देवेगौडा जवरेगौडा का संक्षिप्त नाम देजगौ है। इनका जन्म रामनगर जिले के चन्नपट्टण तालुक के चक्केरे नामक गाँव में हुआ। पिता देवेगौडा और माता चेन्नम्मा, गरीब किसान थे। देजगौ ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गाँव में पूरी की। माध्यमिक शिक्षा चेन्नपट्टण के हाईस्कूल में पूरी की। बेंगलूर में इंटरमीडियट शिक्षा के उपरांत सन् 1941 में बी.ए.की उपाधि प्राप्त की। सन् 1943 में एम.ए की उपाधि प्राप्त की। इऩ्होंने अध्ययन-काल में कुवेंपु की रचनाओं से प्रभावित होकर कन्नड की ओर आकर्षित हुए। श्री रामकृष्ण विद्याश्रम में रहकर रामकृष्ण परमहंस,स्वामी विवेकानंद और गाँधीजी की रचनाओं का खूब अध्ययन किया।
उन्होंने बेंगलूर के सेंट्रल कॉलेज से अपने अध्यापन की सेवा आरंभ की, फिर मैसूर की ओर स्थानांतरित हुए। इस अवसर पर अनेक कन्नड पत्रिकाओं में अपने लेखन प्रकाशन कराने के लिए शुरु कर दिये थे। मैसूर विश्वविद्याल में सह-प्राध्यापक के रूप में नियुक्त होने के साथ-साथ विश्वविद्यालय के प्रकाशन विभाग के सचिव बनें । इस अवसर पर इन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय को अपने एक मुद्रण विभाग का आरंभ करा दिया।
सन् 1957 में मैसूर विश्वविद्यालय के परीक्षा विभाग के सचिव बनें, तदनंतर सन् 1970 में शिवमोग्गा सह्याद्री कॉलेज के प्राचार्य पद पर अलंकृत हुए। सन् 1966 में मैसूर विश्वविद्यालय में कन्नड अध्ययन विभाग आरंभ हुआ। इसके प्रथम निदेशक देजगौ हैं। मैसूर विश्वविद्यालय के लोक-संग्रहालय के निर्माता इन्हीं को कहा जाता है। सन् 1968 में मैसूर विश्वविद्यालय के कुलपति बनें।
देजगौ प्रसिद्ध आलोचक के अलावा आधुनिक गद्यशिल्पि भी कहा जाता है, इतना ही उत्तम अनुवादक भी है। कन्नड साहित्य को इनकी देन अपार हैं,उनमें प्रमुख रचानाओं को यहाँ प्रस्तुत करने का प्रयास किया जा रहा हैः
मोतीलाल नेहरु, तीनंश्री, गंडुगली-कुमारराम, नंजुंडकवि, राष्ट्रकवि कुवेंपु, श्रीरामायणदर्शनं वचनचंद्रिके, षडक्षरदेव, साहित्यकारों के संगम में ।
अकबर, पुनरुत्थान, हम्मु-बिम्मु,ये इनके द्वारा अनूदित रचनाएँ हैं।
कब्बिगर कावं, नळचरित्र, रामधान्य चरित्र, जैमिनी भारत संग्रह- आदि इनके द्वारा संपादित रचनाएँ हैं। कुलपति बनने के बाद कुलपति के भाषण नामक किताब तीन भागों में प्रकाशित हुई है।
देजगौ 44वाँ कन्नड साहित्य सम्मेलन के साहित्य गोष्ठी के उद्घाटक थे। 46वाँ कन्नड साहित्य सम्मेलन के साहित्य गोष्ठी के अध्यक्ष थे, इसके अलावा सन् 1970 में संपन्न 47वाँ कन्नड साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी बन चुके थे।
इनकी साहित्य सेवा की याद करते हुए इनको अनेक पुरस्कारों द्वारा सम्मानित किया गया है। इनमें प्रमुख हैः-
कर्नाटक साहित्य अकादमी पुरस्कार, कर्नाटक साहित्य पुरस्कार, नाडोज पुरस्कार (कन्नड विश्वविद्यालय), पंप पुरस्कार, पद्मश्री पुरस्कार, मास्ती पुरस्कार-आदि।
इस महान साहित्यकार को कन्नड साहित्य क्षेत्र में उच्चतम स्थान प्राप्त है।
डॉ.एस विजी चक्केरे
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