

*.आत्मकथाः

1.नेनपिन दोणियल्ली भाग-1 और भाग-2

                                                                                                 संपादकः   डॉ.एस विजीचक्केरे

 

संदर्भः डॉ.बी रामसंजीवय्या, अभिनंदन ग्रंथ-संजीवनी,

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कन्नड साहित्यकार नाडोज देजगौ

dejagow                       देवेगौडा जवरेगौडा का संक्षिप्त नाम देजगौ है। इनका जन्म रामनगर जिले के चन्नपट्टण तालुक के चक्केरे नामक गाँव में हुआ। पिता देवेगौडा और माता चेन्नम्मा, गरीब किसान थे। देजगौ ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गाँव में पूरी की। माध्यमिक शिक्षा चेन्नपट्टण के हाईस्कूल में पूरी की। बेंगलूर में इंटरमीडियट शिक्षा के उपरांत सन् 1941 में बी.ए.की उपाधि प्राप्त की। सन् 1943 में एम.ए की उपाधि प्राप्त की। इऩ्होंने अध्ययन-काल में कुवेंपु की रचनाओं से प्रभावित होकर कन्नड की ओर आकर्षित हुए। श्री रामकृष्ण विद्याश्रम में रहकर रामकृष्ण परमहंस,स्वामी विवेकानंद और गाँधीजी की रचनाओं का खूब अध्ययन किया।

                  उन्होंने बेंगलूर के सेंट्रल कॉलेज से अपने अध्यापन की सेवा आरंभ की, फिर मैसूर की ओर स्थानांतरित हुए। इस अवसर पर अनेक कन्नड पत्रिकाओं में अपने लेखन प्रकाशन कराने के लिए शुरु कर दिये थे। मैसूर विश्वविद्याल में सह-प्राध्यापक के रूप में नियुक्त होने के साथ-साथ विश्वविद्यालय के प्रकाशन विभाग के सचिव बनें । इस अवसर पर इन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय को अपने एक मुद्रण विभाग का आरंभ करा दिया।

          सन् 1957 में मैसूर विश्वविद्यालय के परीक्षा विभाग के सचिव बनें, तदनंतर सन् 1970 में शिवमोग्गा सह्याद्री कॉलेज के प्राचार्य पद पर अलंकृत हुए। सन् 1966 में मैसूर विश्वविद्यालय में कन्नड अध्ययन विभाग आरंभ हुआ। इसके प्रथम निदेशक देजगौ हैं। मैसूर विश्वविद्यालय के लोक-संग्रहालय के निर्माता इन्हीं को कहा जाता है। सन् 1968 में मैसूर विश्वविद्यालय के कुलपति बनें।

           देजगौ प्रसिद्ध आलोचक के अलावा आधुनिक गद्यशिल्पि भी कहा जाता है, इतना ही उत्तम अनुवादक भी है। कन्नड साहित्य को इनकी देन अपार हैं,उनमें प्रमुख रचानाओं को यहाँ प्रस्तुत करने का प्रयास किया जा रहा हैः

           मोतीलाल नेहरु, तीनंश्री, गंडुगली-कुमारराम, नंजुंडकवि, राष्ट्रकवि कुवेंपु, श्रीरामायणदर्शनं वचनचंद्रिके, षडक्षरदेव, साहित्यकारों के संगम में ।

            अकबर, पुनरुत्थान, हम्मु-बिम्मु,ये इनके द्वारा अनूदित रचनाएँ हैं।

            कब्बिगर कावं, नळचरित्र, रामधान्य चरित्र, जैमिनी भारत संग्रह- आदि इनके द्वारा संपादित रचनाएँ हैं। कुलपति बनने के बाद कुलपति के भाषण नामक किताब तीन भागों में प्रकाशित हुई है।

            देजगौ 44वाँ कन्नड साहित्य सम्मेलन के साहित्य गोष्ठी के उद्घाटक थे। 46वाँ कन्नड साहित्य सम्मेलन के साहित्य गोष्ठी के अध्यक्ष थे, इसके अलावा सन् 1970 में संपन्न 47वाँ कन्नड साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी बन चुके थे।

           इनकी साहित्य सेवा की याद करते हुए इनको अनेक पुरस्कारों द्वारा सम्मानित किया गया है। इनमें प्रमुख हैः-

          कर्नाटक साहित्य अकादमी पुरस्कार, कर्नाटक साहित्य पुरस्कार, नाडोज पुरस्कार (कन्नड विश्वविद्यालय), पंप पुरस्कार, पद्मश्री पुरस्कार, मास्ती पुरस्कार-आदि।

          इस महान साहित्यकार को कन्नड साहित्य क्षेत्र में उच्चतम स्थान प्राप्त है।

डॉ.एस विजी चक्केरे

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