व्याकरण और उसके विषय
व्याकरण को भाषा संबंधित शास्त्र कहते हैं। व्याकरण से भाषा से संबंधित शुद्ध स्वरूप की जानकारी मिलती है।
व्याकरण से तीन विषयों की जानकारी मिलती हैं।
1.वर्ण विचार
2.शब्द विचार
3.वाक्य विचार
1.वर्ण विचारः इसमें वर्णों से संबंधित समस्त विचारों से अवगत होते हैं। इसमें वर्णों के निर्माण,भेद और उच्चारण आदि के संबंध में विवेचन किया जाता है।
2.शब्द विचारः इसके अंतर्गत शब्दों की व्युत्पत्ति, शब्दों के निर्माण, तथा उसके भेदों की जानकारी का विवेचन किया जाता है।
3.वाक्य विचारः इसमें वाक्य रचना से संबंधित विभिन्न आयामों पर विवेचन किया जाता है।
वर्ण विचार
वर्ण,उस ध्वनि को कहते हैं, जो भाषा की सबसे छोटी इकाई है। अर्थात जो भाषा के सबसे छोटी ध्वनि है जिसे जो लिखित रूप मिलता है, उसे वर्ण कहते हैं।
उदाः इ, क्, य्, श्.
वर्णमालाः एक भाषा में प्रयुक्त सभी वर्णों के समूह को वर्णमाला कहते हैं। वर्णमाला को अक्षर माला भी कहते हैं। हिंदी भाषा में प्रयुक्त वर्ण निम्नलिखित हैः
वर्णमालाः
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ अं अः – स्वर कहते हैं।
क ख ग घ ङ- कवर्ग
च छ ज झ ञ–चवर्ग
ट ठ ड ढ ण- टवर्ग
त थ द ध न- तवर्ग
प फ ब भ म- पवर्ग
य र ल व – अंतस्थ
श ष स ह- ऊष्म
क्ष त्र ज्ञ श्र – संयुक्त व्यंजन
वर्णमाला के दो भेद हैं
1.स्वर
2. व्यंजन
1.स्वर-
स्वर उन वर्णों को कहते हैं, जो वर्ण उच्चारण की दृष्टि से स्वतंत्र है।
उदाः अ आ इ उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ अं अः
2.व्यंजन –
व्यंजन उन वर्णों को कहते हैं, जो वर्ण परतंत्र हैं अर्थात इनका उच्चारण के लिए दूसरे वर्ण की सहायता आवश्य होता है। उदाः
क ख ग घ ङ- कवर्ग
च छ ज झ ञ–चवर्ग
ट ठ ड ढ ण- टवर्ग
त थ द ध न- तवर्ग
प फ ब भ म- पवर्ग
य र ल व – अंतस्थ
श ष स ह- ऊष्म
स्वर के भेदः
स्वर के दो भेद होते हैं-
मूल स्वर और संधि स्वर
1.मूल-स्वरः अ, इ, उ-इनको मूल स्वर कहते हैं। इनको उच्चारण के कालमान के आधार पर ह्रस्व स्वर कहते हैं।
2.संधि-स्वरः जो स्वर दो स्वरों के मेल से होते हैं,उन्हें संधिस्वर कहते हैं। जैसे- आ ई ऊ ए ऐ ओ औ । उच्चारण के कालमान के आधार पर इनको दीर्घ स्वर कहते हैं।
संधि स्वरः संधि स्वर के दो भेद होते हैं।
दीर्घ स्वर और संयुक्त स्वर
दीर्घ स्वरः आ ई ऊ
संयुक्त स्वरः ए ऐ ओ औ
योगवाह-अं अः वर्णों को योगवाह कहते हैं।
योग का अर्थ है - दो भिन्न-भिन्न जातियों के वर्णों के मेल को योगवाह कहते हैं।
अ+ म्– अं
अ+ ह- अः
व्यंजन के भेदः
व्यंजन के दो भेद होते हैः
1.वर्गीय-व्यंजन
2.अवर्गीय-व्यंजन
1.वर्गीय व्यंजनः उन वर्णों को वर्गीय व्यंजन कहते हैं,जो वर्ण उच्चारण के आधार विभाजन किया गया है। वर्गीय व्यंजनों को स्पर्श व्यंजन भी कहते हैं। जैसे
क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
वर्गीय व्यंजन के भेदः
प्राणत्व के आधार पर वर्गीय व्यंजनों के दो भेद हैं-
1.अल्पप्राण
2.महाप्राण
1.अल्पप्राणः जिन व्यंजनों के उच्चारण में प्राण, महाप्राण व्यंजनों की तुलना में कम लगता है, उन्हें अल्पप्राण कहते हैं। वर्गीय व्यंजन के प्रथम,तृतीय और पंचम वर्णों को अल्पप्राण कहते हैं।
2.महाप्राणःजिन व्यंजनों के उच्चारण में प्राण, अल्पप्राण व्यंजनों की तुलना में अधिक लगता है, उन्हें महाप्राण कहते हैं। वर्गीय व्यंजन के द्वितीय और चतुर्थ वर्णों को महाप्राण कहते हैं।
2.अवर्गीय व्यंजन के भेद
अवर्गीय व्यंजन के दो भेद हैं
1.अंतस्थ्य
2.ऊष्म
1.अंतस्थ्य व्यंजनः उन वर्णों को अंतस्थ्य व्यंजन कहते हैं। जिन वर्णों का उच्चारण स्वर और व्यंजन के बीच होता है, उन्हें अंतस्थ्य व्यंजन कहते हैं। अवर्गीय व्यंजन के प्रथम चार अंतस्थ्य व्यंजन हैं।
2.ऊष्म व्यंजनः जिन व्यंजनों के उच्चारण में सुरसुराहट सी होती उन्हें ऊष्म व्यंजन कहते हैं। अवर्गीय व्यंजन के अंतिम चार वर्ण ऊष्म व्यंजन कहते हैं
शानदार बहुत अच्छा बताया आपने
ReplyDeleteशानदार बहुत अच्छा बताया आपने
ReplyDeleteआपका यह लेख काफी अच्छा है. मैंने व्यंजन पर लिखा हुआ यह लेख भी पढ़ा जो काफी अच्छे से समझाया गया है.
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