Monday 26 October 2015

‘जनपदलोक’ निर्माता एच.एल.नागेगौडा

 

    

    इनका जन्म कर्नाटक राज्य के मंड्या जिले के नागमंगल तालुक के हरगनाहल्लूी नामक गाँव में सन् 1915 में हुआ। इनका पारिवारिक नाम दोड्डमने है। इनकी आरंभिक शिक्षा नागतिहल्ली में हुई। माध्यमिक शिक्षा चन्नरायपट्टण और बेंगलूर में हुई। इन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय से सन् 1937 में बी.एस्सी की उपाधि प्राप्त की । पुणे विश्वविद्यालय से सन् 1939 में एल.एल.बी की उपाधि प्राप्त की । प्रारंभ में न्यायाधीश बनकर अपनी सेवा आरंभ की ।

     कन्नड भाषा के लोकसाहित्य को इनकी देन अपार है। इन्होंने कन्नड भाषा में 30 से अधिक ग्रंथों की रचना की है। इनका बेट्ट से बट्टलू नामक कृति का अनुवाद हिंदी भाषा में हुआ है। इनको उपन्यासकार, कवि लोककथाकार, अऩुवादक, आत्मकथाकार-आदि अनेक नामों से जाना जाता है। कन्नड भाषा साहित्य को इनकी सेवा अपार ।

     इनकी रचनाएँ हैं-प्रवासी कंड इंडिया, सरोजिनी देवी, भूमिगे बंद गंदर्व, खैदिगळ कथेगळु, नानागुवे गीजुगन हक्कि, सोबाने चिक्कम्मन पदगळु, नागसिरि-आदि।

     नागेगौडा जी का महत्वपूर्ण कृति है जानपदकोश । इसे विश्वकोश के बराबर अमरकृति माना जाता है। जानपद जगत्तु नामक त्रैमासिक संपादक बनाकर लोकसाहित्य को गाँव से लेकर दिल्ली तक पहुँचाने का गौरव इनको मिलता है।

    नागेगौडा जी  जानपद लोक  के निर्माता है। इसमें 5000 लोक कलाकृतियाँ हैं। यह रामनगर के निकट है । यह ग्रामीण   संस्कृति के विकास के लिए और लोककथा कार्यक्रमों के प्रकाशमान के लिए बहुत उपयुक्त है।

      नागेगौडा जी के द्वारा कन्नड साहित्य और संस्कृति को किये गये विविध क्रियाकलापों को देखकर विविध संस्थाओं ने इनको गौरव दिखाने के उद्देश्य से विविध पुरस्कार दिये हैं।

     इनको प्राप्त पुरस्कार और सम्मान हैं-कर्नाटक साहित्य अकादमी पुरस्कार, कर्नाटक राज्योत्सव पुरस्कार, कर्नाटक जनपद और यक्षगान अकादमी पुरस्कार और कर्नाटक नाटक अकादमी फेलोशिप्–आदि।

     इस प्रकार इनकी सेवा को देखकर सन् 1995 में मुदोळ में संपन्न 64वाँ कन्नड साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में चुनकर इनको अपार आदर दिखाया गया। यह भी जनपदलोक निर्माता को प्राप्त सम्मान है।

      इनका निधन सन् 2005 को हुआ।

डॉ.एस.विजीचक्केरे


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